फूलन देवी का तरीका यूं तो किसी भी समस्या का समाधान नहीं करता, लेकिन मणिपुर की घटना में फूलन देवी फॉर्मूला बिल्कुल कारगर नहीं है. मणिपुर की हिंसा से जो तस्वीरें उभरकर आ रही हैं, उसमें न सिर्फ सरकार की नाकामी है, बल्कि देश के प्रधानमंत्री और मणिपुर के मुख्यमंत्री दोनों ही सक्रिय रूप से शामिल नजर आते हैं.
मणिपुर में हुई घटना के बाद तमाम लोगों ने फूलन देवी क्रांति कर कर रखी है. यानी जिसने उनके खिलाफ हिंसा की, उन्हें हथियार उठाकर मार दिया जाए.
पहली बात तो यह है कि फूलन देवी की तरह हथियार उठाकर हमले करना कोई समाधान नहीं है. जब तक मास मोबलाइजेशन नहीं होता है, तब तक इसका व्यापक असर नजर नहीं आता. फूलन देवी के केस में भी यही हुआ. मुलायम सिंह यादव ने फूलन देवी को न सिर्फ जेल से रिहा कराया, बल्कि संसद में भी पहुंचा दिया. लेकिन उसके बाद किसी महिला ने बलात्कार के खिलाफ कभी कोई हथियार नहीं उठाया. उस घटना ने कोई बदलाव नहीं किया. वह कोई नजीर नहीं सेट कर पाईं कि ऐसा करने पर और इस तरीके से इलाज करने पर बीमारी दूर होती है. इसके अलावा फूलन देवी पर तमाम आरोप प्रत्यारोप भी लगे.
दूसरी बात यह है कि मणिपुर में सरकार द्वारा प्रायोजित हिंसा है. आप कल्पना कर सकते हैं कि दो महिलाओं को नंगा घुमाया जाता है. पुलिस कार्रवाई तब होती है जब ढाई महीने बाद उसका वीडियो वायरल होता है, देश और दुनिया में उसको लेकर भयानक रूप से हंगामा होता है. उसके पहले राज्य के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं.
तीसरी बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ मणिपुर में हो रहे अत्याचार को अन्य राज्यों की घटनाओं से नहीं जोड़ा जा सकता है. कहीं किसी को प्रेम प्रसंग के कारण पीटा गया, या दो पक्ष की महिलाएं चोरी के आरोप में आपस में भिड़ गईं और उन्हें पीट दिया गया, उन घटनाओं की तुलना मणिपुर की घटना से नहीं हो सकती है. मणिपुर मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन महिलाओं के उत्पीड़न पर अफसोस जताने आए भी तो बिहार, बंगाल और अन्य विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों को भी कोसने लगे. यह दिखाने की कोशिश की कि वहां हो रहा है, तो हम भी करेंगे. वहीं अन्य राज्यों में किसी भी तरह के अपराध होते हैं तो कार्रवाई होती है. किसी मुख्यमंत्री ने यह नहीं कहा कि मणिपुर में बलात्कार हो रहा है, तो हम भी अपने राज्य में बलात्कार कराएंगे, जैसा कि प्रधानमंत्री ने परोक्ष रूप से कहा.
चौथी बात यह कि मणिपुर की घटना अनोखी है. इसमें दो जातीय समूहों के बीच झगड़ा हुआ. महिला की देह को हथियार बनाया गया. उस ग्रुप ने नंगा करने के लिए पुरुष नहीं चुना, उनके परिवार वालों की हत्या कर दी और महिलाओं को नंगा करके घुमाया. यह राजनीति का अनोखा प्रयोग है, जब महिलाओं के शरीर का इस्तेमाल आंदोलन में किया गया है, जो मूल रूप से आरक्षण की डिमांड से जुड़ा आंदोलन है.
पांचवीं बात… इस तरह के आंदोलन के लिए मॉस मोबलाइजेशन जरूरी है. उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता. अगर कोई महिला फूलन देवी भी बन जाए, कहीं से हथियार जुगाड़ ले तो वह किसको मारे? क्या वह 1,000 लोगों की भीड़ को मार डाले? क्या वह ढाई महीने से हिंसा करा रही सरकार के प्रतिनिधियों यानी मणिपुर के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री को मार डाले? किस लेवल पर हत्या करने से महिलाओं को न्याय मिलने लगेगा?
उम्मीद है कि इन 5 बातों से मामला साफ हो गया होगा. तरीका यही है कि जिस भी तरह का अत्याचार हो रहा है, सरकार के खिलाफ आवाज उठाई जाए, जिससे वह या तो कानून व्यवस्था ठीक करें, या सत्ता छोड़कर भाग जाएं. मास मोबलाइजेशन होने पर लोकतंत्र वाले शासक ही नहीं, राजतंत्र वाले भी डर जाते हैं. तख्ता पलटने वाले तानाशाह भी मॉस मोबलाइजेशन से डरते हैं क्योंकि विरोध कर रही जनता की हत्या कराने की एक सीमा होती है. अगर शासक सभी की हत्या करा देगा तो वह शासन किस पर करेगा!
खैर
राहत इंदौरी ने कहा है….
तुम्हें सियासत ने हक दिया है, हरी जमीनों को लाल कर दो,
जिधर से गुजरो धुआं बिछा दो, जहां भी पहुंचो धमाल कर दो.
अपील भी तुम, दलील भी तुम, गवाह भी तुम , वकील भी तुम,
जिसे भी चाहो हराम कह दो, जिसे भी चाहो हलाल कह दो.