महिलाओं को शारीरिक रूप से मजबूत बनने की जरूरत है। कवियों की कल्पनाओं की कोमलांगी महिलाओं से देश का अहित हो रहा है और महिलाओं का शोषण बढ़ रहा है।
भारत मे महिलाओं के रूप रंग का वर्णन कुछ इस तरह किया जाता है जैसे वह कोई छुई मुई हों। कोमल अंग, गुलाब की पंखुड़ियों सी, नाज़ुक, कंचन काया आदि आदि। महिलाओं के बारे में जो वर्णन किया जाता है वह किसी यूटोपिया में ले जाने जैसा ही है। लोग इसी तरह के मनोभाव विकसित करने लगते हैं महिलाओं के बारे में।
एक कवि ने तो चर्चा में यूँ ही कह दिया कि कोई बॉडी बिल्डर लड़की हो तो उसे देखकर मन में कोई प्रेम भाव नहीं जगता! मुझे समझ में नहीं आया कि कैसा भाव है भाई आपका? किस तरह की कुंठा आपने पाल रखी है अपने मन में? क्या कोई स्वस्थ, बलिष्ठ लड़की आपको अच्छी नहीँ लगती? क्या अगर कोई महिला है तो उसे मरी दबी कुचली ही होनी चाहिए?
आप कल्पना करें कि कोई लड़की बॉडी बिल्डर है, पहलवान है, क्रिकेटर है, एथलीट है, मुक्केबाज है। वह लड़की स्वाभाविक तौर पर शारीरिक रूप से स्वस्थ होगी, तभी यह सब खेल में शिरकत कर पाएगी। अगर आप उससे मिलेंगे तो वह कहीं ज्यादा एनर्जेटिक, चार्मिंग और फिट दिखेगी। वहीं जो महिलाएं या लड़कियां एक्सरसाइज योगा वगैरा नहीं कर पातीं, उनके शरीर पर चर्बी चढ़ जाएगी, थकी मादी सी दिखेंगी। उनकी बात में भी थकावट होगी, बॉडी लैंग्वेज में भी थकावट होगी।
वहीं जो योगा वाली, एथलीट होगी तो उसकी बॉडी में रक्त संचार अच्छा रहेगा। हेल्थ पैरामीटर पर वह फिट रहेगी। उसके चेहरे पर अलग तरह की कांति बगैर सजे सँवरे ही रहेगी। इतना ही नहीं, अगर कोई महिला स्वस्थ रहती है तभी उसके साथ सेक्स का सुख भी बेहतर मिलेगा। पति पत्नी के बीच सेक्सुअल सुख दुर्लभ ही होता है। कभी छठे छमासे एक बार मिल पाता है। इसकी बड़ी वजह यह होती है कि अमूमन महिलाएं किसी न किसी वजह से थकी होती है। वह थकावट, स्वाथ्य चिंता उन्हें सेक्स सुख से वंचित रहती है। इसके अभाव में पति पत्नी के बीच झगड़े होते हैं, पति बलात्कार तक करते हैं पत्नी से। इसकी एक बड़ी वजह महिलाओं का स्वास्थ्य ठीक न रहना है। और एक अच्छा सेक्स वह होता है जिसमे महिला और पुरुष दोनों ही उत्साह के साथ इन्वाल्व हों। वरना अगर मजबूरी में पत्नी हमबिस्तर है तो सेक्स का मजा खराब हो जाता है।
अब कल्पना करें कि कोमलांगी अच्छी हैं या स्वस्थ महिलाएं? लड़कियों को एथलीट, खेलकूद, फिजिकल एक्टिविटी से कैसे रोक सकते हैं? जबकि अमूमन होता यह है कि लड़कियों को शारीरिक गतिविधियों, एक्सरसाइज से रोका जाता है, उन्हें पार्क में भागदौड़ या कबड्डी, फुटबॉल, बॉलीबॉल खेलने से रोका जाता है।
पिछड़े वर्ग के लोग इस मामले में ज्यादा ही रुग्ण होते हैं। वह अपनी मानसिक बीमारी के कारण अपनी बेटियों को बीमार कर रहे हैं। और परिणाम यह होता है कि पूरी बीमार पीढ़ी तैयार होती है।
कुछ दार्शनिक तो इतने सख्त रहे हैं कि उनका कहना था कि शारीरिक रूप से हृष्ट पुष्ट लोगों को ही बच्चे पैदा करने का अधिकार होना चाहिए। ऐसा सोचने वालों में पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो का नाम आता है। प्लेटो अगर आज के दौर का भारतीय दार्शनिक होता तो रक्ताल्पता की शिकार भारत की महिलाओं को सेक्स और बच्चे पैदा करने के हिसाब से अनफिट घोषित कर देता। साफ कह देता कि शासक इन लोगों को बीमार बच्चे न पैदा करने दें।
वहीं भारतीय समाज में, कवियों की कल्पना में कोमलांगी कंचन काया होती है, बलिष्ठ महिलाएं नहीं। और यह सोच इस लेवल तक जाती है कि ग्रामीण समाजों में तो लड़का लड़की के खानपान में भी भेदभाव किया जाता है। लड़कियों को दूध घी तक से वंचित कर दिया गया है।
समाज का व्यापक हित इसमें है कि लड़कियां कोमलांगी होने से बचें। शारीरिक सैष्ठव के हर प्रयोजन करें। जिम्नास्ट बनें। बॉक्सर बनें, ताइक्वांडो सीखें, लाठियां भांजना सीखें, पहलवान बनें। वह पुरुष समाज की इस साजिश से बचें कि उन्हें सज संवरकर हनीमून वाले रूम में बैठना है और कोई अनजाना सा लड़का आकर उनके साथ बलात्कार करेगा, जिसके हवाले उन्हें उनके मां बाप और परिजनों ने कर दिया है!