ममता गौतम
अब अपने आप को कुछ मामलों में संकीर्ण मान चुकी हूँ. मैं ख़ुद को आधुनिक लड़की भी नहीं कहती. इसलिए सिगरेट नहीं पीती. ख़ुद को दलित भी मानती हूँ, इसलिए पढ़ाई को बहुत महत्त्व देती हूँ.
पहले मैं विचारधारा को बहुत महत्त्वपूर्ण मानती थी, पर अब मेरे लिए व्यक्ति का स्वभाव बहुत जरूरी हो गया है. चाहे वो किसी भी जाति का हो. मुझे चरित्रहीन लोगों से सबसे ज़्यादा नफरत है. बेशक उनकी हैसियत मुझसे सौ गुनाह ज़्यादा हो. मुझे कोई अब क्रांति के नाम पर कोई बरगला नही सकता है. मैं सबका छिछलापन देख चुकी हूँ और अपनी ईमानदारी भी.
मैं अब ख़ुद को बटे हुए रूप में नही देखना चाहती. मैं हर जाति के लोगों से स्नेह रखती हूँ. मैं अब किसी की भी अटकलों पर भरोसा नही करूँगी कि हर जाति का अपना चरित्र होता है.
मैं थक गई हूँ एक जाति की दूसरी जाति से बुराई सुनते सुनते. मेरी संविधान में आस्था है. औऱ ख़ुद में भी मैं बुद्ध को लेकर धार्मिक भी हूँ. कोई मुझसे नफरत करें या कोई कमजोर कहे, लेकिन मैं ख़ुद से ख़ुश हूँ. बेशक़ अब मैं लिबरल रैडिकल ग्रुप में संकीर्ण कही जाऊं या कुछ भी. ये पूरी मेरी जिंदगी है, जिसे मैं भरपूर तरीके से जीना चाहती हूँ. अब बंटवारे में नही जीना चाहती हूँ. तर्को से किसी को हराकर किसी का दिल नहीं तोड़ना चाहती हूँ. मैं अब लौट जाना चाहती हूँ अपने घर.