Sengol Kya Hai

Sengol Kya Hai :   सेंगोल क्या है, जिसे स्वतंत्रता के समय जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था

आखिर यह गोल्डन Sengol Kya Hai, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्रहण करेंगे और उसे नई संसद में लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास स्थापित करेंगे? दरअसल मोदी कपड़ों, बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने, हाथी के साथ फोटो खिंचाने, मोर के साथ फोटो खिंचाने, रंग बिरंगे कलफदार कपड़े पहनने से लेकर देश विदेश में घूमने, विभिन्न सांस्कृतिक समारोहों में वहां के स्थानीय कपड़े पहन लेने जैसे जवाहरलाल नेहरू के कामों की नकल पिछले 9 साल से लगातार कर रहे हैं. अब नरेंद्र मोदी सेंगोल ग्रहण कर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एक नकल और करने का अपना शौक पूरा करेंगे.

Sengol Kya Hai, जो इंटरनेट पर छा गया और लोग जानने के लिए उत्सुक हो गए?  सेंगोल की यादें देश की स्वतंत्रता के साथ भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी हुई हैं. सेंगोल को हिंदी में राजदंड कह सकते हैं. इसे इंग्लिश में Sceptre कहा जा सकता है. दस्तावेजों के मुताबिक भारत के अंतिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री बनने के पहले जवाहरलाल नेहरू से पूछा था कि क्या आप भारत की आजादी किसी खास तरह के प्रतीक के माध्यम से मनाना चाहते हैं. उसके बाद सेंगोल सामने आया था. सेंगोल का संबंध आठवीं सदी के चोल साम्राज्य से है. यह तमिल शब्द सेम्मई से लिया गया है, जिसका अर्थ है नीति परायणता. सेंगोल ग्रहण करने वाला व्यक्ति न्यायपूर्ण व निष्पक्ष शासन करने का आदेश ग्रहण करता है.

सी राजगोपालाचाली ने दिया था सेंगोल का सुझाव

नेहरू ने मद्रास के मुख्यमंत्री रह चुके सी राजगोपालाचारी से प्रतीक के सिलसिले में बात की. उन्होंने सत्ता हासिल करने पर तमिल परंपरा में राजदंड प्राप्त करने के बारे में बताया. इस परंपरा के तहत राज्य का महायाजक (राजगुरु) नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर राजदंड देता था. परंपरा के मुताबिक यह राजगुरु थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का होता था. मठ के प्रमुख राजगुरु होते थे और वे परंपरा के मुताबिक चोल शासकों को सत्ता हस्तांतरण के मौके पर राज्याभिषेक के समय नए राजा को सेंगोल देते थे.

किसने बनाया था सेंगोल

राजगोपालाचारी ने नेहरू को यह सुझाव दिया कि आप सेंगोल लेकर सत्ता प्राप्त करें. उसके बाद मद्रास के आभूषण निर्माता वुम्मुगी बंगारू चेट्टी को सेंगोल बनाने के लिए 4 सप्ताह का वक्त दिया गया. ज्वैलर से कहा गया कि राजदंड के ऊपर नंदी भी होनी चाहिए. आभूषण निर्माताओं ने इसे वक्त पर तैयार कर दिया.

सेंगोल का किया गया शुद्धिकरण

14 अगस्त 1947 को वायसराय लार्ड माउंटबेटन ने सेंगोल को तमिल पुजारियों को सौंपा. थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के उप मुख्य पुजारी नादस्वरम वादक राजरथिनम पिल्लई और ओथुवर गायक सेंगोल ने उसका शुद्धिकरण किया. थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के डिप्टी पोंटिफ कुमारस्वामी थांबीरन ने नेहरू को सेंगोल दिया. जब पुजारियों ने यह सेंगोल दिया, उस समय शैव समाज के संदत थिरुगना सांबंथर द्वारा लिखे भजन गाए गए, जिसकी आखिरी पंक्तियां थी कि हम आज्ञा देते हैं कि उनकी विनम्रता स्वर्ग पर शासन करेगी.

सेंगोल मिलने के कुछ समय बाद नेहरू वह संसद भवन में अपना प्रसिद्ध भाषण ‘Tryst with destiny’ देने निकले थे. उन्होंने यह भाषण 14 और 15 अगस्त की रात को दिया था.

कहां रखा गया था सेंगोल

इस सेंगोल को इलाहाबाद में नेहरू के आवास आनंद भवन में बने म्यूजियम में रखा गया. इस समय उसे गोल्डन वाकिंग स्टिक के रूप में गलत तरीके से चिह्नित कर म्यूजियम में रखा गया. वह गोल्डन सेंगल लंबे समय से एक पुराने बॉक्स में धूल फांकता रहा, जिस पर लिखा गया था कि यह नेहरू को उपहार स्वरूप मिला गोल्डन वाकिंग स्टिक है.

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कैसे पड़ी सेंगोल पर नरेंद्र मोदी की नजर

चेन्नई के वुम्मुदी बंगारू ज्वैलर्स (वीबीजे) ने एक मिनट का एक वीडियो बनाया था. इसमें ज्वैलर्स ने दिखाया कि उसने सेंगोल बनाया था, जो अंग्रेजों द्वारा भारत को सत्ता के हस्तांतरण के समय दिया गया था.

वीबीजे के प्रबंध निदेशक अमरेंद्रन वुम्मुदी ने टाइम्स आफ इंडिया को बताया कि  2018 में सेंगोल की कहानी एक पत्रिका के माध्यम से सामने आई. दरअसल 1978 में कांची मठ के महा पेरियवा ने सेंगोल औऱ 1947 की घटना को अपने शिष्य को बताया था. इसके बाद वह कहानी प्रकाशित हुई. बाद में तमिल मीडिया उस कहानी को समय समय पर प्रकाशित करती रही.

तमिलनाडु में आयोजित आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान 2022 में एक बार फिर यह कहानी सामने आई, जिससे मोदी प्रभावित हुए. उन्होंने इस पूरी कहानी की जांच में दिलचस्पी दिखाई.

अमरेंद्रन ने इसे 2019 में इलाहाबाद के म्यूजियम में देखा और म्यूजियम के अधिकारियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की योजना बनाई. लेकिन कोरोना के कारण यह नहीं हो सका. उसके बाद ज्वैलर्स ने इस पर वीडियो बनाया.

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सेंगोल बनाने में कितना खर्च आया था

सेंगोल बनाने वाले बंगारू चेट्टी ने इसे 100 प्रतिशत शुद्ध सोने का इस्तेमाल कर तैयार किया. सरकार से उन्होंने 1947 में इसे बनाने के 15,000 रुपये लिए थे. बंगारू चेट्टी के बे वुम्मुदी इथिराज उस समय 22 साल के थे. उन्हें यह याद है कि उस समय शोरूम में प्रतिष्ठित सेंगोल देखने लोग आए थे.

सेंगोल के पीछे पड़े नरेंद्र मोदी

ज्वैलर्स का कहना है कि जब सेंगोल का इतिहास नए सिरे से सामने आया तो प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने दल का गठन किया, जिसमें पत्रकार एस गुरुमूर्ति भी शामिल थे. गुरुमूर्ति ने ज्वैलर्स से संपर्क साथा. दल ने इंदिरा गांधी नैशनल सेंटर फॉर आर्ट्स, इतिहासकारों और तमिलनाडु के शैव मठों के प्रमुखों से इसके बारे में जानकारी ली. फिल्म निर्माताओं प्रियदर्शन और साबू साइरिल ने इस पर डाक्यूमेंट्री बनाई. ज्वैलर्स ने भी इसकी एक प्रतिकृति बनाकर अपने कार्यालय में लगाई.

एक महीने बाद इंदिरा गांधी नैशनल सेंटर फार आर्ट्स ने ज्वैलर्स से संपर्क कर सोने और चांदी का इस्तेमाल कर एक और सेंगोल बनाया. यह सेंगोल सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा जाएगा और नेहरू वाला ओरिजिनल संसद भवन में लगाया जाएगा.

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अब क्या होगा नेहरू के सेंगोल का

इलाहाबाद में लंबे समय तक सेंगोल पड़ा था. जवाहरलाल नेहरू ने इलाहाबाद संग्रहालय के क्यूरेटर रहे एससी काला को जो सामग्री सौंपी थी, उसमें सेंगोल भी था. लेकिन इसे संग्रहालय को कब सौंपा गया, इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है. इसे 4 नवंबर 2022 को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय को सौंपा गया. नई संसद के उद्घाटन के मौके पर 28 मई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह सेंगोल ठीक उसी तरह दिया जाएगा, जैसे नेहरू को दिया गया था.

इस बार 20 अधीनम, जो गैर ब्राह्मण शैव परंपरा के तमिल मठ से जुड़े हैं, रीति रिवाज निभाएंगे. वे 20 मिनट के हवन या होमम के बाद सुबह 7.20 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सेंगोल सौंपेंगे. उसके बाद मोदी इसे स्पीकर की कुर्सी के बगल में स्थापित करेंगे.

 

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