महाड़ आंदोलन

महाड़ आंदोलन क्या है ? What is mahad Movement?

महाड़ आंदोलन क्या है, यह एक सामान्य सवाल है. यह देश की एक चौथाई आबादी के उस हक की लड़ाई थी, जो न मिलने के कारण उन्हें जानवरों से भी कम अधिकार थे

भारत के इतिहास में महाड़ आंदोलन का विशेष स्थान है. 20 मार्च 1927 को दोपहर का समय था. डॉ भीमराव अंबेडकर अपने साथियों के साथ महाड़ सत्याग्रह के तहत रायगढ़ जिले के महाड़ नामक स्थान पर दलितों को सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीने व अधिकार दिलाने के मकसद से पहुंचे थे. इसे चवदार तालाब सत्याग्रह व महाड का मुक्तिसंग्राम भी कहा जाता था.

अपने समर्थकों के साथ जब अंबेडकर महाड़ पहुंचे तब सूरज की किरणें तालाब पर पड़ रही थीं. पानी की उस चमक को देखते सबसे पहले डॉ अंबेडकर तालाब की सीढ़ियों से नीचे उतरे.

अंबेडकर ने महाड़ के चावदार तालाब से दो घूंट पानी पीकर ब्राह्मणवाद के कानून को तोड़ा और ब्राह्मणवादियों को खुली चुनौती दी थी. यही वह ऐतिहासिक पल था, जिसने अछूतों को राह दिखाई.

यह एक प्रतीकात्मक काम था. 20 मार्च 1927 को हजारों अछूत कहे जाने वाले लोगों ने उस तालाब से अपनी अंजुली भरकर पानी पिया, जहां उन्हें पानी छूने की मनाही थी.

अंग्रेजी शासनकाल के दौरान 1924 में महाराष्ट्र के समाज सुधारक एसके बोले ने बम्बई विधानमंडल में एक विधेयक पारित करवाया. इसमें सरकार द्वारा संचालित और बनाई सभी संस्थाओं, अदालत, विद्यालय, चिकित्सालय, पनघट, तालाब आदि सार्वजनिक स्थानों पर अछूतों को प्रवेश व उनका उपयोग करने का आदेश दिया गया. अंबेडकर ने इसी कानून को लागू कराने के लिए अभियान चलाया था. इसके माध्यम से यह सिद्ध किया गया था कि दलित भी मनुष्य हैं, दलितों को भी अन्य मनुष्यों के समान मानवीय अधिकार हैं.

दरअसल सवर्ण हिन्दुओं ने नगरपालिका का आदेश मानने से इनकार कर दिया. इसे देखते हुए अंबेडकर ने अपने सहयोगियों के साथ 19 और 20 मार्च 1927 को महाड़ के चवदार तालाब को मुक्त कराने हेतु सत्याग्रह करने का निश्चय किया. करीब 5,000 महिला और पुरुष इस सत्याग्रह में शामिल हुए. महाड़ पहुंचकर अंबेडकर ने पानी हाथ में लिया, फिर सभी लोगों ने पानी पिया. यह अस्पृश्य समाज के लिए ऐतिहासिक क्षण था.

यह दासता और गुलामी को तोड़ने की शुरुआत थी. लेकिन बौखलाए हिन्दुओं ने भीड़ पर लाठियों से हमला कर दिया. बहुत से लोग घायल हुए. अंबेडकर ने अछूतों को संयम व शांति रखने की सलाह दी और कहा हमें प्रतिघात नहीं करना है.

हमले झेल रहे लोग शांत रहे. सवर्ण इतने पर ही नहीं माने. अंबेडकर की इस जुर्रत का बदला सवर्ण हिंदुओं ने दलितों से लिया. दलित बस्तियों पर हमले किए गए और बूढ़े, बच्चे, महिलाएं सभी को लाठियों से पीटा गया. उनके घरों में तोड़फोड़ की गई.

गोबर डालकर तालाब का शुद्धिकरण

सवर्णो ने अछूतों के छूने से अपवित्र हुए चवदार तालाब का शुद्धिकरण का फैसला किया. हिंदुओं का कहना था कि अछूतों ने तालाब से पानी पीकर तालाब को अपवित्र कर दिया है. ब्राह्मणों के कहे के मुताबिक पूजा पाठ हुई. तालाब में पंचगव्य (गाय का दूध, घी, दही, मूत्र और गोबर) डाला गया. इस तरीके से तालाब को फिर से शुद्ध किया गया.

अंबेडकर को नए सिरे से सत्याग्रह करना पड़ा. 25 दिसंबर 1927 को हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा हुए. हालांकि सत्याग्रह नहीं हुआ. अंबेडकर ने बम्बई हाईकोर्ट में करीब 10 साल लड़ाई लड़ी. आखिरकार 17 दिसंबर 1936 को अछूतों को चवदार तालाब में पानी पीने का अधिकार मिल गया.

यह अछूतों के लिए ऐतिहासिक जीत थी. यह पानी पीने के अधिकार के साथ इंसान होने के अधिकार जताने के लिए लड़ी गई लड़ाई थी.

यह हजारों साल की सवर्ण सामंती सत्ता को दी गई चुनौती थी, जिसमें वह अछूतों को वह हक देने को भी तैयार नहीं थे, जो जानवरों को भी मिला हुआ था. जानवर तालाब में पानी पी सकते थे, लेकिन अछूत कही जाने वाली जातियां तालाब का पानी नहीं पी सकती थीं.

महाड़ सत्याग्रह तभी अंतिम परिणति पर पहुंच सकता है, जब भारत से जातीय घृणा और ऊंच नीच का व्यवहार खत्म हो जाए. महाड़ सत्याग्रह अभी भी अंबेडकर की तरह किसी मसीहा के इंतजार में है, जो गैर बराबरी के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़े और ऊंच नीच का भेदभाव खत्म हो सके.

 

 

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