भारत में व्यापक रूप से दीपावली मनाई जाती है. दीपावली का त्योहार आते ही इसके समर्थन और विरोध में तलवारें खिंच जाती है. खुशियों भरे एक रंग बिरंगे त्योहार को लेकर भी लोगों के बीच भयानक वैमनस्य होता है. मध्यमार्ग अपनाने की सलाह दे रहे हैं सत्येन्द्र पीएस..
जीवन में प्रकाश का बड़ा महत्व है। और दीपावली प्रकाश का पर्व है। धूम धड़ाका, मिठाइयां, पकवान, दीये, रंगोलियां, सजावट, पटाखे इस उत्सव को आकर्षक बनाते हैं।
हर विद्वान ने प्रकाश की महत्ता बताई है।
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। वृहदारण्यक उपनिषद में यह कहा गया है। मा मीन्स मुझे। मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, मुझे तमस से ज्योति की ओर ले चलो। तमस यानी अंधेरे से प्रकाश की तरफ ले जाने को कहा गया है। दुनियाबी अंधकार तो एक मसला है कि सड़क पर प्रकाश नहीं हो और तेज रफ्तार गाड़ी चलाएं तो जान गंवाएंगे, एक्सीडेंट होगा। लेकिन जब ये वाला श्लोक बृहदारण्यक उपनिषद में लिखा गया तो न तेज रफ्तार वाहन थे, न बिजली थी। सूर्य का प्रकाश और निशा का तमस ही था। तमस का अपना महत्त्व है जब हम अच्छी नींद ले पाते है और बॉडी को अगले टास्क के लिए एनर्जी दे पाते है। उपनिषद में तमस से ज्योति की तरफ ले जाने की जो बात कही गई, वह आंतरिक प्रकाश की बात कही गई है, नीर क्षीर विवेक की बात कही गई है।
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बृहदारण्यक उपनिषद के बहुत पहले गौतम बुद्ध ने कहा कि अत्त दीपो भव। यानी अपना प्रकाश खुद बनो। यह बड़ा दर्शन है। कोई दूसरा आपको अन्धकार और अज्ञान से नहीं निकाल सकता। आपको कोई रास्ता बता सकता है कि गाड़ी में पीली वाली लाइट लगवा लो तो कोहरे में एक्सीडेंट नहीं होगा। यह तो भौतिक चीज है और कोई मित्र आपकी गाड़ी में पीली लाइट लगवा सकता है। लेकिन अगर आपके अंदर प्रकाश नहीं है तो उस लाइट को आप फोड़ सकते हैं। मनबै नहीं करेंगे कि ऐसा कुछ होता है कि पीली लाइट से कोहरे में दिखता है! इसलिए बुद्ध ने कहा था कि अपना दीपक खुद बनें। दूसरे वाले में समस्या है कि अगर आपके भीतर जरा सा प्रकाश नहीं है तो कोई भी आपको लूट लेगा, गड्ढे में धकेल देगा। तमाम तरह की ठगी होती है बाजार में।
यही बात भीमराव अंबेडकर ने कही कि पढ़ना ही एकमात्र विकल्प है। जब तक नहीं पढ़ोगे, इन बुरे हालात से निकल न पाओगे। सम्भव है कि उन्होंने भी पढ़ाई को नौकरी पा जाने तक ही सीमित नहीं किया होगा, बल्कि आंतरिक प्रकाश से जोड़कर उसे देखा होगा।
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आजकल मिठाई और दूध से बने सामान में अल्टरेशन बहुत है। पता नहीं कैसे गायें दीपावली के पहले इतना अतिरिक्त दूध दे देती हैं कि मिठाइयों, खोवा, मावा की भरमार हो जाती है, जबकि ऐसा भी नहीं कि दीपावली के पहले लोग दूध का इस्तेमाल बंद करके त्योहार के लिए दूध जुटाना शुरू कर देते हैं, जैसा कि पहले गांवों में होता था कि खोवा राबड़ी 4 दिन पहले बनाकर रख ली जाती थी और लोग 5 दिन दूध नहीं पीते थे।
यह अल्टरेशन नया नहीं है। घटतौली पर अलाउद्दीन खिलजी ने ऐसा करने पर पकड़े जाने वाले व्यापारी का उतना ही मांस काट लेने का आदेश जारी कर दिया था। भारत के पुराने गर्न्थो में तो शायद सारे उपाय करके राजा विफल हो गए तो घोषित करवा दिया कि पका हुआ भोजन बेचना और उसे खरीदकर खाना नीच कर्म है, निम्न लोग ही ऐसा करते हैं। न अल्टरेशन रोक सकते थे, न पका भोजन बिकना रोक सकते थे तो एलान कर दिया कि पका भोजन जो बनाकर बेचे और जो खाए, दोनों नीच। खेल ही खत्म। लेकिन यह नीचता आजकल न केवल हिन्दू कर रहे हैं बल्कि यह नीच कर्म कराने के लिए केंटुकी फ्रायड चिकन और मैकडॉनल्ड को भी आमंत्रित कर लिया गया है!
एक और मसला आता है पटाखों का। कोर्ट ने बैन कर दिया, उसके बावजूद पटाखे तो दागे ही जा रहे हैं। मेरे यहाँ भी आया है गांधीजी के लिए। लेकिन निश्चित रूप से मात्रा कम हुई है। गांधीजी आजकल अपने को बड़ा समझने लगे हैं। मुझे लगता है कि परिस्थितियों ने उन्हें उम्र से3 ज्यादा मेच्योर बना दिया है। इसलिए जब उन्होंने कहा कि पटाखा लेना है तो थोड़ा बहुत ना नुकुर करने के बाद खरीद दिया। कम से कम उनका बचपन थोड़ा और देख लें। अदरवाइज रगेदे तो वह भी जा रहे हैं मेरी तकदीर के साथ।
मुझे बचपन याद है कि 1985 के आसपास जब बाइक स्टार्ट होती थी तो बच्चे उसके धुएं को इंज्वाय करते थे। वह धुआं अलग सुख देता था। क्योंकि वह धुआं था ही नहीं। कउड़ा, पुआल के धुएं से अलग।
बेसिकली धुआं गड़बड़ नहीं है। कार्बन डाई ऑक्साइड भी गड़बड़ नहीँ है। कार्बन डाइऑक्साइड को अगर आप खत्म कर दें तो पेड़ पौधे कैसे बचेंगे? इसी तरह से तेल, घी, मेवा, खोवा, सूखे मेवे, मिठास, चीनी, गुड़, दारू, भांग कुछ भी गड़बड़ नहीं है। गड़बड़ तब होती है जब आप अपना संतुलन बिगाड़ते हैं। वरना जितनी चीज़ें प्रकृति बनाती है, कुछ भी गड़बड़ नहीं है।
एक मित्र ने सुबह सबेरे ही प्रदूषण की बात कही। मैंने उनको ढेर सारा ज्ञान दे दिया। उन्ही को दिए ज्ञान को फेसबुक पर साझा कर दिया जिससे कि शेष जनता भी लाभान्वित हो सके।
कहने का मतलब यह है कि थोड़ी सी अल्टरेशन वाली मिठाई खा लीजिए, थोड़ा सा प्रदूषण झेल लीजिए। थोड़ा तेल घी खा लीजिए। 4 समोसे खा लीजिए। घण्टा फर्क पड़ेगा। हाय हाय करने बैठ जाने पर ज्यादा सरदर्द और परेशानी होने वाली है। मध्यमार्ग अपनाइए और मस्त रहिए। यह बेस्ट ऑप्शन लगता है।
अतिवाद में हमेशा गड़बड़ होती है। एक सज्जन की कहानी सुनी कि वह बहुत दुखी हैं कि उनकी होने वाली बहू ने कहा कि उसको रोटी बनाने नहीं आता। पूरा केस सुना तो पता चला कि शादी तय है और घर भर मिलकर 24 घण्टे में 12 घण्टे उस लड़की से फोन पर बात करते है! मैंने कहा कि फिर तो रोटी के अलावा और भी समस्या आई होगी। उस लड़की ने यह भी बताया होगा कि अभी लैट्रिन चली गई थी और भात जल गया। इस हिसाब से वह फूहड़ भी हो गई। उसने यह भी बता दिया होगा कि कल सहेलियों के साथ बैठी थी तो पाद निकल गई! यह भी एक अवगुण है! मने हम सुनकर हतप्रभ थे कि ऐसी ऐसी समस्या भी होती है लोगों को! यह भी पता चला कि सब कुछ तय तमाम होने के बाद अब वो अपने लड़के की शादी वहां नहीं करना चाहते! हमको समझ में न आया कि वह घर के लिए बहू ला रहे हैं कि नौकरानी! मेरे तो तमाम मित्रों रिश्तेदारों परिचितों ने 10 हजार महीने पर चौका बर्तन झाड़ू पोछा खाना बनाने के लिए काम वाली रखा हुआ है! वह इस काम के लिए बहू नही लाते! मैंने कहा कि बंधु, या तो बन्दा चिरकुट है, या उसे कोई दूसरी पैसे वाली पार्टी मिल गई है। वरना रोटी न बना पाना या न फूलना मसला हो ही नहीं सकता!
मैं तो जब टेम्परेचर, बाढ़, बारिश की खबरें पढ़ता हूँ तो खुश होता हूँ कि 70 साल का रिकॉर्ड टूटा! मतलब 70 साल पहले भी वैसा हुआ था, जिसे आज हम बड़ी आपदा मान रहे हैं। ऐसे में मस्ती में मस्त रहिए, यही अच्छा है। विज्ञान, मशीन, अविष्कार के साथ रहने के अलावा प्रकृति के साथ रहिए, किसी चीज की अति न होने पाए। पटाखे, धुएं, एयरकंडीशनर से निकलने वाली गर्मी आदि का आनन्द लीजिए, यह आपके ही विज्ञान ने तो दिया है!!
मस्त होकर उत्सव मनाइए। झण्ड टाइप समस्याएं सोचकर जिंदगी झंड मत करिए! सुबह सबेरे अपने कर कमलों से समोसे बनाए।अभी बहुत कुछ बनने वाला है। बाजार वाली मिठाई भी एक किलो खरीदी है। दूध भी 4 किलो आया है। पटाखा तो आया ही है। लेकिन सब कुछ मध्यमार्ग वाला!
दीपावली की शुभकामनाएं।