जलाशय की तरह पवित्र और गहरे बन जाइए यही सुख का मार्ग है

कम बोलना आपके जीवन में बहुत बड़ी शांति लाता है…

बहुत बोलना तरह तरह के विवादों की जड़ है. घरों में झगड़े की वजह बहुत ज्यादा और बगैर सोचे विचारे बोलना होता है. बौद्ध धर्म में मौन को बड़ा महत्त्व दिया गया है. आप मौन रहकर अपने जीवन के तमाम उपद्रवों से बच सकते हैं, बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…

 

मनुष्य के जीवन में ज्यादातर उपद्रव बोलने से होते हैं। विश्व की जो सबसे बड़ी लड़ाई पति पत्नी के बीच में निरंतर चलती है, उसके पीछे बहुत ज्यादा बोलना ही है।

जो जितना बोलता है वह उतना ही उपद्रव पैदा करता है। और तब तो उपद्रव और बढ़ जाता है जब उनको बोलने का मौका मिल जाए, जिन्हें बोलने का मौका ही नहीं दिया गया। या कहें कि जो पीढ़ियों से मौन रखे गए। वह भी जबरदस्ती। जबरदस्ती मौन रखे जाने वालों को अगर बोलने का मौका मिल जाए तो वह बड़बड़ाहट भयानक हलचल पैदा करती है। उसकी एक वजह यह हो सकती है कि बड़बड़ाने वाला व्यक्ति अब तक जो बोला जा रहा होता है उससे अलग बोलकर सामान्य और पहले से अनुकूलित हो चुके जीवन मे हलचल पैदा कर देता है। बड़बड़ाहट सार्थक भी हो सकती है, निरर्थक भी हो सकती है। लेकिन उससे प्रॉब्लम यह है कि वह हलचल या चल रही स्थिति में व्यवधान पैदा करती है।

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जबरदस्ती मौन रखे जाने वाले लोगों का बोलना बहुत डिस्टरबिंग होता है। इसीलिए लोकतंत्र को आवश्यक बुराई कहा गया है। इसमें बोलने का अवसर मिलता है इसलिए सभी शासन प्रणालियों में इसे श्रेष्ठ कहा गया है। भले ही यह दिखावे के लिए है। सभी जानते हैं कि इसमें भी धनपशुओं,और अब कहें तो टेक्नोक्रेट टैम्परिंग करके लोकतंत्र पर कब्जा कर लेते हैं। लेकिन और किसी भी शासन प्रणाली से तुलना करें तो यह इस मामले में अलग हो जाता हैं कि इसमें सबको बड़बड़ाने का मौका मिल जाता है।

लेकिन मौन की अपनी महिमा है, अगर स्वेच्छा से मौन रहा जाए। गौतम बुद्ध ने शायद इसीलिए मौन को बड़ा महत्त्व दिया है। कम से कम पारिवारिक और नजदीकी जीवन में इससे शांति आती है और खुद के बारे में सोचने का मौका मिलता है कि हम क्या हैं, हमारा शरीर, हमारा मन, हमारा मस्तिष्क किस तरह से हलचल कर रहा है। रिएक्ट करने का विजडम आता है। और उसके परिणाम भी अच्छे आते हैं।

लेकिन मौन होना या स्वेच्छा से कम बोलना इतना आसान नहीं होता है। मैं विपश्यना करने गया तो सब कुछ जान समझकर गया लेकिन तीसरे से चौथे दिन ये हालत हो गई कि इन सबों को गरिया वरिया कर निकल जाएं। लेकिन पत्नी के डर से नहीं भगा कि मजाक बनेगा कि वो भी न कर पाए। फिर सोचा कि घुस गए हैं तो खुलकर तमाशा देखकर चलते हैं और 11 दिन अन्य तपस्वियों के मजे लेते हुए टिका रहा। हमारे दिलीप मंडल जी तीसरे चौथे दिन का दबाव नहीं झेल पाए। और लौटकर बड़े लचर कमेंट दिए कि वहां खाना मन माफिक नहीं था, सवाल जवाब का मौका नहीं देते, बुद्धिज्म के खिलाफ है यह सब आदि आदि…. जबकि हकीकत यह है कि वहां क्या होता है सब कुछ पहले से ही पता रहा ही होगा कि रहना खाना फ्री है। 2 घण्टे इसके बदले गोयनका जी अपना भाषण सुनाएंगे। और शेष घण्टे हमको सिर्फ चुप रह रहना है, अपने शरीर, मन, मस्तिष्क के बारे में सोचना है और अनुभव करना है।

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खैर…

बड़बड़ाहट अगर घर में ही कम कर दिया जाए तो घर का उपद्रव शान्त हो जाता है। गौतम बुद्ध ने सुखमय जीवन का यह एक अच्छा रास्ता बताया है। एक फ़िल्म आई थी जिसमें एक लड़की फ्रीजर में बन्द हो जाती है और जिंदगी के लिए संघर्ष करती है। मुझे उसके मैनेजर का कैरेक्टर बड़ा दिलचस्प लगा। वो बेचारा पत्नी के “कल” से इतना तबाह रहता है कि वह रेस्टोरेंट के हर कल कहने वाले कर्मचारी से खुंदक निकालता है। यह हर जगह हालत है। घर में पिटे पति बहुत बोलते हैं (उसे फलाने से न लें जो मन की बात भी पेलते रहते हैं, या मन करे तो ले लें)। तो यूँ समझें कि जो बहुत बोलने वाले हैं वह घर में पत्नी से लात खाकर आए हैं मौन रहकर उन पर रहम करें तभी सही रास्ता निकलेगा। उनकी बड़बड़ाहट पर रिएक्ट करेंगे तो वह अपने घर का उपद्रव आपके घर मे भी पहुँचा ही देंगे चाहे वह तुलसी हों या फलाने।

मूल रूप से मैने ईश्वर पर करीब 800 शब्द लिखे थे। मोबाइल पर कॉल आ गई। उड़ गया। और उसके बाद परेठा बनाने में लग गया तो उस विषय पर लिखने का दोबारा मन नहीं किया और बोलने के उपद्रव पर लिखने में शौचालय में लगने वाले वक्त का इस्तेमाल कर लिया। अभी नाश्ता में यह ट्राई करें।

ये सिला।मिला है मुझको, तेरी दोस्ती के पीछे

के हजारों गम लगे हैं मेरी जिंदगी के पीछे!

यह गीत मुन्नी बेगम सुना रही हैं।

#भवतु_सब्ब_मंगलम

 

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