दुःख व दरिद्रता की वजह नहीं पहचान पाए तो हमेशा दरिद्रता घेरे ही रहेगी : धम्मपद-5

विश्व में हर कोई दुख से मुक्ति पाना चाहता है, जिसे दुःख है। यह स्वाभाविक सी इच्छा है कि दुःखों से मुक्ति मिलनी चाहिए। अब इसमें सबसे बड़ी समस्या होती है कि दुःख की पहचान कैसे की जाए?
जब भी आप किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाते हैं तो वह आपके दुःख की वजह जानने की कोशिश करते हैं। हालांकि एलोपैथी में यह कम ही किया जाता है। लेकिन एलोपैथी के विकास के साथ उसके डॉक्टर भी जानने की कोशिश करने लगे हैं कि किसी मरीज को समस्या है तो क्यों है और किस वजह से हैं।
बुद्ध ने दुःख के 3 प्रकार बताए हैं। पहला, दुःख दुखता। दूसरा,परिणाम दुःख। तीसरा, संस्कार दुख।
ज्यादातर चिरकुट मानव पहले वाले यानी दुःख दुखता को ही समझ पाते हैं। इस पहले प्रकार के दुःख में साक्षात दुःख शामिल है। जैसे चोट लगी, आपकी टांग टूट गई, दर्द हो रहा है। आप बीमार पड़ गए हैं, रोगी हो गए हैं। या आपको नौकरी नहीं मिल रही है, खाने का ठिकाना नहीं है। या दरिद्रता घेरे हुए है, नङ्गे भूखे हैं। आपके पास मकान नहीं है और गर्मी जाड़ा बारिश में आपका बेड़ा गर्क हो रहा है। यह सीधा सीधा दुःख होता है।
इस पहले प्रकार के दुःख में यह समझिए कि पूरी दुनिया फंसी पड़ी है। खासकर विकासशील देश या थर्ड कंट्री वाले नून रोटी जुटाने में ही मर खप रहे हैं। इस दुख का समाधान सामाजिक न्याय में है। आर्थिक व्यवस्था मजबूत करके इसे दूर किया जा सकता है।
परिणाम दुःख इसके ऊपर वाली श्रेणी है। आपके पास पैसा है,अमीर हैं। शरीर स्वस्थ है। भरा पूरा परिवार है। सब कुछ पटरी पर चल रहा है। इसकी वजह से आपको सुख हो रहा है। लेकिन यह सब परिवर्तन शील है। आपका धन कब गायब हो जाए और आप अनिल अंबानी की गति प्राप्त कर जाएं, आपका सगा भाई दुनिया के सारे नाचने गाने वाले नेताओं को बुलाकर अपने मंच पर नचा रहा हो और आप सीन से गायब रहें। यह सम्भव है। इसका दुःख अलग है। यह परिणाम दुःख है। इस परिवर्तनशील सुख के बदलाव से बड़े बड़े सेठ आत्महत्या कर लेते हैं। कोई लाखों के पैकेज वाला इंजीनियर अपनी ही कार की छत पर चढ़कर समुद्र में छलांग लगा देता है, यह इतना खतरनाक दुःख है।
यह परिणाम दुःख इसलिए है कि यह सुख से पैदा हुआ दुःख होता है। आप 4 घण्टे खड़े रहें तो बैठने के लिए छटपटाने लगते हैं। बैठते हैं तो आपको सुख मिल जाता है। लेकिन फिर आपको 4 घण्टे बिठा दिया जाए कि भाई साहब आप ध्यान करें तो छटपटाने लगते हैं कि कैसे जल्द से जल्द खड़े हो जाएं! यानी बैठने को आप सुख मान रहे थे वह 4 घण्टे में ही दुःख में कन्वर्ट हुआ और उसके 4 घण्टे।पहले खड़ा होना दुःख लग रहा था, वही आपको सुख लगने लगता है। तो मसला यह है कि आपने जिसे सुख समझा था वह दरअसल सुख था ही नहीं। आपने एक अगले दुःख की नींव डाली थी और जैसे ही उसकी दीवार खड़ी हुई, वह आपको दुःख पहुँचाने लगी! जबकि अगर वह सुख था तो स्थायी होना चाहिए था कि आप कितनी भी देर बैठे रहते, मजे ही मजे रहते आपके! यानी के दुःख को समाप्त करने के लिए हम दूसरे दुःख की नींव डालते हैं। इस वेराइटी वाला दुःख परिणाम दुःख है। इसे सामाजिक न्याय या आर्थिक संपन्नता से दूर नहीं किया जा सकता है।
तीसरा दुख संस्कार दुःख है। आप जब पैदा होते हैं तब कर्म और क्लेश के बंधन से आपकी शरीर का ढांचा तैयार होता है। और यह आपकी मौत होने तक आपके साथ चलता है। आप ऐसा नहीं कर सकते कि कपड़े की तरह इस शरीर को बदल दें। यह कर्म और क्लेश इनके साथ रहेगा ही। यह आपको दुख दुःखता और परिणाम दुःख का अहसास कराता रहेगा। आपके शरीर को कर्म और क्लेश से बांध दिया गया है। जन्म से मौत तक आप इससे बंधे रहते हैं। आप स्वाधीन नहीं, बल्कि कर्म और क्लेश के पराधीन हैं। यह शरीर हमको दुख का अनुभव कराती है। दुःख दुःखता और परिणाम दुःखता का एहसास कराती है।
गौतम बुद्ध जब राजगृह के वेणुवन में थे तो परिव्राजक संजय ने उनसे गलत सही के चक्कर के बारे में पूछा, जिससे दुःख पैदा होता है। बुद्ध ने कहा…
असारे सारमतिनो सारे चासारदस्सिनो।।
ते सारं नाधिगच्छन्ति मिच्छासङ्कप्पगोचरा।।11।।
(असारे सारमतयः सारे चासारदर्शिनः। ते सारं नाधिगच्छन्ति मिथ्यासंकल्पगोचरा।।11।।)
जो असार को सार और सार को असार समझते हैं, वे मिथ्या संकल्प में पड़े (व्यक्ति) सार को प्राप्त नहीं करते हैं।
सारच्च सारतो त्रत्वा असारञ्च असारतो।
ते सारं अधिगच्छन्ति सम्मासङ्कप्पगोचरा॥12॥
(सारं च सारतो ज्ञात्वा, असारंच असारतः।
ते सारं अधिगच्छन्ति सम्यक संकल्पगोचराः॥12॥)
जो असार को असार और सार को सार समझते हैं, वे सम्यक् संकल्प से मुक्त (व्यक्ति) सार को प्राप्त करते है।

इस कर्म और क्लेश में बदलाव किया जा सकता है। इसका तरीका है। आपको 3 दुःखों का पैकेज इस शरीर के साथ ही मिला हुआ है। ज्यादातर लोग सिर्फ पहले के चक्कर मे खप जाते हैं जबकि दूसरे तीसरे दुःख की वजहें जानकर उसे दूर करने पर पहला भी धीरे धीरे कम होने लगता है।
#भवतु_सब्ब_मंगलम

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