kuch naye purane purvgrah jo jane anjane hmari bhasha me chale aate hain

कुछ नए-पुराने पूर्वग्रह जो जाने-अनजाने हमारी भाषा में चले आते हैं….

हमारे मन में हजारों पूर्वग्रह बैठे हुए हैं. जब कोई टोक देता है तो वह अननैचुरल लगता है. वह भी तब अननैचुरल या गलत लगेगा, जब आप अच्छे मनुष्य हैं. अन्यथा इन गंदी, बेशर्म और किसी को अपमानित करने वाली टिप्पणियों और जुमलों को स्वाभाविक मान लिया जाता है.जाने माने पत्रकार प्रियदर्शन बता रहे हैं 10 सामान्य पूर्वग्रह के बारे में…

1. ‘मैंने जिसकी पूंछ उठाई, उसे मादा पाया है’- धूमिल ने आज अगर यह कविता-पंक्ति लिखी होती तो सोशल मीडिया पर उचित ही उनकी धज्जियां उड़ गई होतीं. तब संभवतः धूमिल यही समझाने की कोशिश में लगे होते कि उनका इरादा लड़कियों को कमज़ोर साबित करने का नहीं था, इसका संदर्भ कुछ और था. लेकिन यह पंक्ति बताती है कि हमारी भाषा में कई पूर्वग्रह अनजाने में दाख़िल हो जाते हैं. यह लैंगिक पूर्वग्रह उनमें सबसे बड़ा है. हालांकि धूमिल के पूरे काव्य-संसार में मर्दवाद का यह तत्व एकाधिक जगह सक्रिय दिखाई पड़ता है. शायद उनके समय मर्दानगी को एक मूल्य माना जाता होगा.

2. ऐसे लैंगिक पूर्वग्रहों के उदाहरण भरे पड़े हैं. ‘मैंने चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं’ ऐसा ही एक लोकप्रिय पूर्वग्रह है. कृष्ण कुमार की किताब ‘चूड़ी बाज़ार में लड़की’ कुछ और पूर्वग्रहों की ओर ध्यान खींचती है. ‘इज़्ज़त लुटना’ तो बिल्कुल आपराधिक पूर्वग्रह का उदाहरण है. जिसके साथ एक अपराध हुआ है, हम अनजाने में उसकी इज़्ज़त लुट जाने की बात करते हैं – एक तरह से उसे उम्र भर की सज़ा दे डालते हैं कि उसने अपनी इज़्ज़त को दी, जबकि इज़्ज़त उसकी जानी चाहिए जिसने अपराध किया है .

3. लेकिन पूर्वग्रह बस लैंगिक नहीं होते, आर्थिक भी होते हैं. सेठ जी मारे जाते हैं और नौकर मारा जाता है. जबकि दोनों की हत्या सेठ जी की दुकान लूटे जाने के क्रम में होती है.

4.  मगर क्या करें? क्या यह लिखें कि नौकर जी भी मारे गए? जाहिर है, यह एक अस्वाभाविक वाक्य लगेगा. बल्कि अपनी भाषा को ‘नौकर’ जैसी हिकारत वाली संज्ञा से मुक्त रखें. हम सब नौकरी करते हैं लेकिन किसी के नौकर नहीं हैं. हम किसी सेठ के यहां काम करने वाले को कर्मचारी भी कह सकते हैं. हालांकि काम को भी ऊंच-नीच के साथ देखने वाली मानसिकता यहां भी एक ओछापन ले आती है. वैसे ग़ालिब वाली ठसक के साथ लिखना हो तो लिखा जा सकता है – ‘ग़ालिब वज़ीफ़ाख़्वार हो दो शाह को दुआ / वो दिन गए जब कहते थे नौकर नहीं हूं मैं.’

5. दिलचस्प यह है कि सेठ शब्द के साथ भी एक पूर्वग्रह जुड़ सा गया है. अमीर या रईस लोग भी ख़ुद को सेठ कहा जाना पसंद नहीं करते. सेठ शब्द में कहीं ‘शोषक’ भी शामिल है और कहीं चालाक सौदेबाज़ भी.

6. एक पूर्वग्रह राष्ट्रवादी भी होता है. किसी भी वजह से मारा जाए, अपना सैनिक शहीद होता है. जबकि पुलिस की गोली से मारा जाने वाला शख्स ढेर हो जाता है. यह पूर्वग्रह फिर सरकारों तक चला आता है. गुंडे और नक्सली टपका दिए जाते हैं, सिपाही वीरगति को प्राप्त होते हैं.

7. जातिवादी पूर्वग्रह भी बहुत कठोर होते हैं. पंडित विद्वान मान लिए जाते हैं, ब्राह्मण नैतिक और क्षत्रिय वीर. इसी तरह जाट और गुर्जर होने का मतलब गंवार और बनिया होने का मतलब चतुर बना दिया गया है. इस भाषा में अछूत तो अछूत हैं ही, संविधान जो भी कहता हो.

8. एक पूर्वग्रह हमने क्षेत्रों का भी विकसित किया है. देश के एक बड़े हिस्से में ‘बिहारी’ हिकारत के साथ इस्तेमाल किया जाने वाला विशेषण है. उधर बिहार वाले बंगाली को डरपोक मान कर चलते हैं. ज्यादा दिन नहीं हुए, जब पूरा का पूरा उत्तर भारत दक्षिण भारत को मद्रासी मान कर चलता था. और अब भी पूरा यूरोप हमारे लिए अंग्रेज़ है.

9. कुछ नए और खतरनाक पूर्वग्रह भी हमारे सामने बन रहे हैं. बहुत सारे लोगों के लिए उर्दू अचानक आतंकवादियों की भाषा हो गई है. मुसलमान म्लेच्छ पहले से थे, अब आतंकवादी हो गए हैं.

10. एक पूर्वग्रह ‘विकास’ शब्द का भी बन गया है. विकास को ऐसा शब्द बना दिया गया है जिसके आगे सब कुछ बेमानी है. इसके नाम पर हम सारे ज़रूरी सवाल स्थगित करते चलते हैं.

(देशहित में प्रसारित करने के लिए यह लेख प्रियदर्शन के फेसबुक वाल से लिया गया है)

 

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