जन्म से मृत्यु तक मनुष्य सुख के पीछे भागता है लेकिन सुख मिलता ही नहीं

जन्म से मृत्यु तक मनुष्य सुख के पीछे भागता है लेकिन सुख मिलता ही नहीं

बच्चे का सपना होता है कि बड़े हो जाएं तो दुख से मुक्ति मिले. बड़े होने पर नौकरी मिलने पर दुखों से मुक्ति की अपेक्षा रहती है. विवाह होने पर खुशियां आने की अपेक्षा रहती है. हर एक आवक सुख का नया लक्ष्य देता है, लेकिन मनुष्य वहीं दुखी का दुखी पड़ा रह जाता है. बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…

 

मुझे अपना बचपन याद है कि जब छोटा था तो निरंतर कोशिश की कि बड़ा हो जाऊं। बड़ा होने पर लोग सम्मान करने लगेंगे। बड़ा होते ही दुःख तकलीफ दूर हो जाएंगे। पिताजी किच्चाइन करते थे तब फील आता था कि इस बन्दे का तो जीवन में मुंह नहीं देखना है।

एक नजर इधर भीः ग्रहों में कुछ योग ऐसे होते हैं जो राज भोगने की ओर ले जाते हैं

उसके बाद पढ़ा, लिखा, जॉब की। फिर नौकरी, नाम, प्रतिष्ठा, घर, कार आदि की तरफ भागा और जितने की इच्छा और औकात थी, एक एक करके सब कुछ मिलता गया। लेकिन दुःख खत्म होने का नाम ही नहीं लिया। एक नया लक्ष्य मिल जाता है कि यह पूरा हो तो दुःख खत्म हो जाएगा।

एक नजर इधर भीः वाचिक से लेकर लिखित तक संस्कृत ने तय की है लंबी यात्रा

यह मेरा ही नहीं, करीब हर मानव का हाल है। दो भाई हैं, जो देश के जाने माने इंडस्ट्रियलिस्ट हैं। दोनों को कोई बाल बच्चा की चिंता नहीं। धन संपदा की क्या ही चिंता होगी। नाम और प्रसिद्धि का क्या कहें, विश्व के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष (या उनकी टीम) उनको जानते होंगे। लेकिन ब्याकुल हैं। बिजनेस घाटे में नहीं है, मुनाफा बढ़ नहीं रहा है। इसे लेकर दोनों भाई किच्चाइन किए हुए हैं! जबकि उम्र भी सन्यास आश्रम की हो चली है। अब तक वह भाग ही रहे हैं।

एक नजर इधर भीः ऋषियों ने मंत्र लिखे और उन्हीं मंत्रों के संग्रह को 4 वेद कहा गया

दुःख कम करने के लिए लक्ष्यों की तरफ भागना एक नया दुःख ही देता है। यह समझना बड़ा मुश्किल है और समझाना भी मुश्किल है। जबकि यह बड़ी आसान बात है। आप अपने जीवन को टटोलें। क्या आप जबसे पैदा हुए हैं तब से लेकर अब तक लक्ष्यों की ओर भागने से सुख की कोई ऐसी चरम अनुभूति हुई? क्या ऐसा कुछ मिला, जिसमें स्थायी सुख हो और आपके जीवन ने 6 महीने का भी विराम दे दिया हो कि खुशी मिल गई? ऐसा नहीं होता है भाई साहब।

एक नजर इधर भीः धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिकता ने नहीं, जातिवाद ने ली थी गांधी की जान

तो मामला यह है कि हम अंधे की तरह या अंधेरे में भाग रहे हैं। खुश होकर भाग रहे हैं कि इधर भागे तो दुःख खत्म। और जैसे ही लक्ष्य तक पहुँचते हैं, किसी दीवार या ठूंठ से टकराकर अपना भुभुना फोड़ लेते हैं। सुख घण्टा नहीं मिलता, समझ लीजिए पक्का।

और जो लोग यह कहते हैं कि बचपन बड़ा अच्छा था, वह तो और बहेड़ा हैं। वह हार चुके हैं या उन्हें आशंका है कि भविष्य में भी कुछ नहीं होने वाला है, अब तक का जीवन तो झंड गया। मतलब अगर आप वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी गा रहे हैं और भावुक हो रहे हैं तो समझें कि आपको एक कवि और एक गायक ने मिलकर गज़ब चूतिया काटा है।

एक नजर इधर भीः जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं है इसलिए कर्म पर केंद्रित रहना ही बेहतर उपाय

जिंदगी न तो कोई लक्ष्य है, न कोई जंग है, न कोई मुसीबत है, न कोई हकीकत है, न कोई फसाना है, न कोई गीत है, न कोई प्रवाह है। कवि लोग जितना समझाए हैं कहे है और आप जोश में जो गाते हैं, यह समझिए कि कवियों ने आपका चूतिया काट दिया है। जिंदगी एक रहस्य है, जिसके बारे में आपको कुछ भी नहीं पता है। जैसे ही आप यह फील कर लेंगे, इस भागदौड़ से मुक्त हो जाएंगे। इसे कैसे फील कर पाएंगे, कैसे खुशी मिलेगी और दुःख दूर होगा, उसका ज्ञान भी मैं दे सकता हूँ, लेकिन नहीं दूंगा! इतनी लंबी पोस्ट पढ़ ली, उसके लिए आभार

#भवतु_सब्ब_मंगलम

 

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *