प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना क्या है?

केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए 4 योजनाओं की घोषणा की है, जिसमें प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना भी शामिल है। इसका प्रचार खूब किया जा रहा है जबकि इसका बजट सबसे कम है और योजना भी साफ नहीं है, बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…

केंद्र सरकार ने विश्वकर्मा योजना के लिए 13,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं जो अगले 5 साल में जारी होंगे। ई बस के लिए 15,930 करोड़ रुपये हैं। डिजिटल इंडिया के लिए 14,900 करोड़ रुपये दिए गए हैं। और रेल ट्रैक के लिए 32,500 करोड़ रुपये दिए गए हैं।
आप समाचार उठाकर देखें, हर जगह विश्वकर्मा जी छाए हुए हैं। जबकि उसका सबसे छोटा बजट है। इसके अलावा इसमें कुछ मुफ्त देने टाइप का नहीं है। 5 प्रतिशत ब्याज पर एक लाख रुपये और 2 लाख रुपये लोन दिया जाना भी इसमें शामिल है। बढ़ई लोहार कुम्हार बनने के लिए 500 रुपये मानदेय मिलेगा, उसका प्रारूप तय नहीं है कि अगर कोई बढई, लोहार कुम्हार किसी को अपना काम करना सिखाता है तो वह 500 रुपये स्टाइपेंड सीखने वाले को कैसे मिलेगा? कुल मिलाकर यह योजना 5% ब्याज पर 1 लाख और 2 लाख रुपये लोन देने की है। लेकिन विश्वकर्मा जी को खुश करना है, योजना का गई। विश्वकर्मा जी गदगद भी हो जाएंगे कि प्रधानमंत्री ने हमारा कितना गौरव बढ़ाया है।
इसकी तुलना में ई बस की सब्सिडी ई बस बनाने वाली कम्पनियों को फ्री में होती है। न उसे लौटना होता है न उस पर ब्याज लगना होता है। अभी कम्पनियों ने ई स्कूटर सब्सिडी में घोटाला किया है जिसकी वसूली के लिए धमकी दी जा रही है और मामला सेटल किया जा रहा है।
डिजिटल इंडिया का पैसा कहां जा रहा है, किसको मिल रहा है, यह तो खोजते ही रह जाएंगे। जिन कम्पनियों या लोगों को डिजिटल इंडिया के प्रचार प्रसार का पैसा मिला, उन्होंने क्या झंडे गाड़े, क्या कमाई की, इसकी न तो कोई जांच पड़ताल है न कोई सूचना है।
सरकार ने डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर की बैंड बजा दी है। लालू प्रसाद के शासनकाल में शुरू यह योजना विश्व की अनूठी परियोजना मानी जा रही थी,जिससे धुलाई की लागत घटती, सड़कों पर भीड़ कम होती, किसानों का उत्पाद देश के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंचता। यह परियोजना 2018 में पूरी होनी थी, अब तक पूरी नहीं हुई। बिहार से बंगाल तक के एक खण्ड को पहले बेचने की कोशिश हुई। कोई खरीदार नहीं मिला तो सरकार ने कहा कि हम खुद बनाएंगे। वह भी नहीं हो पाया तो अब सरकार ने उस योजना को ही स्क्रैप कर दिया। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर अब सामान्य रेल लाइन होगी, और दो पटरियों की जगह 4 पटरियां बिछा दी जाएंगी। और रेलवे अब नौकरियां नहीं देगा। इस निवेश से 3 करोड़ कार्य दिवस का सृजन होगा। यानी 3 करोड़ दिन इसमें लोगों को काम मिलेगा, जिसमे कुछ लोग दिहाड़ी पर काम करेंगे, कुछ लोग अग्निवीर टाइप साल से लेकर 5 साल के ठेके पर रखे जाएंगे।
इतना सा मामला है। यह सब योजनाएं वैसे तो बजट में होनी चाहिए थी लेकिन जनता को खुश करने के लिए अगले 5 और 10 साल की योजना दिखाकर मोटा मोटा बजट आवंटन हो गया। यह वैसा ही नाटक है जैसे गुजरात मे हर साल 100 लाख करोड़ रुपये का निवेश प्रस्ताव कम्पनियां देती थीं और निवेश कुछ नहीं होता था। लेकिन इसका चुनावी लाभ भरपूर हुआ था।
बकिया सब प्रभु की लीला।
#भवतु_सब्ब_मंगलम

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