धर्म को यूरोप की चर्च के माध्यम से समझेंगे तो बड़ी दिक्कत होगी

धर्म को यूरोप की चर्च के माध्यम से समझेंगे तो बड़ी दिक्कत होगी, मार्क्स ने उसी को धर्म समझा

धरती सूर्य का चक्कर लगाती है, यह कहने पर1633 ईसवी में गैलीलियो को सजा दी गई। यह सब बेवकूफियां यूरोप में ही हुई हैं। भारत में कभी किसी को न तो जेल में डाला न किसी को उत्पीड़ित किया गया इस सबके लिए।
जब यूरोप में यह सब बेवकूफियां चल रही थीं, मुगल काल मे वेधशालाएं बन रही थीं, वाटर रिजर्वायर बनाए जा रहे थे, विश्व की श्रेष्ठ पेंटिंग्स बन रही थी, ताजमहल बन रहा था, सिल्क के वे कपड़े बन रहे थे जो उंगली की अंगूठी से पूरा ड्रेस निकल जाता था।और उसी दौर में तुलसी बाबा ने रामचरित मानस लिखी, जिसने भगवान राम को स्थापित कर दिया। वैदिक देवता इंद्र मारुत, ब्रह्मा वग़ैरा तेल लेने चले गए।
कारोबार का जिसे सिल्क रुट कहते हैं, जिसे देखकर पूरी दुनिया भौचक थी, जिसे देखकर यूरोप के लोग भारत से सिल्क व मसाला कारोबार के लिए जुड़े, उस रूट पर जगह जगह बुद्ध बिहार बने हुए थे, जिसके साक्ष्य अभी भी लगातार मिल रहे हैं, बामियान कांड वगैरा होने के बावजूद।
और अगर उसके पहले का नागार्जुन का शून्यवाद, प्रतीत्यसमुत्पाद पढ़ाएं तो यूरोप आंख फाड़कर देखता है। नालंदा के बुद्धिस्ट टीचर आर्यभट्ट का आर्यभटीय गणित और सिद्धान्त ज्योतिष दोनों का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।
नालंदा परंपरा पढ़ाने वाला रजनीश जैसा कोई टीचर मिल जाए तो पूरी दुनिया उसके पीछे पगला जाती है कि जीवन यही है, हम लोग तो हत्या और जेल, नरसंहार जैसे अपराध में जिंदगी गंवा रहे हैं।
यूरोप की सम्पूर्ण प्रगति हिंसा, हत्या, बलात्कार पर केंद्रित है। युवाल नोवा हरारी को ही पढ़ डालिए कि यूरोप के लोगों ने किसी भी हिंसक जानवर से ज्यादा हिंसा की है। अभी भी यूक्रेन फिलिस्तीन पर बम गिरा रहे हैं। पूरी दुनिया को हथियार बांटकर उन्हें हिंसक बना रहे हैं। यह रास्ता प्रगति नहीं, पतन है।
मनुष्य इस लिए नहीं पैदा हुआ है कि वह एक दूसरे को लूट खसोट ले, एक दूसरे की हत्या करे, बलात्कार करे और उसी को विकास और प्रगति कहा जाए।
भारत को गलत मायाजाल में फंसा दिया गया है। इसके चलते हिंसक, बलात्कारी, हत्यारे लोग चमक रहे हैं, वह सत्ता में हैं। यह डेढ़ हजार से ज्यादा वर्षों का पतन है। फाह्यान जब भारत आया तो वह भौचक रह गया था कि गंगा किनारे रहने वाले लोग जानते ही नही हैं कि चोरी क्या होती है!
धर्म को यूरोप की चर्च के माध्यम से समझेंगे तो बड़ी दिक्कत होगी। मार्क्स ने उसी को धर्म समझा। धर्म बहुत ऊंची चीज है जो आपको तरह तरह की कल्पनाओं, चिंतन की ओर ले जाता है और उस दिशा में शोध को प्रेरित करता है।
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