Jati Ka Chakravyuh aur Arakshan

Jati Ka Chakravyuh aur Arakshan : वंचितों की मौजूदा स्थिति दिखाने के साथ भविष्य की राह पर भी चर्चा करती है किताब

Jati Ka Chakravyuh aur Arakshan किताब Satyendra ने लिखी है, जिसे प्रतिष्ठित प्रकाशक राजकमल ऐंड संस ने छापा है.

सुरेश गुरदीप कुमार

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में मेले के आखिरी दिन 5 मार्च 2023 को “जाति का चक्रव्यूह और आरक्षण” नामक पुस्तक का औपचारिक रूप से विमोचन हुआ. मैं इसे  खरीद लाया. लेखक द्वारा लिखी ये किताब भारतीय समाज मे जाति के प्रश्न और आरक्षण से जुड़े सवालों को अकादमिक तरीके से ही नहीं, बल्कि एक कार्यकर्त्ता के तेवर से भी उठाती है और सामाजिक–आर्थिक बरअक्स समझने का प्रयास करती है. आम पाठकों और शोधर्थियों के लिये समान रूप से उपयोगी यह किताब हिंदी क्षेत्र मे आरक्षण के सवाल को बेहतर तरीके से समझने के लिये बेहद कारगर है.पुस्तक को सात भागों मे बांटा गया है.

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पहले भाग “भारतीय समाज मे जाति व्यवस्था, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और वर्तमान स्थिति” की शुरुआत सरदार वल्लभभाई पटेल के कथन “जब कोई अपने कुत्ते और बिल्ली को छूने के बाद स्नान नहीं करता तो दूसरे व्यक्ति को छूने मात्र से ही वह क्यों स्नान करे?…. यदि स्वराज मिल भी गया तो हिन्दू धर्म को तब तक कलंकित करता रहेगा, जब तक भारत मे छुआछूत रहेगा.” से की गई है. लेखक द्वारा जाति व्यवस्था की शुरुआत हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ चारों वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद मे वर्णन से बताया गया है. ऋग्वेद के दशम मण्डल के पुरुष सूक्त मे बताया गया है, जब देवों ने पुरुष को विभाजित किया तो ब्राह्मण उसका मुख़, क्षत्रिय भुजाएँ, वैश्य जंघाएँ और पैरों से शूद्र प्रकट हुआ. महाभारत काल का जिक्र करते हुऐ लेखक बताता है की ब्राह्मण शौनाचार से, क्षत्रिय पराक्रम से, वैश्य उद्योग से और शूद्र तीन वर्णों की सेवा से संपत्ति पाता है. इस दौर मे पारलौकिक भय दिखाने की, स्वर्ग नरक की परिकल्पना, मौत के बाद किसी ताकत या ईश्वर द्वारा सजा दिये जाने की परिकल्पना पेश की जाने लगी, जिसका जिक्र किताब में किया गया है.

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उपनिषद काल में जातियों का विस्तार से लेकर शुंग डायनास्टी और मनुस्मृति, गुप्त काल मे शूद्रों के साथ महिलाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता था, संस्कृत ग्रंथों में स्त्री व शूद्र के जीवन का मूल्य एक ही रखा गया है. तीनों वर्ण के लोग वैदिक विधि से स्नान और जप कर सकते है परन्तु स्त्री और शूद्र को मनाही है. इस्लाम के आगमन और नये संघर्ष के दौरान 14 वी व 15वी शताब्दी मे सामाजिक आंदोलन के झंडारोही संत नामदेव, कबीर, नानक, रैदास, तुलसीदास, चैतन्य, दादू, रज्जब का जिक्र किया गया है. कबीर द्वारा राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक असमानता के विरुद्ध प्रतिक्रिया एवं कुरीतियों का जोरदार विरोध किया गया, दर्शाया गया है. अंग्रेजी राज और जाति व्यवस्था के दौरान 18 शताब्दी मे जातिवाद किस तरह अपने चरम पर था, दर्शाया गया है.

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लेखक द्वारा अछूतों द्वारा गले मे हांडी और कमर मे झाड़ू बाँधकर चलने को महाराष्ट्र मे पेशवा राज तक सीमित बताया गया है, दक्षिण मे निम्न वर्ग की औरतों को स्तन ढककर चलने का अधिकार नही था, बताया गया है. दूल्हे के घोड़ी पर सवार होने, शमशान घाट तक जाने के लिये अंतिम यात्रा का रास्ता रोके जाने की घटनाओं का जिक्र है. जाति को लेकर आज भी घृणा जारी है, औकात मे रह,  तू एससी है, अपने लेवल मे रह, अपना मुँह बंद कर, काली बिल्ली की तरह मेरा रास्ता मत काट जैसी टिप्पणीयों को, MBBS डॉ बालमुकंद भारती की आत्महत्या पर बनी डॉक्यूमेंट्री ‘द डेथ ऑफ़ मेरिट’ का जिक्र सोर्स समेत किया गया है. दिल्ली के AIIMS जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में घटी घटना का जिक्र इसमें है.

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पुस्तक के दूसरे भाग मे आरक्षण सैद्धान्तिक आधार और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य मे आधुनिक भारत मे जातीय संघर्ष का दौर और पिछड़े वर्ग के अधिकारों की लड़ाई मे शुरुआती दौर मे ज्योतिबा फुले के योगदान का जिक्र किया गया है. बाल गंगाधर तिलक द्वारा केसरी और मराठा नामक उनके अखबारों मे अंग्रेज सरकार के स्कूल खोलने और किसानों के बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश की आलोचना, लोहार के बच्चे को धोँकनी से, मोची के बेटे को सुए से दूर आधुनिक शिक्षा की और ले जाने के नकारात्मक प्रभाव पड़ने पर जोर दिया गया है.

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शिवाजी वंशज शाहूजी द्वारा डॉ भीम राव अम्बेडकर को विदेश मे शिक्षा प्राप्त करने और मूक नायक अख़बार निकालने मे आर्थिक मदद दिए जाने का जिक्र, शूद्रो व अछूतों के बच्चों के लिये छात्रवृतियाँ, छात्रावास, हर गांव मे प्राथमिक विद्यालय, महिलाओं के लिए कन्या स्कूल, वतन दारी प्रथा का अंत, शाहू जी द्वारा 1902 मे अपने राज्य मे नौकरी में आरक्षण दिए जाने का जिक्र पुस्तक मे किया गया है. बड़ोदा के मराठा शासक सयाजी राव गायकवाड़ द्वारा सार्वभौम शिक्षा के लिये सेंट्रल लाइब्रेरी निर्माण जिसमे 90 हज़ार पुस्तकें रखी होना का जिक्र लेखक द्वारा किया गया है. द्रविड़ आन्दोलन का सबसे सशक्त चेहरा ई वी रामासामी नायकर पेरियार का जिक्र किया गया है.

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पुस्तक के तीसरे अध्याय में ‘आरक्षण किसके लिये और क्यों’ में मंडल कमीशन और पिछड़े वर्ग के आरक्षण बारे है. देश के नामी अखबारों एशियन एज, द हिन्दू, बिज़नेस स्टैण्डर्ड द्वारा फैलाए गये भ्रम और सीबीआई डायरेक्टर जोगिंदर सिंह के लेखों को लेखक द्वारा तथ्यों के आधार पर बेनकाब किया गया है.अरुण शौरी तत्कालीन इंडियन एक्सप्रेस न्यूपेपर के संपादक पद पर बैठ कर मण्डल कमीशन के विरोध मे एक तरफ़ा मुहीम, “ वर्शिपिंग अ फालस गॉड” के माध्यम से अनुसूचित जाति और जनजाति के उथान मे डॉ अम्बेडकर की नगण्य भूमिका शौरी जैसे इंटेलेक्चुअल की मानसिकता दर्शाती है. मण्डल कमीशन के दौरान हिंदी भाषी पट्टी मे पिछड़े वर्ग के उत्थान, 20 फरवरी 1994 मे ओबीसी आरक्षण के तहत पहले कैंडिडेट वी राजशेखर के उल्लेख से लेकर आर्थिक आरक्षण बारे लेखक ने बेबाकी से लिखा है.

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चौथे अध्याय मे मंडल कमीशन और राजनीति के तहत वी पी सिंह ने गोरखपुर रैली मे कहे “भूख एक ऐसी आग है कि जब वह पेट तक सीमित रहती है तो अन्न और जल से शांत होती है और जब वह दिमाग़ तक पहुँचती है तो क्रांति को जन्म देती है,  इस पर गौर करना होगा.” से शुरू होती है. मंडल कमीशन के विरोध मे सवर्ण लिब्रेशन फ्रंट संगठन का उभरना, आरएसएस और बीजेपी का रुख, कमण्डल को लेकर लाल कृष्ण आडवाणी की देश भर मे रथ यात्रा, चरण सिंह , मुलायम सिंह, मायावती, कल्याण सिंह, उमा भारती, लालू प्रसाद यादव, राम बिलास, पासवान, इंदर कुमार गुजराल, चन्द्रशेखर, देवगौड़ा, कर्पूरी ठाकुर, देवी लाल, शरद यादव आदि पिछड़े वर्ग और किसान वर्ग से सम्बंधित सभी नेताओं बारे लेखक ने महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाओं का जिक्र संक्षिप्त रूप मे रोचक जानकारी के रूप मे लेखक ने किया है.

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पाँचवे अध्याय मे आरक्षण का प्रभाव के तहत लेखक, ओबीसी एससी, एस टी वर्गों मे सरकारी नौकरियों, छोटे मोटे व्यवसायों के कारण देश मे एक विशाल मध्य वर्ग उभरा है, जो गरीबी रेखा से नीचे जी रहा था, विभिन्न सरकारों की और से इन वर्गों को दी गई सहूलियतों से मिले फायदे को स्वीकारता है.

छठे अध्याय मे आरक्षण व्यवस्था से छेड़छाड़ और उसके प्रभाव बारे व सातवें अध्याय मे भविष्य का सवाल महात्मा गांधी के कथन आर्थिक समानता की सलाह के साथ, डॉ अम्बेडकर की परिकल्पना की शहरीकरण से जाति शिथिल होगी.देश मे करीब 1% लोग सरकारी नौकरी पर निर्भर है. ऊपर से आये दिन पब्लिक सेक्टर यूनिट बिकने और विलय होने के कारण निजीकरण होता जा रहा है. जातिय हिंसा, भेदभाव, उत्पीड़न की खबरों से अख़बार पटे रहते है का जिक्र लेखक द्वारा किया गया है.आज 12/3/23 ही के अख़बार इंडियन एक्सप्रेस मे पंजाब के भाडला के प्राइमरी स्मार्ट स्कूल, बाज़ीगर बस्ती बारे फ्रंट पेज पर विस्तृत जातीय भेदभाव की न्यूज़ छपी है.

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मुझे याद है की मेरे एक सवर्ण मित्र द्वारा बुरा ना मानने की शर्त पर एक बात कही थी, कि हम अनुसूचित जाति के डॉक्टर से इलाज़ करवाने से डरते हैं कि कही गलत दवाई ना दे दे और मर जाएं. मित्र अनुसूचित जाति के डॉक्टर द्वारा गलत दवाई देने और मरने वालों बारे ना तो कहीं छपी खबर दिखा पाए, ना आंकड़े पेंश कर पाए. जबकि अनुसूचित जाति, जनजाति के कैंडिडेट्स से कही कम नंबर पाए प्राइवेट कॉलेज से महंगी फीस भर कर डिग्री हासिल करने वालों की योग्यता पर चुपी साध गए.

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“जाति का चक्रव्यूह और आरक्षण” पुस्तक देश मे जाति और आरक्षण के विषय को समझने में मददगार और आरक्षण बारे फैली भ्रान्ति का निराकरण करती है. भाषा बेहद सरल, एक अध्याय दूसरे से जोड़े रखता है. मंडल कमीशन के बाद की राजनीति को पूर्ण रूप से समझा जा सकता है. प्राचीन भारत पर लिखी डी. एन. झा की पुस्तक की तरह जाति और आरक्षण बारे संक्षिप्त और पूर्ण पुस्तक कही जा सकती है. लेखक द्वारा हर अध्याय मे वर्णित तथ्यों बारे अध्याय के अंत मे तथ्य के सोर्स को बताया गया है, की कौन सी बात कहां से ली गई है, घटना की विश्वासनीयता बताता है, मनगढ़ंत होने की गुंजाइश ना के बराबर है. पुस्तक मे लेखक के शोध और मेहनत दिखाई देती है. ईमानदारी से कहूं तो छात्रों, शोधार्थियों और जाति और आरक्षण विषय मे रुचि रखने वालों के लिये सम्पूर्ण व बेहद उपयोगी पुस्तक है.

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