अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का शैव शंकराचार्यों ने बहिष्कार किया है. इसके जवाब में अयोध्या में राम मंदिर कार्यक्रम के प्रमुख ने उसे रामानंद संप्रदाय का बता दिया है. शैव और वैष्णवों के झगड़े के बारे में बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस
शैव और वैष्णवों का भारत मे बहुत पुराना झगड़ा है। इसका साक्षात स्वरूप देखना हो तो दक्षिण भारत में जाइये। खासकर दक्षिण भारत का प्राचीन से लेकर पूर्व मध्यकालीन इतिहास पढ़िए।
भारत का सबसे विशाल और खूबसूरत मन्दिर मदुरै का मीनाक्षी मन्दिर है। भक्त लोग जानते ही होंगे कि मीन अक्षी यानी मछली के समान खूबसूरत आंखों वाली मीनाक्षी, पार्वती जी को कहा जाता है। वहां की मूर्तियां आपको क्षतिग्रस्त मिलती हैं। विशाल खूबसूरत प्यारी मूर्तियां जिनमें पूरा जीवन दर्शन समाहित है, किसी का हाथ, किसी का सर,किसी का स्तन, किसी का पैर टूटा है। हजारों मूर्तियां हैं मन्दिर में। वह वैष्णवों के शैव मन्दिर पर हमलों की निशानी है।
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वैष्णव और शैव कल्चर अलग अलग है। शैव मांसाहारी होते हैं, वैष्णवों में मांसाहार वर्जित है। शैव जीवन मूल्यों के ज्यादा करीब लगते हैं। वैष्णवों में कट्टरता अधिक दिखती है, शैवों में स्वीकार्यता ज्यादा है। शैवों के इलाके तमिलनाडु कर्नाटक में जातिवाद शिथिल रहा है जबकि केरल और उसके सटे वैष्णव इलाके में कट्टरता ज्यादा रही है। उसी इलाके में महिलाओं के स्तन ढंकने पर टैक्स लगता था। जब अंग्रेज आए तो एक तिहाई आबादी ईसाई हो गई।
भगवान राम की लोकप्रियता देखकर वैष्णवों ने उन्हें विष्णु का अवतार घोषित कर दिया। जबकि वाल्मीकि रामायण के मुताबिक भगवान राम मांसाहारी भी थे और उन्होंने रामेश्वरम में बाकायदा भगवान शिव की पूजा भी की थी। पूरा तमिलनाडु शैव प्रभावित क्षेत्र है।
यह बर्बरता पुरानी है। शैव व वैष्णव की लड़ाई रोकने के लिए अयप्पा का जन्म हुआ था। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और शिव व मोहिनी से एक बालक का जन्म हुआ जिसे अयप्पा नाम दिया गया। तब जाकर दक्षिण में वैष्णवों और शैवों का खूनी संघर्ष रुका।
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अब नए सिरे से भारतीयों को वैष्णव बनाने की कवायद हो रही है। सरकार शिव मंदिरों को तोड़ नहीं रही है, शाक्त लोगों को मार नहीं रही है लेकिन गाहे बगाहे मांसाहार पर प्रतिबंध की कोशिश की जाती है। इस गिरोह के भक्त मांसाहारियों पर हमले करते हैं। बेहतर तो यही रहेगा कि लड़ाई अब बढ़ाई न जाए। शैव अभी भी कमजोर नहीं हैं और किसी के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए। विविधता और शांति में ही प्रोग्रेस है।
(फोटो में साक्षात मैं। सुबह सबेरे दर्शन करें और लाभ पाएं। अगर इसे साझा करेंगे तो आपका ही नहीं, चराचर जगत के समस्त मानवों का कल्याण होगा। वैश्विक शांति आएगी। यह वही जगह है जहां भगवान राम ने भगवान शिव की आराधना की थी और समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठा लिया था और उसके बाद रावण जी से निपटने के लिए शैवों, कापू शासकों की सेना के साथ लंका को निकले थे, जिन्हें बंदर भालू कहकर चिढ़ाया गया है)