वाचिक से लेकर लिखित तक संस्कृत ने तय की है लंबी यात्रा

वाचिक से लेकर लिखित तक संस्कृत ने तय की है लंबी यात्रा

नव बुद्ध हर चीज को विवाद में डालने के आदती होते हैं. वह एक ही लाइन पर चलते हैं कि हमारा सबकुछ छीन लिया गया, हमें अछूत बना दिया गया. इस समय संस्कृत को निशाना बनाया जाता है कि पॉलि से संस्कृत निकला है. यह बता पाना कठिन है कि कौन किस भाषा से निकला है, क्योंकि बोलियों, भाषाओं और लिपियों के लंबे विकास क्रम में यह एक दूसरे पर आच्छादित हो जाती हैं. संस्कृत के विकास का क्रम बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…

भारत में संस्कृत शब्द का प्रयोग उस भाषा के लिए करते हैं जो 4000 साल से लगातार भारत मे प्रचलित है। ऋग्वेद को यूनेस्को ने विश्व का प्राचीनतम ग्रन्थ माना है। इसे नाभि से लेकर होठों तक की प्रत्येक मांसपेशी का इस्तेमाल करके बोला जाता है, जिसमें अधिकतम उच्चारणों का प्रयोग किया गया है।

ओल्ड इंडो आर्यन भाषा का काल 2000 से 500 ईसवी पूर्व माना जाता है। इस दौर में संस्कृत का सार्वजनिक प्रयोग होता था। 2000 से 800 ईसवी पूर्व में वैदिक मंत्रों संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों, उपनिषदों, वेदांगों का विकास हुआ। 800 ईसवी पूर्व से 500 ईसवी पूर्व में संस्कृत को भाषा कहा गया, जिसका उल्लेख पाणिनि ने अपनी अष्टाध्यायी और यास्क ने निरुक्त में किया है। 700 ईसा पूर्व यास्क ने अपनी पुस्तक निरुक्त में संस्कृत के लिए भाषा शब्द का इस्तेमाल किया। 350 ईसवी पूर्व कात्यायन ने अपने वार्तिकों में लिखा है कि लोक में प्रचलित शब्दों के आधार पर ही व्याकरण लिखा गया है।

500 ईसवी पूर्व से 1000 ईसवी के 1500वर्षों में संस्कृत भाषा की एकरूपता। नष्ट होने लगी। 500 ईसवी पूर्व से ईसवी सन की शुरुआत तक इसके क्षेत्रीय रूप प्रकट हुए। महावीर ने प्राकृत और बुद्ध ने पालि में अपने उपदेश दिए। 500 ईसवी तक पालि और प्राकृत का खूब विकास हुआ और इन भाषाओं में ग्रन्थ लिखे गए।

उसके बाद 500 से 1000 ईसवी के बीच अपभ्रंश आया और विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग भाषाएं विकसित होने लगीं। 1000 ईसवी के बाद अपभ्रंश के क्षेत्रीय रूप गुजराती, मराठी, राजस्थानी, पंजाबी, डोगरी, नेपाली,मैथिली, बंगला, ओडिया, हिंदी असमिया आईं। इसे मिडिल इंडो आर्यन भाषा कहते हैं।

चरक संहिता से पता चलता है कि प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में आयुर्वेदिक संस्थाओं के शास्त्रार्थ में संस्कृत प्रयोग होता था। वात्स्यायन के कामसूत्र में प्रेरणा दी गई है कि सभ्य नागरिकों को बातचीत में संस्कृत प्रयोग करना चाहिए। ह्वेनसांग ने बौद्ध विद्वानों के संस्कृत में बातचीत का उल्लेख किया है।

1060 ईसवी के लेखक बिल्हड़ लिखते हैं कि उनके मातृभूमि कश्मीर में स्त्रियां संस्कृत, प्राकृत और अपनी मातृभाषा अच्छी तरह समझ लेती हैं।

150 ईसवी के रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में अलंकृत संस्कृत गद्य मिलता है, जो गुजरात की गिरिनार पहाड़ी पर मिला। गुप्तकाल के सभी अभिलेख संस्कृत में है।

ईसा की प्रथम शताब्दी से लेकर 1000 ईसवी तक बौद्धों और जैनों ने अपना साहित्य संस्कृत में लिखा।

वाल्मीकि रामायण का उल्लेख करना सबसे दिलचस्प होगा। जब हनुमानजी सीता माता से मिलने जाते हैं तो सोचते हैं…

यदि वाच्यं प्रदास्यामि द्विजातिरिव संस्कृतम

रावणं मन्यमाना मां सीता भीता भविष्यति।

मतलब हनुमानजी मन में।कहते हैं कि यदि मैं द्विजातियों के समान परिनिष्ठित संस्कृत में बोलूंगा तो सीता मुझे रावण समझकर भयभीत हो जाएंगी।

रावण जी को शिक्षित और परिष्कृत संस्कृत बोलने वाला बताया गया है। कवि ने कहा है कि सीताजी भगवान राम के किसी प्रतिनिधि से संस्कृत की अपेक्षा नहीं कर सकती थीं। जबकि हनुमानजी विद्वान थे और परिनिष्ठित संस्कृत बोल सकते थे।

यानी भगवान राम, माता सीता द्विजाति की तरह न तो संस्कृत बोलते थे, न माता सीता अपेक्षा कर सकती थीं कि भगवान राम का कोई दूत परिनिष्ठित संस्कृत में बोलेगा।

साफ है कि योगी जी ने सही ही बताया था कि हनुमान जी दलित थे। और इसके कारण उन्होंने ईंख की खेती करने वाले इक्ष्वाकु वंश के कुर्मी शासक भगवान राम का साथ दिया, कोई द्विज भगवान राम की मदद करने सामने नहीं आया। सीता जी भी संस्कृत में नहीं बोलती थीं।

इसलिए हनुमानजी आगे सोचते हैं…

अहं ह्मतितनुष्चौव वानरश्च विशेषतः

वाचं चोदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृतम।

हनुमानजी सोचते हैं कि सीताजी को यह विश्वास दिलाने के लिए आम मनुष्यों द्वारा बोली जाने वाली भाषा यानी मानुषीमिह संस्कृत में बोलना चाहिए, न कि द्विजाति संस्कृत में। बाद में भगवान राम ने हनुमानजी की परिनिष्ठ संस्कृत व्याकरण युक्त भाषा की प्रशंसा की है।

कहने का मतलब यह है कि भगवान राम, माता सीता, हनुमानजी की बोलचाल की भाषा संस्कृत नहीं थी। परिष्कृत संस्कृत द्विज लोग बोलते थे। रावण जी भी उनमें से एक थे जो परिनिष्ठित संस्कृत बोलते थे और उन्हें सम्भवतः बेइज्जत करने के लिए राक्षस दुष्ट पापी और जाने क्या क्या कहा गया है।

 

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