बच्चों में परफेक्शन

बच्चों में परफेक्शन को लेकर आप परेशान हैं और बच्चे आपसे झूठ बोलने को मजबूर

बच्चों में परफेक्शन की जरूरत क्या है, जीने दें बच्चों को अपनी जिंदगी

सौरभ प्रभाकर

बच्चों में परफेक्शन के लिए मारामारी रहती है. नया सेशन शुरू हो गया है. नई क्लास शुरू हो गई है. नई-नई किताबें आ गई होंगी बच्चों की. एक नई शुरुआत है बच्चों के लिए और आपके लिए भी.

कुछ बातें अभिभावकों से

बच्चों से हम पूरे साल मिलते रहेंगे, उनसे पूरे साल बातें होंगी, लेकिन अभी आपसे कुछ बातें करनी हैं. दिन के 24 घंटे में से ज्यादातर वक़्त एक बच्चा या तो घर में होता है या स्कूल/कोचिंग में, इसलिए उसकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी हमारी ही है.

मैं जानता हूँ कि आपकी नीयत अपने बच्चों के लिए बहुत अच्छी और ईमानदार है. आप बहुत मेहनत कर के बच्चों के लिए अपना बेस्ट दे रहे हैं लेकिन फिर भी कहीं न कहीं आपकी बच्चों से शिकायतें रह जाती हैं.

आपके बच्चे आपसे डरकर झूठ बोलते हैं

मैं क्लास में बच्चों से अक्सर पूछता हूँ कि – “अगर तुम्हारी सारी जरूरतों को मम्मी – पापा पूरा करते हैं तो अपने मन की बातें उनसे क्यों नहीं करते? अपने सीक्रेट्स शेयर करने के लिए तुम दोस्तों को क्यों चुनते हो?”

पता है बच्चे क्या जवाब देते हैं? बच्चे कहते हैं कि – “सर उन्हें बता कर मार थोड़ी खानी है.”

ये दूरियाँ क्यों आ रही हैं आपके बीच में? बच्चे आपसे बातें क्यों छुपाते हैं? बच्चे आपसे झूठ क्यों बोलते हैं?

पक्षियों की नजर से देखें अपने बच्चों को

मशहूर बर्ड वॉचर सालिम अली कहते थे कि पक्षियों से घुलने मिलने के लिए हमें दुनिया को पक्षियों की नजरों से देखना होगा. जब हम डेढ़-दो साल के किसी बच्चे से बातें करते हैं तो उसी के जैसी तोतली भाषा में बातें करते हैं ना? तो किसी टीनएजर से बातें करते हुए हम उसके जैसा क्यों नहीं सोचते? तब हम उपदेश देने वाले मोड में क्यों रहते हैं? तब हम उसे हर बात के लिए जज क्यों कर रहे होते हैं?

एक बार उसके नज़रिये से भी तो देखने की कोशिश कीजिए, उसके स्तर पर आ कर देखिये एक बार, उसके बाद वो आपसे बातें नहीं छुपायेगा और आपकी बातें मान भी लेगा.

बच्चों में परफेक्शन के लिए दबाव न डालें

एक जरूरी बात ये भी है कि अपने बच्चों पर परफेक्ट बनने का दबाव मत डालिए. उन्हें परफेक्ट बनाने की दौड़ में आप अपना रिश्ता बर्बाद मत कीजिए. नब्बे प्रतिशत लाने के बाद भी जब आप उससे बचे हुए 10 नंबर का हिसाब माँग रहे होते हैं, वो गलती मत कीजिए. जिन रिश्तेदारों और पड़ोसियों को दिखाने के लिए आप उसे परफेक्ट बना रहे हैं, यकीन मानिये वो लोग आपके बच्चे को परफेक्ट बना हुआ देखकर बहुत खुश नहीं होने वाले. और क्यों दिखाना है किसी को? आपका बच्चा इंसान है या ट्रॉफी?

बच्चे को क्लास में फर्स्ट आने की जरूरत क्या है

आपको क्यों चाहिए कि आपका बच्चा हर बार क्लास में फर्स्ट आए? आप खुद परफेक्ट हैं क्या? आप जहाँ काम करते हैं वहाँ हर बार “Employee of the month” रहते हैं क्या? आप जो काम करते हैं उसमें परफेक्ट हैं क्या? आप हमेशा से अपने ऑफिस के सबसे Productive Worker रहे हैं क्या?

नहीं ना!

तो आपको अपने बच्चे से परफेक्शन क्यों चाहिए?

सहयोग से दुनिया चलती है प्रतिस्पर्धा से नहीं

आपको अपने बच्चे के भविष्य की चिंता है इसलिए उसे Competition के लिए तैयार कर रहे हैं. यकीन मानिये ये दुनिया Competition के मुकाबले Cooperation से ज्यादा बेहतर चल सकती है. दुनिया के इतिहास में तमाम ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं जो बताते हैं कि दुनिया Cooperation से ज्यादा बेहतर चलती है वर्ना Competition ने तो दुनिया को विश्वयुद्ध जैसी विभीषिका दी है.

बच्चा नया सीखेगा तो पुराने से होगी असहमति

एक छोटी सी बात और – आप ये समझिए कि आपने अपने बच्चों को कुछ सीखने ही बाहर भेजा है तो जब वो कुछ नया सीखेगा तो पुराने से असहमति होंगी. उसकी असहमति को असम्मान मत माना करिए. अगर आप चाहते हैं कि वो हर बात में पूरी तरह आपसे ही सहमत रहे तो उसे पढ़ने-लिखने मत भेजिए. एक तरफ आप चाहें कि वो नई चीजें सीखे और दूसरी तरफ आप चाहें कि वो आपसे असहमत भी ना हो, तो ये सम्भव नहीं है.

हर पीढ़ी के पास अपनी सोच और समझ होती है, उसके पास भी होगी. असहमति को असम्मान मानना बंद करेंगे तो चर्चा करने के रास्ते खुलेंगे. सिरे से खारिज कर देंगे तो बात नहीं बनेगी. साथ बैठ कर चर्चा कीजिए और तब उसे सही-गलत के बारे में बताएंगे तो बात बनेगी.

(लेख सौरभ प्रभाकर की फेसबुक वाल से, फोटो फेसबुक से साभार)

 

 

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