देश में 1900 ईसवी के आसपास library तेजी से खोले जाने लगे, वड़ोदरा के गायकवाड़ शासक ने खोले तमाम पुस्तकालय
आधुनिक भारत में library व्यवस्था की व्यापक परिकल्पना को बड़ौदा के सयाजीराव गायकवाड़ ने प्रस्तुत की. उन्हें यह महसूस हुआ कि सार्वभौम शिक्षा के लिए मुफ्त सार्वजनिक library जरूरी हैं और Public library का कंसेप्ट लाए. गायकवाड़ ने अलग से लाइब्रेरी विभाग बनाया और डब्ल्यू ए बोर्डन को राज्य के पुस्तकालयों का पहला पूर्णकालिक निदेशक नियुक्त किया. बड़ौदा में सेंट्रल लाइब्रेरी बनी, जिसमें उनके निजी संग्रह की करीब 20,000 पुस्तकों को भी रख दिया गया और लाइब्रेरी में कुल 88,764 पुस्तकें रखी गईं.
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काशी हिंदू विश्वविद्यालय की library किसने बनवाई?
उत्तर प्रदेश में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सयाजीराव गायकवाड़ library है. इसे केन्द्रीय पुस्तकालय कहा जाता है. इसकी स्थापना 1917 में हुई . library की बिल्डिंग ब्रिटिश संग्रहालय की तर्ज पर 1941 में बनी, जिसके निर्माण के लिए महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ से धन मिला.
पुस्तकालयों की मौजूदा हालत क्या है?
राजा राम मोहन रॉय library फाउंडेशन (आरआरआरएलएफ) है. 1972 में गठन के बाद से ही यह फाउंडेशन भारत में सार्वजनिक पुस्तकाल (Public library) व्यवस्था को समर्थन करता है. यह फाउंडेशन देश की 70,000 से ज्यादा पब्लिक लाइब्रेरी में से 34,000 को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से आर्थिक मदद करता है. मिले साक्ष्यों के मुताबिक भारत में सार्वजनिक पुस्तकालय की शुरुआत इंग्लिश कॉलोनी लाइब्रेरी, चेन्नई से 1661 में हुई. आर्थिक मदद न मिलने के कारण तमाम पुस्तकालय लंबे समय तक नहीं चल पाए. राज्य के हिसाब से देखें तो 1950 के पहले आंध्र प्रदेश में 6,000 सार्वजनिक पुस्तकालय थे, जिसका काम एक एनजीओ देखता था. अब आंध्र में में सार्वजनिक पुस्तकालयों की संख्या घटकर 3000 से भी कम रह गई है. सामाजिक न्याय की धरती कहे जाने वाले तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 4028 सार्वजनिक पुस्तकालय हैं. इतना ही नहीं, तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टी द्रविड मुनेत्र कषगम (डीएमके) का अपना पुस्तकालय है. डीएमके नेता स्टालिन का अपना बहुत बड़ा पुस्तकालय है. अन्य राज्यों की लाइब्रेरियों की स्थिति बहुत दयनीय बनी हुई है.
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उत्तर प्रदेश में पुस्तकालय की क्या स्थिति है?
उत्तर प्रदेश के library हस्तलिखित पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध हैं. इलाहाबाद पब्लिक लाइब्रेरी 1864 में, बनारस में विश्वनाथ मंदिर के पास कारमाइकल लाइब्रेरी 1872 में स्थापित हुई. 1866 में मेरठ की लॉयल लाइब्रेरी और रीडिंग रूम बना. इसके बाद 1949 में उत्तर प्रदेश लाइब्रेरी एसोसिएशन का गठन हुआ. राज्य में 1949 में डॉ एसआर रंगनाथन ने उत्तर प्रदेश पब्लिक लाइब्रेरी बिल का मसौदा तैयार किया. राज्यों ने पुस्तकालयों के प्रबंधन के लिए स्वतंत्रता के कुछ साल के भीतर लाइब्रेरी कानून पारित कराए.
भारत की सबसे बड़ी library कहां है?
मौलाना आजाद library अलीगढ़ में है. इसकी स्थापना 1875 में हुई. यह प्रतिष्ठित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का मुख्य पुस्तकालय है. केंद्रीय पुस्तकालय के साथ विभिन्न तलों पर 80 अधिक विभागीय पुस्तकालय हैं. यह लाइब्रेरी भारत में सबसे बड़ी और एशिया में दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी है.
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पांडुलिपियों वाली लाइब्रेरी कौन सी है?
संस्कृति मंत्रालय के अधीन रामपुर रजा लाइब्रेरी एक स्वायत्त निकाय है. इस लाइब्रेरी की स्थापना 1774 में नवाब फैजुल लाह खान ने की थी. यह भारतीय इस्लामी अध्ययन और कलाओं, दुर्लभ पांडुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेज, मुगल लघु चित्रों और पुस्तकों के संग्रह का खजाना है.
ताल्लुकेदारों की बनवाई लाइब्रेरी कौन सी है?
लखनऊ के कैसरबाग में आमिर-उद्-दौला पब्लिक लाइब्रेरी है. पुस्तकालय में अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, बंगाली, फारसी और अरबी सहित भाषाओं में पुस्तकों का एक विशाल संग्रह है. यह भारतीय इस्लामी स्थापत्य पर आधारित 3,000 वर्ग मीटर में फैले भवन में है। इसका निर्माण ताल्लुकेदारों की संस्था अन्जुमन-ए-हिन्द अवध ने राजा महमूदाबाद अमीर-उद्-दौला की स्मृति में करीब 62,000 रुपये के खर्च पर कराया.
संस्कृत पांडुलिपियों की लाइब्रेरी किसे कहा जाता है?
सरस्वती भवन पुस्तकालय बनारस के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में है. यह संस्कृत पांडुलिपियों का भंडार है. इस पुस्तकालय ने समय के साथ एकत्र दुर्लभ पांडुलिपियां प्रकाशित भी की है.
उत्तर प्रदेश में बहुत देरी में 2006 में लाइब्रेरी कानून पारित हुआ जब राज्य के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे और आजम खां प्रदेश में कैबिनेट मंत्री थे. इस समय उत्तर प्रदेश में पुस्तकालयों का बहुत बुरा हाल है. नए पुस्तकालय खुलने तो दूर की बात है, पुराने भी बर्बाद हो चुके हैं.
रामपुर का मदरसा आलिया क्यों चर्चा में रहा?
मदरसा आलिया की स्थापना 1774 में विद्या सागर मौलाना अब्दुल अली फिरंगी की निगरानी में हुई थी. मदरसा आलिया नवाबों के शासनकाल में बहुत दूर-दूर तक मशहूर था. मदरसे को मिस्र के जामिया अजहर यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया हमदर्द एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली से मान्यता मिली हुई थी. इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और तुर्की आदि जैसे देशों के छात्र भी पढ़ने आते थे. मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने भी इस विद्यालय में शिक्षण कार्य किया है. यहां अरबी, फारसी की दुर्लभ पांडुलिपियां एवं बहुमूल्य किताबें थीं.
मदरसा आलिया की स्थिति धीरे धीरे दयनीय होती गई. इसके भवन में जगह जगह पानी टपकता था. समाजवादी पार्टी के शासनकाल में कैबिनेट मंत्री आजम खां ने इमारत की मरम्मत कराई. बाद में इसमें पढ़ने वाले बहुत कम बच्चे रह गए थे और मदरसे को बंद करा दिया गया. समाजवादी पार्टी के शासनकाल में ही इसे मौलाना मुहम्मद अली जौहर ट्रस्ट के नाम पर 99 साल के लीज पर दे दिया गया.
मदरसा आलिया के प्रिंसिपल ज़ुबेर खान ने 16 जून 2019 को मदरसे की दुर्लभ किताबों और पुरानी पांडुलिपियों की चोरी की एफआईआर लिखवाई थी. जुबेर कहना था कि करीब 9,000 दुर्लभ पुस्तकें और पांडुलिपियां मदरसे के पुस्तकालय से 10 सितंबर 2016 को अज्ञात लोगों ने चुरा ली थीं. और बाद में पुलिस ने मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय में छापे मारकर आलिया मदरसे की 2,000 किताबें बरामद कर लीं.
प्राचीन भारत में library कौन कौन सी थीं?
इसकी कोई सटीक जानकारी नहीं है कि मौखिक पठन पाठन से लिखित में मामला कब पहुंचा. उसके बाद कब सार्वजनिक लाइब्रेरियां शुरू हुईं, इसके बारे में भी कुछ खास और ठोस नहीं मिलता है. यह उल्लेख मिलता है कि नालंदा और तक्षशिला में विश्वविद्यालयों में बड़े-बड़े पुस्तकालय थे, जिसका खूबसूरत तरीके से प्रबंधन किया जाता था. इनका इतना महत्त्व था कि इन्हें रत्नागार, ‘Ocean of jewels’ ‘Store of jewels’ आदि नामों से भारत के इतिहास की किताबों में उल्लिखित किया गया है. इन्हें सामान्य रूप से सार्वजनिक पुस्तकालय और खासतौर पर विश्वविद्यालय के पुस्तकालय कहा जा सकता है.
मध्यकालीन भारत में library की क्या स्थिति थी?
सल्तनत काल और मुगलकाल में पठन पाठन के बारे में उल्लेखनीय जानकारियां मिलने लगती हैं. मुगल शासकों ने पुस्तकालयों को बहुत महत्त्व दिया. तमाम विद्वानों को लाइब्रेरियन नियुक्त किया गया और उन्हें सम्मान मिलता था. अकबर के काल तक यह परंपरा चलती रही और उसके बाद गिरावट आई. तंजौर के सरस्वती महल लाइब्रेरी और पटना की खुदाबक्श लाइब्रेरी के मैनुस्क्रिप्ट से इसकी महानता के संकेत मिलते हैं. हालांकि ये पुस्तकालय सार्वजनिक पुस्तकालय नहीं थे. शिक्षा का स्तर कम था और इनका इस्तेमाल बहुत कम संख्या में लोग करते थे. यह व्यक्तिगत पुस्तकालय ही थे और बाहर के लोगों के लिए उसका कोई इस्तेमाल नहीं होता था.
ब्रिटिश काल में library की क्या स्थिति थी?
यह आश्चर्यजनक है कि 185 साल के ब्रिटिश शासनकाल में 15 अगस्त 1947 तक देश में अंग्रेजों ने कोई बड़ी सार्वजनिक लाइब्रेरी नहीं बनाई. आधुनिक दिल्ली 1910 में बसनी शुरू हुई और 1930 में राजधानी बनाने का काम पूरा हुआ. लेकिन सार्वजनिक लाइब्रेरी का कोई प्रावधान नहीं आया. पहले से या उस दौर में स्थापित पुस्तकालय स्वैच्छिक संगठनों या व्यक्तियों द्वारा स्थापित किए गए. ब्रिटेन में 1850 में पहला सार्वजनिक पुस्तकालय कानून पारित हुआ, लेकिन भारत में उसका इस्तेमाल नहीं किया गया. म्युनिसिपल ऐक्ट के तहत सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित किए गए. इनमें भी ब्रिटेन में छपी अंग्रेजी की पुस्तकें रहती थीं, जो भारत की बड़ी आबादी के लिए बेकार थीं. केवल अंग्रेजी पढ़ा तबका ही इनका इस्तेमाल कर रहा था.
कलकत्ता प्रेसीडेंसी में 1784 में सर विलियम जोंस ने एशियाटिक सोसाइटी आफ कलकत्ता की स्थापना की. कलकत्ता में 1818 में कलकत्ता लाइब्रेरी सोसाइटी की स्थापना हुई, जिसके प्रोपराइटर्स ने धन लगाकर लाइब्रेरी बनाई. इसका सबस्क्राइबर बनकर लाइब्रेरी का इस्तेमाल किया जा सकता था.
ब़ॉम्बे प्रेसीडेंसी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1715 में बंबई की पहली लाइब्रेरी बनवाई. मद्रास प्रेसीडेंसी में भी पुस्तकालयों की लंबी परंपरा रही है. केरल में पब्लिक लाइब्रेरी आंदोलन 1829 की शुरुआत में चला. त्रिवेंद्रम में कर्नल एडलर्ड काडेगम ने पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी बनवाई.