Silicon Valley Bank

Silicon Valley Bank  : अमेरिकी बैंक डूबने से टेक कंपनियों की बैंड बजी, लेकिन यह ब्याज दरें बढ़ने का एक चक्र

जब कोई बैंक डूबता है तो वह सिर्फ खुद नहीं डूबता. अपने निवेशकों और कर्ज लेने वालों को भी डुबा देता है. वित्तीय सलाहकार प्रभात त्रिपाठी बता रहे हैं Silicon Valley Bank  के डिफॉल्ट का असर…

अमेरिका में Silicon Valley Bank  के डिफॉल्ट करने से सबसे ज्यादा असर सिलिकॉन वैली की टेक कम्पनियों पर पड़ा है. उन्होंने अपने नुकसान को बचाने के लिए हर तरफ कहना शुरु कर दिया कि SVB को बचाया जाए नहीं तो 2008 की तरह ही वैश्विक फाइनेंशियल क्राइसिस आ जाएगी.

उनका उद्देश्य दबाव बनाकर अपने haircut को कम करना है. इनमें से कई बड़े टेक्नोलॉजी वालों को भी इतनी भी समझ नहीं थी कि अपने सारे डिपॉजिट एक बैंक में न रखकर तीन-चार बड़े बैंकों और लिक्विड फंड्स में रखते जिससे कि रिस्क डायवर्सिफाइड रहता. सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों पर इन टेक्नोलॉजी से जुड़ी कम्पनियों के लोगों का प्रभाव बहुत अधिक है. नतीजतन तमाम इन्फ्लुएंसर बताने लगे कि इतनी भारी क्राइसिस है कि दुनिया के बैंकों में 2008 जैसी तबाही आ जाएगी.

मेनस्ट्रीम मीडिया पर भी सोशल मीडिया का प्रभाव काफी रहता है, यह हम सब जानते ही हैं. जबकि असलियत यह है कि उस तरह की क्राइसिस की सम्भावनाएँ अभी दूर की कौड़ी है. यदि सारे डिपॉजिटर्स सभी बैंकों से पैसा निकालने दौड़ पड़ें तब तो सभी बैंक डिफॉल्टर हो जाएं, मगर ऐसा होने के कारण मौजूद नहीं हैं.

2003 से 2007 तक अमेरिका में ब्याज सवा चार फीसदी बढ़ाया गया था और इधर साल भर में ही उतनी बढ़त की गई है. तमाम वित्तीय संस्थान अपनी स्ट्रैटेजी और एसेट्स की रीबैलेंसिंग भी नहीं कर पाए हैं. जिन संस्थानों ने ज्यादा leverage ले रखा है उन्हें दिक्कत का सामना तो करना पड़ेगा और cascading effects भी होंगे. मगर अब बैंक पिछली क्राइसिस के समय से ज्यादा व बेहतर एसेट्स maintain कर रहे हैं. हर वित्तीय क्राइसिस के बाद ब्याज दरें कम की जाती हैं और हर बार लगातार ऊपर जाने के बाद क्राइसिस लाती हैं, यह एक cycle बन गया है.

 

 

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