भारत की सबसे बड़ी चुनौती प्रति व्यक्ति आय के मामले में 128वें स्थान से ऊपर उठना है. महिलाओं को रक्ताल्पता, बच्चों को कुपोषण से तभी बचाया जा सकता है. इस पर बात करना राजनेताओं के लिए सुविधाजनक नहीं है, बता रहे हैं शीतल पी सिंह…
India जो भारत है देश की सकल GDP के मामले में इस समय दुनियाँ में पाँचवें स्थान पर है और दुनियाँ की सबसे बड़ी दूसरी आबादी होने की वजह से धीरे-धीरे कम आबादी वाले देशों की तुलना में और ऊपर की पायदान पर स्वयमेव चढ़ता जायेगा ।
लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में India जो कि भारत है फ़िलहाल दुनियाँ में 128वें स्थान पर है । हमारे लिए असली चुनौती इस स्थिति को बदलना है । राजनेताओें के लिए सुविधाजनक यह होता है कि वे देश के रैंक की बात तो करते हैं परन्तु देश के व्यक्ति के रैंक को छिपाये रखते हैं जबकि दुनियाँ दोनों आँकड़ों को सामने रखती है और उस आधार पर हमारी स्थिति आंकती है ।
जापान और जर्मनी जो देश की रैंकिंग में अभी हमसे आगे हैं आगे चलकर पिछड़ जायेंगे । उनकी आबादी वर्षों से लगभग स्थिर है या बढ़ भी रही है तो लगभग नगण्य जबकि इस मामले में हम अव्वल हैं , इस वजह से हमारी सकल GDP उनके मुक़ाबले आज नहीं तो कल आगे निकल ही जायेगी, यह समझना कोई राकेट साइंस नहीं है ।
सवाल दूसरे हैं ! हमारे देश की रक्ताल्पता की शिकार स्त्रियों की संख्या कितनी है ? दुनियाँ की रैंकिंग में इस श्रेणी में हम कहाँ हैं ? कितने बच्चे हमारे यहाँ कुपोषण के शिकार हैं ? हमारे शहरों में सड़क पर सोने / भीख माँगने और नारकीय परिस्थितियों में कितने प्रतिशत लोग रहते हैं? कितने लोग अभी तक देश में अक्षरज्ञान तक से वंचित हैं ? कितने शहर / क़स्बे सीवर लाइन विहीन हैं ? कितने लोगों तक साफ़ पीने का पानी पहुँचा है ? न्याय कितने लोगों के लिए शब्द भर है?
दुनियाँ हमें इन तल्ख़ सवालों पर आंकती रहती है । ये इंडेक्स भी साथ साथ तैयार होती रहती हैं और जारी होती रहती हैं, इंटरनेट पर साथ साथ तैरती रहती हैं । गूगल सबके लिए एक क्लिक ही दूर है पर हमारे राजनेता प्रायोजित भीड़ की तालियों में यह बात भुलाने का यत्न करना कभी नहीं भूलते !