अदाणी समूह में पैसे लगाने वाली 13 संस्था

सेबी यह पता नहीं लगा सका है कि अदाणी समूह में पैसे लगाने वाली 13 संस्थाओं में किसने पैसे लगाए हैं!

उच्चतम न्यायालय की समिति ने कहा है कि सेबी की जांच के आधार पर समिति किसी नियामकीय विफलता के निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी है. अदाणी समूह में पैसे लगाने वाली 13 संस्था के मालिकों का पता नहीं चल पाया है. सेबी यह सबूत नहीं जुटा सका है कि विदेशी सस्थाओं से अदाणी समूह में निवेश में किसी नियम का उल्लंघन हुआ है.

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की जांच में 13 संस्थाओं के माध्यम से 42 लोगों के निवेश की जानकारी मिली है. सेबी ने प्रवर्तन निदेशालय  और आयकर विभाग की मदद से जांच की, लेकिन इन संस्थाओं में पैसे लगाने वाले लोगों के बारे में जानकारी नहीं मिल सकी है. इन 13 संस्थाओं ने अदाणी समूह में धन लगाया है. जांच में अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि पैसे लगाने वाले असली लोग कौन हैं।

उच्चतम न्यायालय विशेषज्ञ समिति के बयान को लेकर ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि न्यायालय की जांच में अदाणी समूह क्लीन चिट मिल गई है. जबकि न्यायालय की समिति ने ऐसा कुछ नहीं कहा है. समिति का कहना है कि वह अदाणी समूह के शेयरों में हुई तेजी को लेकर किसी तरह की नियामकीय विफलता का निष्कर्ष नहीं निकाल सकती है. साथ ही समिति ने यह भी कहा कि सेबी विदेशी संस्थाओं से धन प्रवाह के कथित उल्लंघन की अपनी जांच में कोई सबूत नहीं जुटा सका है.

हिंडनबर्ग के पास था सबूत

न्यायालय की 6 सदस्यों वाली समिति ने कहा कि अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट से पहले अदाणी समूह के शेयरों में ‘शॉर्ट पोजीशन’ बनाने का एक सबूत था और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद भाव गिरने पर इन सौदों में मुनाफा दर्ज किया गया.

समिति ने उच्चतम न्यायालय को सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि ऐसे में आंकड़ों के आधार पर सेबी के स्पष्टीकरण को ध्यान में रखते हुए समिति के लिए यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं होगा कि कीमतों में हेराफेरी के आरोप में किसी तरह की नियामक विफलता रही है.

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प्रभावशाली प्रवर्तन नीति की जरूरत

समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक प्रभावशाली प्रवर्तन नीति की जरूरत है, जो सेबी की सांविधिक स्थिति के अनुरूप हो. समिति यह भी नहीं कह सकती कि न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता नियमों या संबंधित पक्षों के बीच लेनदेन पर सेबी की ओर से नियामकीय विफलता रही है.

बाजार नियामक सेबी अदाणी समूह के खिलाफ आरोपों की जांच कर रहा था और उसके समानांतर शीर्ष अदालत ने समिति की नियुक्ति की थी.

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अदाणी समूह के मामले की जांच करने वाली समिति में कौन कौन था

विशेषज्ञ समिति की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएम सप्रे कर रहे थे. साथ ही सदस्यों में ओपी भट्ट, केवी कामथ, नंदन नीलेकणी और सोमशेखर सुंदरेसन शामिल थे.

इन वजहों से अदाणी की जांच

अदाणी समूह में हिस्सेदारी रखने वाली 13 विदेशी संस्थाओं के स्वामित्व की अंतिम श्रृंखला स्पष्ट नहीं थी. इसके कारण सेबी को संदेह हुआ. उसके बाद अदाणी की सूचीबद्ध कंपनियों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की हिस्सेदारी की जांच हुई.

सेबी को क्या पता चला

सेबी को 13 विदेशी संस्थाओं की प्रबंधन के तहत संपत्ति (एयूएम) में योगदान देने वाले 42 की जानकारी मिली है. इनके बारे में जानकारी जुटाई जा रही है. सुप्रीम कोर्ट की समिति की रिपोर्ट के मुताबिक सेबी का लंबे समय से यह संदेह रहा है कि कुछ सार्वजनिक शेयरधारक वास्तव में सार्वजनिक शेयरधारक नहीं हैं, बल्कि इन कंपनियों के प्रवर्तकों के मुखौटा हो सकते हैं.

अभी अंतिम स्वामित्व का निर्धारण नहीं

प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग की मदद से सेबी ने जांच की. फिर भी सेबी इन 13 संस्थाओं के अंतिम स्वामित्व का निर्धारण नहीं कर सकी. समिति ने कहा कि बाजार ने अदाणी के शेयरों का पुनर्मूल्यांकन किया है. अदाणी के शेयर 24 जनवरी से पहले के स्तर पर नहीं लौटे हैं, लेकिन नए स्तर पर स्थिर हैं.

अदाणी के खुदरा निवेशकों का जोखिम बढ़ा

समिति ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार 24 जनवरी 2023 के बाद अदाणी के शेयरों में खुदरा निवेशकों का जोखिम बढ़ा है. हालांकि समिति का मानना है कि भारतीय शेयर बाजार समग्र रूप से अस्थिर नहीं हैं.

 

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