केंद्र सरकार ने लैपटॉप, टैबलेट, पर्सनल कम्प्यूटर और इस तरह के उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके लिए सरकार ने सुरक्षा का हवाला दिया है। वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी कुमार श्रीवास्तव बता रहे हैं कि मुकेश अम्बानी के समूह के जियो लैपटॉप को लाभ पहुँचाने के लिए सरकार ने सुरक्षा की आड़ में देशभक्ति का तड़का लगाकर आयात पर प्रतिबंध लगाया है…
देशभक्ति और धर्म नेताओं के लिए सत्ता हथियाने या कुर्सी बचाए रखने के लिए जनता को खिलाने वाली एक मीठी गोली होती है। यह मीठी गोली खाने के बाद जनता देख ही नहीं पाती कि देशभक्ति और धर्म की आड़ लेकर नेता व व्यापारी कैसे उन्हें या देश को लूट रहे हैं। देशभक्ति को दर्शाने के लिए मोदी सरकार ने एक नारा दिया है मेक इन इंडिया। मोदी सरकार ने इस नारे की आड़ में ऐलान किया कि अब भारत में लैपटॉप विदेश से नहीं आ सकेगा। यानी कोई विदेशी कम्पनी भारत में अपना लैपटॉप नहीं बेच सकेगी।
ऊपर से देखने में तो मोदी सरकार का यह फैसला देशभक्ति से ही प्रेरित लगता है। लेकिन सच तो यह है कि यह देशभक्ति नहीं बल्कि अदानी के अलावा मोदी के एक और खासमखास व्यापारी मुकेश अंबानी को बिना लड़े ही भारत के लैपटॉप बाजार का किंग बनाने का शॉर्ट कट है। क्योंकि अंबानी ने दो दिन पहले ही जियो लैपटॉप बनाने की घोषणा की है। अगर मोदी यह ऐलान नहीं करते तो अंबानी अपना लैपटॉप बेचकर तभी किंग बन पाते, जब दाम, क्वालिटी, सर्विस और वारंटी आदि में वह विदेशी कम्पनियों से बेहतर होते।
अब चूंकि मोदी जी ने अंबानी के मैदान में उतरते ही उनके लिए मैदान ही खाली करा दिया है तो अकेले दौड़कर तो अंबानी फर्स्ट आ ही जाएंगे।
बिल्कुल वैसे ही, जैसे जियो को मोबाइल बाजार में मोदी जी चैंपियन बना चुके हैं। सरकारी महकमों को जियो लेने के लिए मजबूर करके, बीएसएनएल जैसी महारथी कम्पनी को बर्बाद करके, एयरटेल व वोडाफोन जैसी कंपनियों को कानूनी शिकंजे में जकड़कर मोदी जी ने जो भक्ति अपने व्यापारी मित्रों के प्रति दिखाई है, उसे देशभक्ति नहीं कहते हैं।
यदि किसी और देश में वहां के प्रधानमंत्री ने ऐसा किया होता तो इसे देशभक्ति की बजाय घोटाला, लूट या दलाली का नाम देकर संसद और सड़क पर यह हंगामा मचाया गया होता। मगर यहां इसे देशभक्ति कहकर मोदी सरकार का गुणगान मीडिया और जनता कर रही है।
देशभक्ति और धर्म की मीठी गोली खाई जनता को मोदी सरकार घोटाले, लूट और दलाली जैसे शब्दों को भुलवा चुकी है। इन शब्दों को उछालकर ही हो हल्ला मचाने वाले मीडिया में भी यह शब्द अब सुनाई नहीं देता। शायद वह खुद भी मोदी सरकार से बतौर व्यापारी और दलाल, फायदे लेने में जुटा हुआ है।
विपक्षी और मोदी विरोधी आरोप लगाते हैं कि मोदी और शाह दो ऐसे गुजराती हैं, जो देश बेच रहे हैं तो अदानी और अंबानी दो ऐसे गुजराती हैं, जो देश खरीद रहे हैं। मगर देशभक्ति और धर्म की मीठी गोली खाए जनता ऐसा कुछ देख ही नहीं पा रही, जिसको गलत कहा जा सके।
विपक्ष चाहे छाती पीटता रहे लेकिन मोदी सरकार के इस तरह खुल्ला हिमायत करने से अदानी और अंबानी जो भी दौलत दोनों हाथों से बटोरेंगे, उसमें मोदी सरकार और भाजपा का भी कुछ हिस्सा होगा, यह मानने को भी जनता कभी तैयार नहीं होगी। क्योंकि जनता यही मानेगी कि मेक इन इंडिया के तहत लैपटॉप का आयात बंद करने का फैसला तो देश को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया है। वे पूछेंगे कि अंबानी अब लैपटॉप बाजार में अकेले दौड़ कर फर्स्ट आ जाएंगे तो यह तो देश के लिए बढ़िया है?
जबकि बाजार का अर्थ होता है प्रतिस्पर्धा… और उपभोक्ता यानी जनता को इस प्रतिस्पर्धा से बहुत बड़े बड़े फायदे होते हैं। इससे न सिर्फ सस्ता उत्पाद मिलता है बल्कि क्वालिटी भी विश्वस्तरीय और बेस्ट मिल जाती है। इसके बाद सर्विस भी उसे बेहतरीन मिल जाती है। अब अकेले अंबानी के रहने से यह सब कुछ अंबानी के रहमोकरम पर है। बाजार इनमें से अब कुछ तय नहीं करेगा।