आम आदमी पार्टी

आम आदमी पार्टी के नेताओं पर ही क्यों हमलावर है सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी

आम आदमी पार्टी के नेता सत्येन्द्र जैन और मनीष सिसोदिया जेल में हैं, भाजपा कुछ अन्य नेताओं को भी जेल में डालने की तैयारी में दिख रही है.

आम आदमी पार्टी के पोस्टर बॉय मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया. पार्टी के एक सत्येन्द्र जैन मंत्री पहले से ही जेल में थे. अभी चर्चा शुरू हो गई है कि गोपाल राय की भी गिरफ्तारी होने की संभावना है. केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी भारतीय जनता पार्टी सरकार हमलावर है और उसने सभी जांच एजेंसियों के घोड़े आम आदमी पार्टी की सरकार व उसके नेताओं पर छोड़ रखे हैं. ऐसे में मन में यह विचार आना स्वाभाविक है कि आम आदमी पार्टी ही निशाने पर क्यों है. यह रहस्य समझने के लिए भारत के अन्य दलों के चरित्र का अध्ययन करना पड़ेगा. उनकी स्थिति देखनी पड़ेगी. तभी यह समझा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी को आम आदमी पार्टी से खतरा क्यों महसूस होता है.

आम आदमी पार्टी
सामान्य लोगों से जुड़े मुश्लिात को मसले बनाते हैं अरविंद केजरीवाल

भाजपा पूर्वोत्तर भारत में चुनाव जीतकर बम बम है. भाजपा के नेताओं में जीत हासिल करने की ललक देखें. जिस दिन नॉर्थ ईस्ट में भाजपा की जीत हुई, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली के आईटीओ स्थित पार्टी मुख्यालय आए. पूरा आईटीओ ब्लॉक कर दिया गया. लक्ष्मी नगर से विकास मार्ग होकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जाने वाले यात्री फंस गए. मंडी हाउस से लेकर खूनी दरवाजा और दिल्ली गेट तक पूरी सड़क ब्लॉक रही. रात के 10 बजे के बाद भाजपा नेताओं का मजमा हटा, तब जाकर पब्लिक को राहत मिली. वहीं एक मनमोहन सिंह भी प्रधानमंत्री थे. जब दिल्ली के बुराड़ी में कांग्रेस का कार्यक्रम हुआ तो उन्होंने हेलीकॉप्टर से कार्यक्रम स्थल पर जाने को प्राथमिकता दी, जिससे सिक्योरिटी के लोगों को सड़कें न बंद करनी पड़े और आम नागरियों को कोई दिक्कत न हो.

नरेंद्र मोदी ने यह मजमा ऐसे राज्य की जीत पर लगाया, जिसके बारे में लिखते समय मुझे ध्यान में ही नहीं आ रहा है कि भाजपा किन राज्यों में चुनाव जीती है, वहां नेता कौन है और मुख्यमंत्री कौन बनेगा. अगर रेंडम में आप अपने आस पास की महिलाओं, पुरुषों और युवाओं से पूछें कि पूर्वोत्तर भारत में भाजपा किस राज्य में चुनाव जीती है तो शायद वह भी राज्य का नाम नहीं बता पाएंगे. लेकिन भाजपा ने उस जीत को इतने बड़े उत्सव में तब्दील कर दिया कि आप जिस महिला, पुरुष से आप पूछेंगी, लोग कहेंगे कि पूर्वोत्तर में भाजपा जीती है, भाजपा ने बहुत बड़ी जीत हासिल की है. चीन तक भाजपा चढ़ गई है. या इस तरह की कुछ भी प्रतिक्रिया सामने वाले से मिल सकती है.

आइए कांग्रेस की बात करते हैं

जिस दिन पूर्वोत्तर भारत का चुनाव परिणाम आया, उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने अदाणी मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया. कांग्रेस के नेता जयराम रमेश आए, बड़े मनहूस मन से कहा कि न्यायालय की समिति की सीमाएं हैं, वह सेबी के नियम के उल्लंघन की जांच करेगा. रमेश ने कहा कि यह कॉर्पोरेट और राजनेता के गठज़ोड़ की साझा लूट का मामला है, जिसकी जांच संसदीय समिति ही कर सकती है. लेकिन रमेश के बयान में वह जोश, उत्साह, गुस्सा कहीं नहीं था.

ठीक इसी दिन जीक्यूजी ने अदाणी समूह में 15,000 करोड़ रुपये निवेश की घोषणा कर दी. यह भी बहुत बड़ा उत्सव बन गया. कांग्रेस या किसी विपक्ष ने यह सवाल नहीं उठाया कि जीक्यूजी के संस्थापक राजीव जैन कौन हैं, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के ही शासन काल में 2016 में एक असेट मैनैजमेंट कंपनी स्थापित की और यह महज 6-7 साल में 7 लाख करोड़ रुपये की कंपनी बन गई है. यह उनके लिए मसला नहीं बना.

उधर राहुल गांधी लंबा चौड़ा दाढ़ा कटवाकर चॉकलेटी बन गए हैं. कांग्रेस के भक्त इसी में खुश हैं कि क्या डैशिंग लुक है और कैंब्रिज में क्या जबरदस्त भाषण है. राहुल अगर नेता होते तो अमेरिका में ही यह बयान दे चुके होते कि राजीव जैन की भी प्रोफाइल तलाशी जानी चाहिए कि उनके पास अदाणी ग्रुप में में लगाने के लिए कहां से पैसे आए हैं और क्या अमेरिकी कंपनियों हिंडनबर्ग रिसर्च और जीक्यूजी में कोई समझौता हो चुका है? लेकिन राहुल गांधी ने व्यंग्य में पप्पू कहे जाने वाले अपने नाम को सार्थक करते हुए बयान दिया कि उनके मोबाइल में पेगासस घुसा हुआ था…. यह भी आप अपने आस पड़ोस की महिला, पुरुष से पूछकर देखें कि पेगासस क्या होता है तो शायद वह कह दे कि पेचिश की बीमारी को पेगासस कहते हैं.

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मनीष सिसोदिया को शिक्षा के ब्रांड अंबेसडर के रूप में पेश किया गया था. अब बच्चों से अपील करवाकर उनकी छवि यथावत रखने की कोशिश की जा रही है

अन्य क्षेत्रीय दल

आइए अब अन्य रीजनल दलों की बात करें. मायावती अब बूढ़ी हो चली हैं और अपने भाई भतीजे को बसपा का सम्राट घोषित कर चुकी हैं. समाजवादी पार्टी पर अखिलेश यादव का कब्जा हो चुका है. बिहार में जनता दल यूनाइटेड के आका नीतीश कुमार अब अपनी जिंदगी का अंतिम दौर काट रहे हैं. राष्ट्रीय जनता दल पर लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव का कब्जा है. ममता बनर्जी भी पश्चिम बंगाल में मौज में हैं और अपने भाई भतीजों को उत्तराधिकारी बनाकर जिंदगी काट रही हैं. ओडिशा में बीजू पटनायक के पुत्र नवीन पटनायक शायद सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बनने का अपना रिकॉर्ड पूरा करने में व्यस्त हैं, केंद्र में कोई आए या जाए, उन्हें कोई दिक्कत नहीं. कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा और उनके कुनबे की अब कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं है. तमिलनाडु में डीएमके नेता स्टालिन भी 70 पार कर चुके हैं और जब उनके पिता एम करुणानिधि की मृत्यु हुई तब पता चला कि स्टालिन भी बूढ़े हो गए हैं. हरियाणा में चौधरी देवीलाल का कुनबा आपस में ही लड़कर खप चुका है, कुछ भाजपा की शरण में हैं तो कुछ राजनीतिक रोजी-रोटी चलाने के लिए शरण तलाश रहे हैं.

क्या नेता खुद को सड़क पर घसिटवाने को तैयार हैं

अब अगर कोई राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी, देवगौड़ा, स्टालिन या चौधरी देवीलाल के कुनबे से उम्मीद कर रहा है, तो बेवकूफी ही कही जा सकती है. खानदानी आदमी तो जवाहलाल नेहरू भी थे और उस दौर में भी उनके पास 100 करोड़ रुपये की संपत्ति थी, लेकिन आंदोलन की आधी जिंदगी जेल में बीत गई, तब जाकर प्रधानमंत्री पद की मलाई मिली. लालू ने खुद लट्ठ खाई और बिहार में वंचितों के लिए खूब लट्ठ चलाई और अभी भी वह घर से अस्पताल और जेल तक सरकार के निशाने पर हैं. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव को तो पुलिस एनकाउंटर करने तक को खोज रही थी. तमिलनाडु में एमके स्टालिन का फोटो शायद लोगों को याद होगा कि वह किस तरह सड़क पर घसीटे जा रहे थे. ममता बनर्जी का भी वह सीन आपको शायद याद होगा कि उन्हें किस तरह से माकपा की सरकार ने विधानसभा के सामने सड़क पर घसिटवाया था, जिसमें उनके शरीर की चमड़ी छिल गई थी, जबकि उस समय ममता बनर्जी लोकसभा में सांसद थीं.

क्या आप संघर्ष करके मुकाम बनाने वाले इन नेताओं के उत्तराधिकारियों में कहीं से वह जज्बा पा रहे हैं कि महंगाई, भ्रष्ट्राचार, कुशासन की मार झेल रही पब्लिक के लिए संघर्ष करने को सड़क पर खुद को घसीटे जाने के लिए तैयार हैं?या बूढ़े होकर सुकून से बुढ़ावा काट रहे सत्तासीन नेताओं से संघर्ष की उम्मीद कर रहे हैं? इन नेताओं से सिर्फ इतनी अपेक्षा की जा सकती है कि यह लोग ट्विटर पर कोई बयान जारी कर देंगे. या संसद में कुछ हद तक गाली गलौज कर लेंगे, ज्यादातर की तो उतनी भी हिम्मत नहीं है.

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आप नेता संजय सिंह बहुत जमीनी स्तर से उभरे हुए नेता हैं. वह लगातार भाजपा पर हमलावर हैं. भाजपा को ऐसे नेताओं से डर है, जो सचमुच के नेता हैं और जनता के लिए सड़क पर लोट सकते हैं, भूख से मरने तक अनशन पर बैठ सकते हैं

आम आदमी पार्टी के नेताओं से भारतीय जनता पार्टी को डर है. इस पार्टी के सिद्धांतों पर न जाएं, लेकिन चाहे वह अरविंद केजरीवाल हों, मनीष सिसोदिया हों, गोपाल राय हों, संजय सिंह हों. यह नेता अपने दम पर उभरे हैं, जैसे ममता बनर्जी, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव उभरे थे. आप के नेताओं ने डंडे खाए हैं, आंसू गैस के गोले झेले हैं. अगर इनका दिमाग घूम गया तो यह नेता फिर सड़क पर बैठ सकते हैं. नरेंद्र मोदी की मेहनत, उत्साह, जोश, काइंयापन सभी का जवाब अरविंद केजरीवाल व उनकी टीम में है. अगर एक नेता जेल जाएगा तो दूसरा, फिर तीसरा, फिर चौथा नेता खड़ा होगा, यह दम आम आदमी पार्टी में है.

यही वजह है कि सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर आम आदमी पार्टी है. भारत का और कोई दल भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले में ही नहीं है.

(सभी फोटो सोशल मीडिया फेसबुक से साभार)

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