एक जमाने में कॉमरेड हुआ करते थे विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, मॉस्को तक से पुरस्कार झटक चुके हैं.
नरेंद्र मोदी सरकार ने विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को पद्म श्री पुरस्कार दे दिया है. गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रहे विश्वनाथ प्रसाद तिवारी एक जमाने में कामरेड हुआ करते थे. रूस की राजधानी मास्को जाकर साहित्य का प्रतिष्ठित पुस्किन सम्मान तक ले आए थे. इनको तमाम पुरस्कार ही नहीं मिले, बल्कि कमरेडई के नेटवर्किंग से विश्व के तमाम देशों का भ्रमण भी कर आए थे.
2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने पलटी मारी. उसके बाद वह लगातार करारा हाथ मारते रहे हैं और अब वह पद्म पुरस्कार तक पहुंच पाए हैं.
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साहित्यकार वीरेंद्र यादव ने विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के बारे में बेहतर लिखा है. वह लिखते हैं कि आज समाचारपत्र में जब ‘पद्मश्री’ सम्मान से विभूषित हिंदी लेखक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का यह बयान पढ़ा कि ‘मैं हमेशा तटस्थ लेखक रहा’ तो याद आए कवि रामधारी सिंह दिनकर जिन्होंने लिखा था ‘जो तटस्थ हैं , समय लिखेगा उनका भी अपराध’. तिवारी जी की तटस्थता के बारे में इस आत्मस्वीकृति का मैं साक्षी हूँ. याद है कि जब 2015 में भारत के लेखकों ने एम एम कलबुर्गी की हत्या को लेकर साहित्य अकादमी की ‘तटस्थता’ के विरुद्ध अवार्ड वापसी अभियान किया था, तब विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ही साहित्यअकादमी के अध्यक्ष थे. 16 नवंबर 2015 के दिन नई दिल्ली में मंडी हाउस से साहित्य अकादमी तक जुलूस निकालने के बाद लेखकों ने साहित्य अकादमी के लान में एक विरोध सभा का आयोजन किया था.लेखक अपना विरोध पत्र साहित्य अकादमी के अध्यक्ष को सौपना चाहते थे, लेकिन साहित्य अकादमी के गेट पर ताला जड़ा हुआ था. लेखकों की मांग के बावजूद गेट का ताला नहीं खोला गया. लेखकों के प्रबल विरोध को देखते हुए तिवारी जी ने अपनी ‘तटस्थता’ का निर्वाह तालाबंद चैनल गेट के भीतर से ही विरोध पत्र लेकर किया था. प्रदर्शनकारी लेखकों के विरोध में नरेंद्र कोहली, मालिनी अवस्थी और कमलकिशोर गोयनका वहाँ उसी समय उग्र नारेबाजी व भाषण करते हुए प्रदर्शनकारी लेखकों का विरोध कर रहे थे. इस तटस्थता के पुरस्कार स्वरुप नरेंद्र कोहली व मालिनी अवस्थी पहले ही पद्मश्री से सम्मानित किए जा चुके हैं. इस बार ‘तटस्थता’ का पुरस्कार विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को मिला है. सचमुच बकौल दिनकर ‘जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध.’
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विश्वनाथ तिवारी को साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया है.
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का जन्म कुशीनगर के भेड़िहारी गांव में 20 जून 1940 को हुआ था. गोरखपुर में ही पढ़ाई लिखाई की. गोरखपुर विश्वविद्यालय में मास्टरी कर हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष के पद 2001 में रिटायर हुए। गोरखपुर के बेतियाहाता में परिवार के साथ रहते हैं. वह त्रैमासिक पत्रिका दस्तावेज निकालते हैं. वह 2013 से 2017 तक साहित्य अकादमी के अध्यक्ष थे.
गोरखपुर विश्वविद्यालय के संगीत एवं ललित कला विभाग के पूर्व विभागाध्यश्र आचार्य राजेश्वर को 2022 में पद्मश्री मिला था. तिवारी गोरखपुर विश्वविद्यालय के दूसरे प्रोफेसर हैं, जिन्हें पद्मश्री मिला है.
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