अक्सर यह सवाल उठते हैं कि भारत में बुद्धिज्म के कारण लोग अहिंसक और शांतिप्रिय हो गए, जिसका फायदा विदेशी आक्रांताओं ने उठाया और भारत को लंबे समय तक गुलाम रहना पड़ा. वहीं बुद्धिज्म में वैश्विक कल्याण के फैसले करते समय हमेशा बुद्धि विवेक के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी गई है. इस लेख से आप समझ सकेंगे कि हर्षवर्धन और बंगाल के पाल वंश के शासन का इतना विस्तार क्यों था और भारत का राजनीतिक पतन क्यों हुआ. बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस
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ध्यान और शील में शील सुपीरियर है। शील की राह में अगर ध्यान आता है तो ध्यान त्याग देना चाहिए।
शील और शांति पारमिता में अगर शांति भंग हो रहा है तो शील को छोड़ दीजिए, पाप नहीं लगेगा।
अगर कोई शिकारी हिरन का पीछा करते हुए आता है और रास्ते मे भिक्षु खड़ा है, वहां से हिरन के भागने का दो रास्ता है। शिकारी अगर भिक्षु से पूछता है कि हिरन किधर गया तो अगर भिक्षु शिकारी को गलत रास्ता बता देता है तो झूठ बोलने का पाप उसके ऊपर नहीं पड़ता। वहां अगर आप सही बोलते हैं तो शिकारी हिरन को मार डालेगा। उस मौके पर झूठ बोलकर आपने जान बचाई है इसलिए आपका शील भंग नहीं माना जाएगा। अनुपात में देखना होता है कि हमारा फैसला कल्याण में है क्या?
इस तरह से बुद्ध धर्म में हायरार्की तय की गई है कि किसी नियम का पालन आपको किस स्टेप तक करना है। वह आपके विजडम आपके विवेक पर छोड़ा गया है कि कैसा फैसला करने पर जगत का कल्याण होगा।
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गौतम बुद्ध की एक पूर्वजन्म की कथा है। उस जन्म में बुद्ध व्यापारी थे। वह जहाज से व्यापार करके लौट रहे थे। उनके जहाज का चालक धूर्त था। वह जब किनारेपहुँचा तो उसने सोचा कि इस जहाज को डुबा दें। जहाज में सारे 500 लोग डूब जाएंगे, फिर मैं छोटा जहाज लेकर निकल जाऊंगा, सारा सोना चांदी हीरे जवाहरात हमारे हो जाएंगे।
बुद्ध उस समय तक बुद्ध नही बने थे। वह बोधिसत्व के रूप में थे। उन्होंने विद्या के बल से जान लिया कि पायलट का दिमाग खराब हो गया, यह 500 लोगों को मार डालेगा।
बुद्ध के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था, उन्होंने पायलट को मार दिया। उनके दिमाग मे इतना ही आया कि यह 500 लोगों को मारने का पाप करेगा, जिससे इसे कई जन्म जन्मांतर तक पाप भुगतना होगा। कई कल्प तक यह दुख भुगतेगा। इसके अलावा यह जिन 500 लोगों को मार देगा, उनके परिवार के लोगों को कितना दुख भुगतना पड़ेगा!
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बुद्ध ने उसे मार दिया तो 500 लोगों के परिवार के कल्याण के लिए ऐसा किया। उस व्यक्ति के कल्याण के लिए किया कि इसे कल्पों कल्पों तक नरक का दुख न भोगना पड़े। इस तरह से उन्होंने हत्याजैसा गलत काम तो किया, लेकिन पाप के बजाय उन्हें पुण्य का लाभ मिला।
इस तरह से हिंसा, झूठ, शील, समाधि के लिए हायरार्की तय है और आपको अपने विवेक से फैसला करना है कि कहां तक नियम का पालन करना है और किस परिस्थिति में जगत हित लोक कल्याण देखना है।
अक्सर मांसाहार की चर्चा होती है, शराब की चर्चा होती है। बुद्धिज्म में इन दोनों का निषेध किया गया है। लेकिन जहां ठंडे इलाको में इसका सेवन लोग करते ही हैं उसमें कोई परेशानी नही है। मांसाहार भी पूरी तरह वर्जित है।
लोग वज्रयान को शराब, मांस, सेक्स से जोड़कर देखते हैं। यह धारणा 1000 प्रतिशत गलत है। वज्रयान में कभी भी कहीं भी मांस मदिरा मैथुन को न तो समर्थन किया गया है और न ही उसे ध्यान का साधन बताया गया है। हिमाचल से लेकर नेपाल और तिब्बत तक कहीं भी बुद्धिस्टों को मांस अलाऊ नही है।लेकिन किसी मांस खाने वाले से कोई घृणा भी नहीं करता।
खैर… कुछ लोग बहुत ओछे स्तर पर तर्क वितर्क करते हैं कि बुद्धिज्म में सभी को अहिंसक बना दिया गया इसलिए भारत गुलाम हो गया। रिकॉर्ड इसके विपरीत है। नॉर्थ में हर्षवर्धन और बंगाल में पॉल शासक बुद्धिस्ट थे। शंकर दिग्विजय में शंकराचार्य ने लिखा है कि केरल की सेना लेकर कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य ने बुद्धिस्ट टीचरों का संहार किया। उसे बाद बुद्धिज्म खत्म हो गया और 11वी सदी आते आते इस्लाम और 15वी सदी आते आते मुगलों का देश पर शासन हो गया। मुगलों या सल्तनत राजाओं का हिंदुइज्म से कोई टकराव नहीं था और हुआ भी तो इस्लाम के अनुयायियों ने कब्जा ही कर लिया। बुद्धिज्म पहले ही कमजोर किया जा चुका था, इसके बाद ही आक्रांता भारत मे आए हैं।