आयुर्वेद में तेल मालिश की बड़ी महत्ता बताई गई है। बढ़ती उम्र में यह बहुत फायदेमंद होता है। बच्चों से बुजुर्गों तक के तेल मालिश की भारत में परंपरा रही है। तेल मसाज के तमाम फायदे बता रहे हैं डॉ प्रदीप चौधरी…
रविवार दिन ‘विश्राम’ का नहीं, मालिश का होता था।
घर-घर में “तेल गरम कर लो” की पुकार गूँजती थी।
सरसों के तेल में भुनी बुकवा, चूल्हे की आँच, और अम्मा,दादी की उँगलियाँ —
मालिश सिर्फ़ शरीर नहीं, घर भी गूँथ देती थी।
अब वही मालिश “पेड सर्विस” हो गई है।
“UrbanClap” की बुकिंग है,
पर ना दादी हैं,
ना वो थपकी,
ना वो “जा बेटा, अब नींद आएगी” वाली गारंटी।
खैर! अब यही है तो इसका ही प्रयोग कीजिए ।
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जब ऋषियों ने सिखाया — स्पर्श भी औषधि होता है
जब आत्रेय मुनि अपने शिष्यों को शरीर की रक्षा का रहस्य बता रहे थे,
तो उन्होंने दिनचर्या का मूल मंत्र दिया:
“अभ्यङ्गमाचरेन्नित्यं स जराश्रमवातहा।
दृष्टिप्रसादपुष्ट्यायुःस्वप्नसुत्वक्त्वदाढर्धकृत् ॥”
(अष्टांगहृदय)
मतलब —
प्रतिदिन अभ्यंग (तेल-मालिश) करें। इससे बुढ़ापा, थकावट और वात दूर होता है; दृष्टि तेज़ होती है; शरीर पुष्ट और बलवान होता है; नींद गहरी आती है और त्वचा सुंदर बनी रहती है।
अब प्रतिदिन का समय नहीं है तो कम से कम रविवार को या छुट्टी के दिन कर सकते हैं ।
एक बार शिष्य अग्निवेश ने पूछा — “तेल से शरीर कैसे मजबूत होता है?”
तो आत्रेय ने मिट्टी के घड़े का उदाहरण दिया —
“जो घड़ा तेल सोखता है, वह गिरकर भी जल्दी नहीं टूटता।”
क्योंकि:
“तेलं हि शस्तं सकलेन्द्रियेषु,
वातापनाहक्लमशोथनाशनम्”
(चरक )
तेल सभी इंद्रियों के लिए हितकारी है —
वात, थकावट और सूजन का विनाशक।
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आज का ‘वात’ दिखता नहीं, पर थकाता बहुत है
आज Functional Dyspepsia, Anxiety, IBS —
ये सब वातज विकार ही हैं,
जहाँ शरीर से ज़्यादा मन थका है।
“शुष्को लघु: शीतो खर: सूक्ष्म: चलोऽनिल:”
वात शुष्क, हल्का, ठंडा, खुरदुरा, सूक्ष्म और चंचल होता है —
और इसीलिए ये गहराई में घुसकर शरीर को थका देता है।
इसलिए जो रोगी कहते हैं,
“सर, कहीं भी दबाओ डकार आ जाती है…”
मैं कहता हूँ — “तेल लगाओ, गोली नहीं।”
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रिश्तों में स्नेह भी अभ्यंग चाहता है
अब घर में पति-पत्नी भी टच स्क्रीन से टच में हैं —
पर स्पर्श से नहीं।
मैं अपने क्लिनिक में सुझाव देता हूँ:
“पार्टनर से अभ्यंग करवाइए — ये Couple Therapy Without Therapy है।”
“स्नेहं स्नेहेन हन्यते”
स्नेह (वात) को स्नेह (स्पर्श व तेल) से ही हराया जा सकता है।
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वजन घटाना है? तो उर्ध्ववर्तन आज़माइए
उर्ध्ववर्तन यानी सूखी मालिश —
त्रिफला, कुलथ या जौ के चूर्ण से, बालों की उल्टी दिशा में —
जिद्दी चर्बी को नीचे से ऊपर तक समझाइए।
“उर्ध्ववर्तनकृच्छर्म स्फुटं सौकुमार्यकम्।
चर्मवृद्ध्युपशान्त्यर्थं रुक्षणं स्यादनुत्तमम्॥”
(शार्ङ्गधर )
यह त्वचा की स्फुटता, चर्बी और त्वचा विकृति के लिए विशेष लाभदायक है।
लेकिन फिर भी —
“मालिश के बाद पकौड़ी नहीं चलेगी।”
व्यायाम और संयम जरूरी है।
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तो कीजिए अभ्यंग — शरीर के लिए,
संबंधों के लिए,
और उस खोए हुए स्नेह के लिए
जो सिर्फ़ ‘स्पर्श’ से लौटता है।”
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