गोरखपुर का सबसे पॉश और खूबसूरत इलाके में चल रहे गोरखपुर महोत्सव में लोग भारी संख्या में उमड़ रहे हैं. 11, 12 और 13 जनवरी, 2022 को चलने वाले उत्सव के दूसरे दिन मुख्य अखबारी नाम मालिनी अवस्थी रहीं. इसके अलावा एक नाम रवि किशन का भी रहा. उन्हें गोरखपुर का लापता सांसद कहा जाता है, संभवतः मेले में कुछ लोग उन्हें भी देखने आए हों. दुकानदारों का कहना है कि मेले का मजमा है, लेकिन खरीदार नदारद हैं.
धुंध की वजह से व्यवधान
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से कड़ाके की ठंड में आयोजित इस उत्सव में स्थानीय वासियों ने गर्मी का अहसास करने की कवायद की है, वहीं प्रकृति लगातार छका रही है. बुद्ध गेट से मुड़ने पर पुलिस चौकी के आगे से रामगढ़ ताल शुरू होता है, जो गोरखपुर वासियों को मरीन ड्राइव का सुख देता है. लेकिन यह मरीन ड्राइव पूरे दिन धुंध में खोया रहा. पैडलेगंज चौराहे से ही जाम शुरू होने के बाद मेले तक ट्रैफिक रुक रुककर चला, लेकिन देखने के लिए कुछ खास नजर नहीं आया.
न सनराइज, न सनसेट
सुबह से लेकर शाम तक घना कोहरा रामगढ़ ताल की शाम खराब कर रही है. हालांकि इसका भी अपना मजा है कि कोहरे में रामगढ़ ताल की कल्पना करें. रेलिंग के किनारे पहुंचकर धुंध में ताल खोजें. लेकिन कड़ाके की सर्द ताल को बेताल कर रही है. कोहरे ने सूरज को ढंक रखा है.
यातायात व्यवस्था बनाने में जुटी पुलिस
पुलिस की कवायद है कि लोग सुरक्षित मेले में पहुंचें. लेकिन हुर्र हुर्र करके अचानक 80-90 की रफ्तार पर पहुंचने वाले बाइकर्स लड़कों पर काबू पाने में वह विफल हैं. बच्चों के गार्जियन इन्हें बाइक्स थमा रहे हैं और यह सड़क पर अपनी जान जोखिम में डालकर फर्राटे भरते हैं और दूसरों की जान भी जोखिम में डालते हैं. आए दिन बच्चों के हाथ गोड़ टूट रहे हैं, लेकिन भारी पुलिसिंग के बावजूद इस पर काबू पाया जाना संभव नहीं हो पा रहा है.
शाम होते गुलाबी गुलाबी हुए बुद्ध
देश भर में लाइटिंग पर भाजपा सरकारों का जोर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में पानी की टंकियों तक को रंगकर उस पर लाइट्स डाली गई हैं तो भला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इलाका कैसे पीछे रहता. वह भी शहर के सबसे सुंदर कहे जाने वाले इलाके में. पुराने राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित गौतम बुद्ध द्वार पर इन और आउट दोनों सड़कों पर तोरण द्वार बने हुए हैं. उन पर गौतम बुद्ध की प्रतिमाएं हैं. शाम होते ही यहां का मौसम गुलाबी हो जाता है और फ्लड लाइटें इस गेट को खास आभामंडल देती हैं.
महोत्सव में फुटफाल अच्छी, लेकिन पर्चेजिंग पावर नहीं
दिल्ली से आए एक पुस्तक कारोबारी ने बताया कि किताबें देखने के लिए लोग ठीक ठाक संख्या में आ रहे हैं. लोग किताबें उलट पलटकर देखते भी हैं. लेकिन उनकी डिमांड अजीब सी होती है. ग्राहक जागरूक नहीं हैं कि किस प्रकाशन पर कौन सी किताब मिल सकती है. मेले में आने वाले ज्यादातर लोग उलट-पलटकर किताब तो देखते हैं, लेकिन अंटी ढीली करने को तैयार नहीं हैं. यही हाल अन्य व्यापारियों का है. एक टेराकोटा कारोबारी ने कहा कि लोग आते हैं, फोटो खींचते हैं, तरह तरह से मुंह बनाकर हमारे सामान के साथ सेल्फी भी लेते हैं. लेकिन टेराकोटा की खरीदारी के लिए जेब से पैसे नहीं निकलते हैं.
मेले ने ठंड में गोरखपुर को गर्माहट तो दी है, लेकिन अभी मेला कल्चर विकसित होना बाकी है. मेले में आने वाले लोग पूरी तरह खुश तभी होंगे, जब मेला देखने वालों और मजमा लगाने वालों के बीच धन का भी आदान प्रदान हो. ऐसे में अभी गोरखपुर को और इंतजार करना है कि गोरखपुर महोत्सव गैर सरकारी बनकर जनता का महोत्सव बन सके. अगर आप गोरखपुर में हैं, तो रजाई छोड़िए. अभी एक दिन मौका है आपके पास. पहुंच जाइए मेले में. और भरपूर आनंद लीजिए. खरीदारी तो आप तभी करेंगे, जब आपकी जरूरत का माल होगा और जेब में पैसे होंगे.