हनुमान जी को क्रोध में दिखाकर उनकी बुद्धि का अपमान किया जा रहा है

आजकल हनुमान को एंग्री यंग मैन के रूप में दिखाया जा रहा है, जबकि शास्त्रों में उन्हें बुद्धि के प्रतीक के रूप में दिखाया गया है।आयुर्वेद में क्रोध और बुद्धि को विपरीत ध्रुव माना गया है। हनुमान जी को क्रोध में दिखाकर उनकी बुद्धि का अपमान किया जा रहा है। पढ़िए डॉ प्रदीप चौधरी का लेख…

आज हनुमान जयंती है, लेकिन सोशल मीडिया पर “एंग्री हनुमान” का ट्रेंड ज़ोरों पर है। बाइसेप्स फुल, आँखें लाल, मुँह से आग, जैसे क्रोध ही अब भक्ति का मापदंड हो गया हो।
पर क्या हनुमान जी को हम क्रोध का देवता मान सकते हैं?
या फिर वो बल के साथ बुद्धि और शांति का समन्वय हैं?

जब आप ऐसा करते हैं तो तनिक नहीं सोचते हैं कि आप कर क्या रहें हैं?
एंग्री और बुद्धि दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं ।
और हनुमान जी तो “ज्ञान गुण सागर हैं “।

भगवद्गीता (2.63) में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है:

“क्रोधाद्भवति सम्मोहः, सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः,
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।”
यानि, क्रोध से स्मृति भ्रमित होती है, और अंततः बुद्धि का नाश होता है।

अब सोचिए—हनुमान जी, जिन्होंने विभीषण की शरणागति को भी तुरंत समझा,
जो सीता माता को देखकर संयम में रहे,
जो रावण दरबार में भी रणनीति से संवाद कर आए—
क्या वो क्रोध से संचालित थे या विवेक से?

आयुर्वेद में भी क्रोध एक रोगजन्य मनोवृत्ति है:
चरक संहिता में कहा गया है:

“क्रोधः शोकभयेष्वेव चित्तं विक्षिपति प्रजाः।”
क्रोध, भय और शोक—तीनों ही चित्त को विचलित करते हैं।
और जब चित्त विचलित होता है, तो रोग प्रवेश करता है।
आयुर्वेद कहता है: क्रोध पित्त को बढ़ाता है, जिससे शरीर में गर्मी, एलर्जी, हाइपरटेंशन, और यहाँ तक कि मानसिक अशांति का भी जन्म होता है।

हनुमान जी, जिन्हें संजीवनी की समझ थी, रस-रसायन विद्या का ज्ञान था, क्या वे खुद उस मनोदोष से ग्रसित होंगे जो शरीर को जलाता है?

“एंग्री हनुमान” क्यों नहीं, और सौम्य हनुमान क्यों?
क्योंकि बल अकेले सब कुछ नहीं।
बल का संयमित प्रयोग ही धर्म है।

क्रोध कोर्टिसोल बढ़ाता है,जिससे इम्युनिटी गिरती है,
और I डिसिजन -मेकिंग कमजोर होती है।

वहीं संयम, ध्यान, सात्विक आहार, और अनुशासित जीवन, ओज को बढ़ाते हैं।

ओजः शरीरे संख्यातं तन्नाशान्ना विनश्यति।
ओजस शरीर की रक्षा करता है, उसका नाश जीवन का नाश है।
हनुमान जी ओज के प्रतीक हैं—भीतर का तेज, जो बिना चीखे-चिल्लाए जलता है और अवसर पर प्रकट होता है।

मेरे युवा भाइयों :
जिन्हें लगता है शक्ति = क्रोध, उन्हें समझना होगा—
संयम और समर्पण ही वो पुल हैं, जो शक्ति को विनाश से धर्म में बदलते हैं।

हनुमान जयंती पर केवल जयकारा न लगाएँ—
उनकी मानसिक संरचना, उनका संयम, और उनकी औषध-चेतना को समझें।

हनुमान को “बाहुबल” से मत बाँधिए,
उन्हें “बुद्धिबल और औषधिबल” से पहचानिए।

“बल बुद्धि विद्या देहु मोहि—हरहु कलेश विकार”
क्योंकि बल तब तक उपयोगी नहीं,
जब तक उसमें संयम और सेवा न हो।

हनुमान जयंती की शुभकामनाएँ.

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