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GDA : पूरे गोरखपुर शहर के विनाश के बाद विकास प्राधिकरण खोज रहा है अवैध निर्माण

गोरखपुर की करीब 90 प्रतिशत आवासीय कॉलोनियां अवैध, GDA की कई दशक से अवैध निर्माण रोकने की कवायद जारी

सरकार के पास अवैध निर्माण को रोकने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है. GDA के टाउन प्लानिंग की जमीन बिकती है, जिसमें सरकार रजिस्ट्री का शुल्क लेकर कमाती है. ग्रीन लैंड और एग्री लैंड पर मकान बनवाकर फंस जाते हैं आम लोग. GDA और आवास विकास जैसे संस्थान बंद कर चुके हैं वैध प्लॉटिंग और निर्माण. ध्वस्त व्यवस्था में सब कुछ जमीन दलालों के हाथ, जनता बन चुकी है चूं चूं का मुरब्बा.

अगर आप किसी विकसित शहर के व्यवस्थित बसे इलाके जैसे लुटियन दिल्ली, प्रीत बिहार, द्वारका, रोहिणी जैसे इलाके में रह या घूम चुके हैं तो गोरखपुर शहर आपको पूरी तरह कचरा नजर आएगा. मल्टीस्टोरी कल्चर ने शहर और मार डाला है. गोरखपुर विकास प्राधिकरण (GDA) घर बनवा रहे गरीब गुरबों से खांची कुदाल छीनकर शहर सुंदर बनाने की कवायद में लगा है. प्राधिकरण शहर में अवैध निर्माण पर रोक लगाने के लिए क्विक रिस्पॉन्स टीम (क्यूआरटी) गठित कर रहा है. यह टीम अवैध निर्माण चिह्नित कर हो रहे निर्माण को रोकेगी. बाद में उन मकानों की जांच होगी, जहां लोग रह रहे हैं.

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गोरखपुर के विनाश की क्या है वजह

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ग्रीन लैंड और एग्री लैंड पर मकान बनवाकर फंस जाते हैं आम लोग. GDA और आवास विकास जैसे संस्थान बंद कर चुके हैं वैध प्लॉटिंग और निर्माण. ध्वस्त व्यवस्था में सब कुछ जमीन दलालों के हाथ, जनता बन चुकी है चूं चूं का मुरब्बा.

देश भर में हर शहर का तेज विस्तार हो रहा है, उसमें गोरखपुर भी शामिल है. गांवों में बुनियादी सुविधाएं और रोजगार न होने के कारण लोग शहरों में भाग रहे हैं. शहरों को व्यवस्थित रूप से बसाने के लिए उत्तर प्रदेश के हर बड़े शहर में विकास प्राधिकरण और आवास विकास की स्थापना की गई थी. आवास विकास परिषद इस समय क्या करती है, सरकार उसके बचे खुचे कर्मचारियों को किस काम के लिए सेलरी देती है, यह सरकार ही बता सकती है. गोरखपुर का शायद ही कोई व्यक्ति जानता हो कि आवास विकास परिषद का क्या काम है. गोरखपुर में आवास विकास ने दशकों से कोई कॉलोनी नहीं विकसित की है. जबकि सैकड़ों की संख्या में नए नए नाम से मोहल्ले बस गए हैं.

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मांग के मुताबिक वैध मकानों और प्लॉटों की आपूर्ति नहीं

यही हाल विकास प्राधिकरण का है. पहले GDA कॉलोनियां बसाया करता था. जमीन की प्लॉटिंग करके लोगों को जमीनें देता था. अब उसका काम बिल्डरों या प्लॉट बेचने वालों की दलाली तक सिमटकर रह गया है. संभवतः राप्तीनगर कॉलोनी के बाद GDA ने गोरखपुर में कोई नई कॉलोनी नहीं बसाई, जहां चौड़ी सड़कें, अस्पताल, स्कूल आदि सुविधाएं हों. कुल मिलाकर शहर में बसने की जितनी मांग है, उतनी आपूर्ति सरकार ने नहीं की. इसकी वजह से लोग किसानों से खेत की रजिस्ट्री कराकर मकान बनवाना शुरू करते हैं और तमाम अवैध कॉलोनियां विकसित हो रही हैं.

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शहर में जमीन खरीदने वालों में जागरूकता नहीं

अगर आप गोरखपुर में किसी पढ़े लिखे व्यक्ति से भी जानना चाहें कि वैध और अवैध जमीन में क्या अंतर होता है तो उन्हें नहीं पता. कथित बिल्डर व प्रॉपर्टी डीलर किसानों की जमीन में आड़ी तिरछी सड़कें निकालकर प्लॉट बेच देते हैं. लोगों को पता भी नहीं होता कि वह जो जमीन खरीद रहे हैं, अनधिकृत है और वह उस जमीन पर मकान नहीं बना सकते.

अगर उन्हें समझाया जाए कि जमीन अवैध है तो गोरखपुर में लोग हंसते हैं. उन्हें लोकेशन पता होता है, प्लॉट का साइज पता होता है, सड़क की चौड़ाई को भी थोड़ा बहुत केयर कर लेते हैं. लेकिन यह नहीं पता होता है कि अवैध कॉलोनी की क्या क्या मुसीबतें हैं. उन्हें बिल्कुल पता नहीं होता कि एक शहरी आवासीय कॉलोनी का क्या मानक होता है. अवैध कॉलोनी में पार्क, स्कूल, हॉस्पिटल आदि सुविधाएं न होने, चौड़ी सड़कें न होने से क्या क्या मुसीबतें झेलनी होती है, यह भी उन्हें पता नहीं होता. उन्हें तो बस किसी तरह जमीन खरीदकर बस जाना होता है. वह कॉन्फीडेंट होते हैं कि इतने लोग प्लॉट खरीद रहे हैं तो सरकार सबका मकान कैसे गिरा देगी.

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विकास प्राधिकरण, रजिस्ट्री ऑफिस में कोई तालमेल नहीं

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छोटे छोटे प्रॉपर्टी डीलर किसानों की 2-4 एकड़ जमीन लेकर उसमें प्लॉटिंग करके बेच देते हैं. रजिस्ट्री ऑफिस में उस प्लॉट की रजिस्ट्री हो जाती है. कहीं कोई पूछताछ नहीं होती है कि किसी कृषि भूमि में 20 फुट सड़क निकालकर 1000 वर्गफुट जमीन क्यों बेची जा रही है और उस 1000 वर्गफुट कृषि भूमि में जमीन खरीदने वाला व्यक्ति किस चीज की बोआई करने जा रहा है. स्वाभाविक है कि एक कॉमन मैन को पता होता है कि 1000 वर्गफुट जमीन कोई भी व्यक्ति मकान या दुकान बनाने के लिए खरीद रहा होता है.
फोटो- गोरखपुर की एक अवैध कॉलोनी का दृश्य

GDA शहर के लिए मास्टरप्लान तैयार करता है. उसके नक्शे में चौड़ी सड़कें, बड़े पार्क, स्कूल, कॉलेज, रिंग रोड, ग्रीन लैंड सहित वह सब कुछ होता है, जो अमेरिका यूरोप के किसी विकसित शहर के मानकों में होता है. वह किसानों की जमीन के मुताबिक इलाके की मैपिंग किए रहते हैं.

उधर छोटे छोटे प्रॉपर्टी डीलर किसानों की 2-4 एकड़ जमीन लेकर उसमें प्लॉटिंग करके बेच देते हैं. रजिस्ट्री ऑफिस में उस प्लॉट की रजिस्ट्री हो जाती है. कहीं कोई पूछताछ नहीं होती है कि किसी कृषि भूमि में 20 फुट सड़क निकालकर 1000 वर्गफुट जमीन क्यों बेची जा रही है और उस 1000 वर्गफुट कृषि भूमि में जमीन खरीदने वाला व्यक्ति किस चीज की बोआई करने जा रहा है. स्वाभाविक है कि एक कॉमन मैन को पता होता है कि 1000 वर्गफुट जमीन कोई भी व्यक्ति मकान या दुकान बनाने के लिए खरीद रहा होता है.

विकास प्राधिकरण को भी पता नहीं होता कि उसके मैप में जो सड़क, पार्क, स्पोर्ट्स कॉलेज, हॉस्पिटल बना हुआ है, वह जमीन 1000 या 2000 वर्गफुट के टुकड़ों में बिक चुकी है. उसे अपने पार्क, अस्पताल की परिकल्पना की चिंता तब होती है, जब अपना पेट काटकर छोटी सी जमीन खरीदने वाला व्यक्ति उस जमीन पर कंस्ट्रक्शन शुरू करता है. निर्माण शुरू होते ही विकास प्राधिकरण के लोग मजदूरों को भगाने, निर्माण स्थल पर रखे खांची कुदाल छीनने पहुंच जाते हैं. कुछ वसूली के बाद उन्हें मकान बना लेने दिया जाता है.
उसके बाद समय समय पर विकास प्राधिकरण इन अवैध निर्माणों के खिलाफ आंदोलन चलाता है. लोगों को उनका घर तोड़ देने के लिए धमकाया जाता है. एकाध मकान आंशिक रूप से तोड़ भी दिया जाता है. मोहल्ले वाले आंदोलन चलाते हैं और आखिरकार सांसदों विधायकों की नेतागीरी, या अधिकारियों की कुछ वसूली के बाद अभियान को रोक दिया जाता है. अधिकारियों को वसूली और नेताओं को नेतागीरी का जब शौक चर्राता है या मन होता है तो वह बुल्डोजर लेकर घर तोड़ने के लिए फिर पहुंच जाते हैं.

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ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ भी कर चुके हैं अवैध कॉलोनी को बचाने के लिए आंदोलन

गोरखपुर में 1991 के दौर में बहुत बड़ी अवैध कॉलोनी बसी. जब आबादी बसने लगी तो पता चला कि यहां विकास प्राधिकरण का ग्रीन लैंड, पार्क, औद्योगिक इलाका और जाने क्या क्या है. उधर हजारों की संख्या में लोगों ने जमीनों की रजिस्ट्री कराकर मकान बनवा लिया. उसके बाद विकास प्राधिकरण ने मकानों को तोड़ने का अभियान चलाया. लोगों को नोटिस भेजे गए. अपनी जिंदगी भर की कमाई मकान में लगा चुके लोगों ने जब अपना आशियाना बिखरते देखा तो आंदोलित हुए। एक हफ्ते तक अवैध निर्माण के तोड़फोड़ को रोकने के खिलाफ आंदोलन चला तो तत्कालीन सांसद महंत अवैद्यनाथ ने पहुंचकर लोगों को आश्वस्त किया कि उनका मकान नहीं तोड़ा जाएगा. तत्कालीन मानीराम विधायक ओमप्रकाश पासवान ने भी आंदोलनकारियों का साथ दिया. अवैद्यनाथ महराज ने अवैध मोहल्ले को रामजानकी नगर नाम दिया. उस समय आंदोलन रुक गया. लेकिन विकास प्राधिकरण के नक्शे में यह मोहल्ला 1989 से ही अवैध है. अब तक कोई समाधान नहीं निकल पाया कि इस मोहल्ले और इसमें बसे 30-40 हजार मकानों का क्या किया जाए.

महंत अवैद्यनाथ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. उन्हें 6 साल मुख्यमंत्री हुए हो गए, लेकिन रामजानकी नगर के निवासी अभी भी अवैध हैं. सरकार ने कोई समाधान नहीं निकाला कि यहां कौन सी सड़क चौड़ी की जाए, किन मकानों का मुआवजा देकर और उन्हें तोड़कर पार्क बना दिया जाए. किन खाली जगहों के आसपास के इलाकों को खाली कराकर वहां स्कूल डेवलप कर दिया जाए. यह सब संभव है. लेकिन सरकार या विकास प्राधिकरण की कोई ऐसी मंशा नजर नहीं आती है.

जीडीए उपाध्यक्ष महेंद्र सिंह तंवर ने अब अवैध निर्माण रोकने को ठानी है. उन्होंने उस अवैध निर्माण को रोकने का मन बनाया है, जो 1990 के बाद से लगातार हो रहा है. गोरखपुर की 90 प्रतिशत से ज्यादा कालोनियां और 99 प्रतिशत से ज्यादा मकान अवैध बने हुए हैं. यह विकास प्राधिकरण को पता है. लेकिन उसे रोकना है. यह रोकने की कार्रवाई है और इस देश में ऐसे ही सबकुछ चलता रहता है.

 

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