अगर आपके भीतर राग आता है तो आप सुखी नहीं रह सकते : धम्मपद-6

अगर आप अपने ज्ञान, अनुभव और विवेकशीलता से निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं तो राग का असर आपके ऊपर नहीं पड़ेगा। बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…

राजनीति और इसकी हलचलें बहुत गड़बड़ चीजें हैं। यह अगर आपके दिमाग मे घुस जाएं तो बहुत जबरदस्त केमिकल लोचा पैदा करती हैं। पिछले कुछ दिन से लगातार राजनीति ही दिमाग में चलीं जिससे अच्छी सोच, अच्छी चीजें गायब ही हो गईं।
गौतम बुद्ध श्रावस्ती के जेतवन में थे। वह थेर नंद से कहते हैं…
ययागारं दुच्छन्नं वृद्धि समतिविज्झति।
एवं अभावितं चित्तं रागो समतिविज्झति ॥13।।
( यथागारं दुश्छन्नं वृष्टिः समतिविष्यति।
एवं अभावितं चित्तं रागः समतिविष्यति॥13॥)
जैसे ठीक से न छाये हुए घर में वृष्टि का जल घुस जाता है, वैसे ही ध्यान-भावना से रहित चित्त में राग घुस जाता है।
यथागारं सुच्छन्नं वृष्ठि न समतिविज्झति।
एवं सुभावितं चित्तं रागो न समतिविज्झति॥14॥
(ययागारं सुच्छन्नं वृष्टिर्न समतिविष्यति।
एवं सुभावितं चित्तं रागो न समतिविष्यति।।14॥ )
जैसे ठीक से छाये हुए घर में वृष्टि का जल नहीं घुसता है, वैसे ही ध्यान- भावना से अभ्यस्त चित्त में राग नहीं घुसता है।
मतलब अभी अच्छे तरह से घर को छाया नहीं जा सका है। चित्त में राग घुस ही जाता है।
हमारे चित्त में राग अक्सर घुसा रहता है। हम अपने क्रोध को रोक नहीं पाते, अक्सर। बुद्धिज्म में मौन को बड़ा महत्त्व दिया गया है। तीन स्थितियों में मौन बड़ा फायदेमंद होता है। आप जब बहुत क्रोध में हों तो मौन हो जाइए। यह मौन आपको कम से कम गलत रास्ते पर जाने से तत्काल रोक देता है। अगर आप क्रोध में मौन होते हैं और आपका विजडम विकसित है तो समस्या का समाधान कुछ न कुछ निकल ही जाएगा। और जब आपका विजडम चरम पर होता है तब आपको क्रोध आने के पहले ही आपको आपकी समस्या का समाधान दे देता है। परम संत Yashwant Singh को क्रोध आया तो 24 घण्टे में थोड़ा समाधान मिला, 48 घण्टे में 60% समाधान मिल गया। अगर आप संत नहीं हैं तो हो सकता है कि एक महीने या 6 महीने में समाधान मिल पाए। लेकिन तरीका यही है कि क्रोध में मौन रहें जिससे विवेक नष्ट अवस्था मे कदम न उठे।
दूसरी अवस्था यह है कि आप अगर किसी से कोई बात कहते हैं या यूं ही कोई बात कहते हैं और आपको कोई सुनने को तैयार ही नहीं है, तो मौन हो जाएं। खुद को नए सिरे से तैयार करें जिससे आपकी बात सुनने योग्य हो जाए। कोई जरूरी नहीं कि आप जो सुना रहे हैं वह सुनने योग्य बात हो। यह भी जरूरी नहीं है कि रिसीवर यानी श्रोता इस योग्य हो कि आपकी बात समझ पाए। ऐसी अवस्था मे भी मौन होना श्रेयस्कर है।
तीसरी अवस्था यह है कि अगर आपको किसी को सुनना है तो मौन हो जाएं। बहुत ज्यादा क्रॉस क्वेश्चन से बड़ी समस्या होती है। इसलिए कई मामलों में कहा जाता है कि आप यहां आए हैं तो अपने ज्ञान की गठरी उतारकर आएं या उसकी बत्ती बना लें। मतलब कड़ाई से निर्देश होता है कि आप सुनने के लिए आए हैं तो सोचें, विचारें, सुनें। सत्यनारायण गोयनका जी अपने यहां विपश्यना में एकदम गन प्वाइंट पर मौन करवाए रहते हैं। और भी विपश्यना केंद्रों पर एक सीमित वक्त में ही बोलना होता है, शेष वक्त आपको सुनना होता है या खुद पर ध्यान देना होता है।
Samdhong Rinpoche प्रोफेसर रहे हैं। 50- 60 साल से बुद्धिज्म पढ़ा रहे हैं। उनके तमाम वीडियो आपको यू ट्यूब पर मिल जाएंगे। उन्होंने एक बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही कि मैं बुद्धिज्म का प्रैक्टिसनर नहीं हूँ, केवल सैद्धांतिक पक्ष बता सकता हूँ। और प्रैक्टिस किए बगैर कुछ कहना बहुत कारगर नहीं है।
हाल के वर्षों में आचार्य श्रीधर राणा रिनपोछे से मिला। उनके व्यक्तित्व ने बहुत आकर्षित किया। वह होटल मैनेजमेंट के शुरुआती ग्रेजुएट हैं। नेपाल की राणा फेमिली के हैं। उन्होंने यूरोप में होटल मैनेजमेंट में काम किया, नेपाल में टूरिज्म और होटल मैनेजमेंट को एक नई दिशा दी। इस बीच वह वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, द्वैतवाद, अद्वैतवाद, थियोसोफी, वैश्विक धर्मो और दर्शनों को पढ़ते रहे। अपने हमउम्र और हमदौर कृष्णमूर्ति से लेकर रजनीश, श्री श्री रविशंकर, जग्गी वासुदेव पर भी नज़र बनाए रहे। और आखिरकार बुद्धिज्म पर आकर टिके।
वह बुद्धिज्म के ज्ञाता के साथ प्रैक्टिशनर भी हैं, सबसे अच्छी बात यह है। यानी सांढ़ोंग रिनपोछे के मुताबिक सही राह दिखाने के गुरु वही हैं।
बुद्धिज्म में एक मान्यता यह है धरती पर तमाम बुद्ध हुए, लेकिन उन्होंने ज्ञान दिया ही नहीं। उनको कोई पात्र ही न मिला, जिसे वह ज्ञान दें। सबको NFS घोषित करके चले गए। यह सही भी है कि बुद्धिज्म के करीब होने पर मनुष्य शांत होने लगता है और कोई स्वार्थ नहीं रह जाता। जो बड़े प्रैक्टिशनर होते हैं उनके एजेंडे से यह बाहर ही हो जाता है कि चेलहटी बनाएं, धन संपदा बनाएं।
अगर श्रीधर राणा रिनपोछे को ही देखें तो जो व्यक्ति होटल मैनेजमेंट में टॉप पोस्ट्स पर रहा हो, योरोप कल्चर में रहा हो, राणा फेमिली से हो, उसे अब कौन सा धन मोह, कौन सा लग्जरी मोह होगा कि वह किसी को चेला बनाने के पीछे भागेगा? वह भी 70 साल की उम्र में! इस हिसाब से मैं इनको एक निस्वार्थ दिग्दर्शक के रूप में लेता हूँ।
आज महायोगी आचार्य श्रीधर राणा रिनपोछे का जन्मदिन है। मैं उनके दीर्घायु होने की कामना अपने स्वार्थ में कर रहा हूँ कि मुझे ज्ञान दिए बगैर आप न जाइयेगा
#भवतु_सब्ब_मंगलम

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