बिहार विधानसभा में पेश जाति सर्वेक्षण के मुताबिक 46 लाख बिहारी भारत के अन्य राज्यों में जबकि 2.17 लाख बिहारी विदेश में, जबकि बिहार में 27.58% भूमिहार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं.
बिहार की जाति जनगणना से अजब गजब खुलासे सामने आ रहे हैं. बिहार में सबसे ज्यादा जमीन भूमिहारों के पास है, जिससे उन्हें समृद्ध माना जाता है. जाति जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 27.58 प्रतिशत भूमिहार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं.
विधानसभा में पेश किए गए जाति जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में एक तिहाई परिवार गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं, जिनकी मासिक कमाई 6,000 रुपये या इससे कम है.
रिपोर्ट के मुताबिक ऊंची जातियों में बहुत गरीबी है लेकिन पिछड़े वर्ग, दलितों और आदिवासियों में गरीबों का प्रतिशत उनसे अधिक है.
रिपोर्ट के अनुसार बिहार में करीब 2.97 करोड़ परिवार हैं. इसमें से 94 लाख यानी कुल परिवारों में 34.13 प्रतिशत गरीब परिवार हैं.
नौकरी और बेहतर शिक्षा की तलाश में 50 लाख बिहारी राज्य से बाहर रह रहे हैं. अन्य राज्यों में नौकरी कर रहे बिहारी करीब 46 लाख हैं. वहीं 2.17 लाख बिहारी विदेश में रह रहे हैं.
भारत के दूसरे राज्यों में पढ़ाई कर रहे बिहारियों की संख्या करीब 5.52 लाख है. वहीं 27,000 बिहारी विदेश में पढ़ रहे हैं.
जाति सर्वेक्षण के प्राथमिक निष्कर्ष के अनुसार बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) राज्य की कुल जनसंख्या का 60 प्रतिशत हैं. वहीं ऊंची जातियां करीब 10 प्रतिशत हैं. रिपोर्ट के मुताबिक ऊंची जातियों में गरीबी दर 25 प्रतिशत से अधिक है. हिंदुओं में ऊंची जातियों में सबसे संपन्न जाति कायस्थ है. काफी हद तक शहरी जीवन जीने वाले इस समुदाय में सिर्फ 13.83 प्रतिशत परिवार ही गरीब हैं.