कांस्टिपेशन से याद्दाश्त कमजोर हो जाती है, 9 माह से पहले बच्चा पैदा हो तो ऑटिज्म होता है! धुप्पलबाजी से काम चला रहा है मेडिकल साइंस

मेडिकल साइंस में रोज नए प्रयोग हो रहे हैं। भारत में तो डॉक्टरों को भगवान बना दिया गया है, लेकिन हकीकत यह है कि ऑटिज्म या कांस्टिपेशन जैसी मामूली लगने वाली समस्याओं में भी मेडिकल साइंस धुप्पलबाजी में जी रहा है।

मेडिकल साइंस,खासकर एलोपैथी को लेकर लोगों में दीवानगी टाइप है। कुछ मामलों में मेडिकल साइंस ने तरक्की कर भी ली है। उदाहरण के लिए किसी का हाथ गोड़ टूट जाए या कोई इस तरह की समस्या आ जाए तो मॉडर्न मेडिकल साइंस थोड़ी राहत दे देता है। लेकिन ज्यादातर बीमारियों का मेडिकल साइंस के पास कोई इलाज नजर नहीं आता।

आज ऑटिज्म के बारे में एक खबर पढ़ी। पीएलओएस मेडिसिन जर्नल में शोध छपा है कि नए शोध के मुताबिक पिता की मानसिक बीमारी का बच्चे पर असर पड़ता है।  इसके पहले यह माना जाता था मां को बीमारी हो तो बच्चे का समय से पूर्व जन्म होता है और उसके स्वास्थ्य को खतरा होता है।

शोध में बताया गया है कि 37 सप्ताह।पहले बच्चा हो जाए तो उसे ऑटिज्म जैसी समस्या हो जाती है।जितना जल्दी जन्म होता है बच्चे के स्वास्थ्य को उतना ही खतरा होता है। शोध में पाया गया कि माता पिता में से कोई एक मानसिक रूप से बीमार था इसलिए बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ।

खैर अगर भारत के हिसाब से देखें तो पहली बात तो यह है कि मानसिक रोग वग़ैरा या किसी तरह के रोग का आंकड़ा ही नहीं होता। आसपास में 7-8 समय से पूर्व पैदा हुए बच्चों की स्थिति देखें तो सब के सब टनाटन हैं। कुछ तो निहायत तेज तर्रार हैं। उनके मां बाप में से तो कोई।मानेगा भी नहीं कि वह मानसिक रोगी हैं!

इसी तरह एक और  शोध आया है कि जिसको लैट्रिन साफ नहीं होती, उन्हें याद्दाश्त की समस्या और एकाग्रता की कठिनाई होती है। यह भी लंतरानी टाइप शोध लगा।अमेरिका के मेसाचुसेट्स एमहर्स्ट यूनिवर्सिटी ने 1100 लोगों पर शोध किया और पाया कि 11% लोग इस तरह की समस्या से जूझते हैं। अमेरिका के बुजुर्गों में यह परेशानी ज्यादा है!

अब इसमें पेंच यह है कि जब बुढापा आता है तो तमाम लोगों की याद्दाश्त कम हो जाती है। कोई बुजुर्गों पर अलग शोध हो तो पता चले कि कांस्टिपेशन वाले बुजुर्ग ही याद्दाश्त की समस्या से जूझ रहे हैं कि जिनका ठीक ठाक खुलासा हो रहा है, उनको भी दिक्कत है याद्दाश्त की! साथ ही सैंपल साइज भी इतना छोटा है कि इससे कोई निष्कर्ष निकल ही नहीं सकता।

सही कहें तो इसको पढ़कर यही फील आया कि इससे ज्यादा शोध तो  हजार साल पहले आयुर्वेद में मूत या दूध पर हो चुका है। गाय भैंस, घोड़ी,बकरी तक के दूध और मूत के बारे में वर्णन मिलता है, जिससे लगता है कि इन चीजों पर उस दौर में बड़े सैम्पल साइज पर सर्वे हुए होंगे।

खैर… किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाना तो कठिन है। लेकिन यह कहा जा सकता है कि किसी भी रोग बीमारी को बॉडी खुद हील कर लेती है। शायद इसीलिए ज्यादातर डॉक्टर आस्तिक हो जाते हैं कि इलाज का ज्यादातर पोर्शन तो प्रभु की लीला है। और बोर्ड लगा दिया, आई सर्व, ही क्योर! यही मेडिकल साइंस है!

#भवतु_सब्ब_मंगलम

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