अम्बेडकरवाद और ब्राह्मणवाद में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध

अम्बेडकरवाद और ब्राह्मणवाद में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध?

अम्बेडकरवाद और ब्राह्मणवाद में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध रहा है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। अगर ब्राह्मणवाद खत्म हो जाए तो अम्बेडकरवाद की प्रासंगिकता नहीं रहेगी। दोनों ही जाति चिंतन में रहते हैं। यूरोप के देशों में पूंजीवाद और मार्क्सवाद ऐसा ही मामला है। एक का काम पूंजी का संकेद्रण पर जोर देना है और एक का काम पूंजी के केन्द्रण को रोकना है। लेकिन दोनों धन पर ही केंद्रित हैं। दोनों के अंतर्मन में धन है… बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…

 

जिंदगी किसी चरम पर जाने से इतर सिम्पल रहने में हैं। Love, forgiveness, tolerance, contentment, simplicity (प्रेम, क्षमा, सहनशीलता, संतोष, सरलता). यह 5 सूत्र शब्द जीवन में सुकून लाते हैं. कल एक बार सूत्र में इसकी चर्चा की। मनुष्य के मूल में प्रेम है। आप आजमाकर देखें। किसी को आप चाहे जितना पापी अत्याचारी कठोर समझते हैं उसकी आंतरिक अवस्था प्रेम की होती है। ऊपर से जब आप संस्कार थोपते हैं तब वह अलग होता है अदरवाइज प्रेम उसकी पैदाइशी और मूल धारणा होती है। थोपे गए संस्कार या संस्कृति को जैसे ही हटाएंगे, मूल में प्रेम निकलकर सामने आता है।

हर कोई संस्कृत है। वह अपने संस्कारों से भरा है। तमाम संस्कार उसे समाज से मिले हैं। तमाम उसे जन्म से मिले हैं जिसे पूर्वजन्म मानने वाले कहते हैं कि पहले की चेतना ट्रांसफर होने के कारण नए शरीर में वह संस्कार आ गए। उसके अलावा व्यक्ति खुद के कर्मो से संस्कार क्रिएट करता है। ऐसे में आप अपनी जिंदगी मस्त जी रहे हैं और कोई आकर उसमें उथल पुथल कर देता है, आपको पीड़ा पहुंचा देता है तो आपको दुःख होना स्वाभाविक है। लेकिन अगर आपमें यह गुण नहीं होगा कि छोड़ो यार… तो आपकी मानसिक हलचल इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी कि आपको नुकसान पहुंचाने वाला व्यक्ति आपके मस्तिष्क पर कब्जा कर लेगा और आप सारे काम छोड़कर उसी के पीछे लग जाएंगे। अन्य काम को बड़ा नुकसान हो जाएगा। इसलिए चेतना को हमेशा जागृत रखें। जब चेतना जागृत रहेगी, अवेयरनेस रहेगी तो आपको समझ रहेगी कि उससे कैसे निपट लेना है और उसे अपने मन मस्तिष्क पर छाने नहीं देना है जिसने आपके मुताबिक बुरा किया है। यह रहने पर आपको हाय हाय नहीं करना पड़ेगा कि हमने तो उसके लिए सब कुछ किया, उसने हमको भाव नहीं दिया या लूट लिया। जिंदगी के लिए यह अहम फार्मूला है, जो आपके दम्भ को भी कम करता है कि जिसमें आपको गफलत होती है कि धरती हमारे ही फन पर टिकी है और हमने ही सब कुछ किया सबने मुझे लूट ही लिया और इस दम्भ में आप अपने सभी प्रिय मित्र शुभचिंतक एक एक करके गंवाते जाते हैं।

एक नजर इधर भीः जो सामने आए उसे स्वीकार करके बेहतर करने की कोशिश ही अच्छी रणनीति

Tolerance भी बड़ी अहम चीज है। इसको सोशल मीडिया पर अच्छे से सीखा जा सकता है। हम चाहते हैं कि लोग हमारी वाल पर आएं और हम जो क्रांति मचाए पड़े हैं, उसको पढ़ें। लेकिन जैसे ही हमारे मुताबिक कोई मूर्खता करता है, कुछ सुनने को राजी नहीं होता, पूर्व संस्कारो के मुताबिक कॉपी पेस्ट मारता है, गाली गलौज, टॉपिक पर बात न करके आपके और आपकी जिंदगी पर निजी टिप्पणी करता है तो आप बौखला जाते हैं। दरअसल होता क्या है कि आप उसके आराध्य पर सवाल उठाते हैं जिसने उसके मस्तिष्क पर कब्जा किया होता है, फिर वह आपके ऊपर हिट करता है, आपको औकात दिखाने की कोशिश करता है, वह टॉपिक पर बात ही नहीं करता। ऐसे भक्तों की बड़ी महिमा है और अगर यह ब्रेनवाश होकर आपके भक्त बन जाएं तो आपको भी भगवान बना देंगे। इसलिए इनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए खैर यहां भी वही चेतना और अवेयरनेस की बात आती है और आपको खुद तय करना है कि कितना टॉलरेंस करने पर आपका जीवन प्रभावित नहीं होता है।

Contentment बड़ी मस्त चीज है। इसकी तमाम दार्शनिकों ने अपनी समझ के मुताबिक व्याख्या की है। संस्कृत में कहा गया है कि सन्तोषम परम सुखम। और भी आपको तमाम उदाहरण मिलेंगे जहाँ संतोष की बात कही गई है। बुद्धिज्म में यह व्यापक दर्शन है। आप मुकेश अम्बानी होकर भी धन से विरक्त हो सकते हैं और एक सिम्पल रोजी रोटी कमाने वाला इंसान भी। इस पर पहले भी लिखा है। संतोष परम अवस्था है कि हमको हाय हाय में बहुत ज्यादा नहीं फंसना है। इसका मतलब यह नहीं कि धन नहीं कमाना, सुख सुविधाएं नहीं जुटाना है, बल्कि उसके प्रति पागलपन नहीं करना है। उसके प्रति इतनी आसक्ति नहीं करनी है कि अगर वह खत्म हो जाए तो आप अपनी जिंदगी ही खत्म कर लें। यहाँ भी अवेयरनेस अहम रोल प्ले करेगा।

एक नजर इधर भीः कम बोलना आपके जीवन में बहुत बड़ी शांति लाता है…

सिम्पलिसिटी तो जान ही रहे हैं। इसकी महिमा समझनी है तो गांधीजी के जीवन को देखें। वह कुछ खास नहीं करते थे। बहुत सहज थे। सब कुछ खुला रखते थे। बता दिया कि पिताजी की अंतिम सांस चल रही थी तो वह पत्नी के साथ सेक्स करने चले गए! और जब थोड़ी देर में पिता मर गए तो उन्हें बड़ा अफसोस भी हुआ। हर मनुष्य ऐसा ही होता है, गांधी ने केवल कह दिया। ऐसे तमाम प्रसंग हैं जब गांधी बहुत सहज होते थे और वही सहजता उन्हें आम इंसानो से इतर बना देती थी। यही सहजता असाधारण बना देती है।

इस समय सबसे ज्यादा हमला सहजता पर हुआ है। आपके पास इतनी चॉइस दे दी गई है कि पगला गए हैं। खाने जाएं तो मेन्यू देखकर कन्फ्यूज। बैंक खाता खोलने जाएं तो कौन सा अच्छा है, उसमें कन्फ्यूज। कर्ज लेने जाएं तो दर्जनों कर्जदाता में कन्फ्यूज। बीमा लेने जाएं तो कम्पनी ही नहीं, तमाम पॉलिसियों में कन्फ्यूज। क्रेडिट कार्ड लेने जाएं तो किस बैंक का बेस्ट पड़ेगा उसमें कन्फ्यूज। इस तरह से आपको पगलवाने के तमाम साधन मुहैया कराए गए हैं। आपकी सहजता छीनी जा चुकी है। इसे आपकी सेवा और सुविधा बताया जा रहा है।

मैंने एक वक्त में 5 क्रेडिट कार्ड रखा। 2008 के आसपास। मैं इसी में परेशान रहता था कि किससे कितनी खरीदारी की। किसका कब पेमेंट करना है। किसी का पेमेंट चूका तो भारी भरकम फाइन। 2014 आते आते सारे क्रेडिट कार्ड बंद कर दिए। सोच लिया कि हमको ऑफर चाहिए ही नहीं। यह तो पगलवा रहा है। जब कमाई का सीमित जरिया है और जो सेलरी आनी है उसी से महीना चलना है तो एक ही डेबिट कार्ड से क्यों न मैनेज करें और जितना है उतने में ही जीने की कोशिश करें? हाँ, इसमें भी अवेयरनेस की जरूरत है कि कितने पर पोजिशन लें और स्टॉप प्वाइंट मार दें।

सहज होना इस समय सबसे कठिन हो गया है। जब मैं आश्रम बना लेने, जिंदगी की जटिलताओं को हल्का करने की बात करता हूँ तो इसी सहजता की परिकल्पना होती है। इसमें डेबिट कार्ड,क्रेडिट कार्ड, पासवर्ड, सोशल मीडिया, ये खाना, वो पहनना का पागलपन न हो। । अपने मुताबिक जिंदगी जीने के लिए, अपने लिए भरपूर वक्त हो।

अब मूल टॉपिक पर आते हैं। जिंदगी के लिए यह 5 चीजें जरूरी हैं, इसमें पूंजी या जाति का पागलपन नहीं आता कि एक दूसरे का कपार फोड़ते रहें इन मसलों पर। दरअसल ये सब जिंदगी के मसले हैं ही नहीं, मनुष्यों द्वारा संस्कृत चीजें हैं जिसका सृजन।मनुष्यों ने किया है। इस संस्कृत के जाल में फंसकर हम पगलाएँगे ही, क्योंकि यह हम मनुष्यों की प्रकृति में नहीं है। खाइए, पीजिए, घूमिये फिरिये, अपने मूल स्वभाव में रहिए।

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