बच्चों की दुनिया से खुद को कटने न दें, बातचीत करते रहना जरूरी

कंसल्टेंट मनोचिकित्सक और काउंसलर
माता पिता बच्चों को खुद से कटने न दें. आज की तारीख में रेगुलर बातचीत ही वो खिड़की है, जिससे हम बच्चों के जीवन और मन में झांक सकते हैं.
बच्चे जब स्कूल से आते हैं तो उनसे बात कीजिए. अगर उस वक्त थके हों तो बाद में शाम को उनसे बात कीजिए. हल्के फुल्के ढंग से उनसे अलग अलग विषयों पर बात कीजिए. ध्यान रहे कि बात करने की जबरदस्ती न करें और न ही नकारात्मक टिप्पणियां करें.
उनसे बातचीत का एक रास्ता सदैव खुला रखें और ये आदत बचपन से ही डालें, तो आप अपने बच्चे की दुनिया से कटेंगे नहीं और उनके जीवन मे क्या चल रहा है उसका अंदाज़ आपको रहेगा.
और कभी किसी मुद्दे या कैरियर चॉइस आदि हेतु काउंसलिंग या परेशानी हेतु इलाज की ज़रूरत भी पड़ी तो भी आप मनोचिकित्सक और काउंसलर को ठीक ठीक जानकारी दे पाएंगे।
आज के मोबाइल युग मे बच्चे से संवाद साधना बहुत ज़रूरी है. दुनिया के प्रपंचों से उन्हें बचाने के लिए. बच्चे के स्कूल कोचिंग से आने के बाद प्रश्न पूछें.
जैसे कि
- आज कौन आपके साथ बैठा था?
- क्या आज कोई टेस्ट लिया गया था स्कूल में?
- आज क्या क्या पढ़ाया गया?
- क्या खेल खेले? क्या नया सीखा?
- टिफिन में बाकी बच्चे क्या लाए थे?
- क्या किसी को कोई सजा मिली आज?
- आज सबसे ज्यादा मज़ा किस चीज में आया?
- क्या कोई बात बुरी लगी आज तुम्हे।
वगैरह वगैरह…
बच्चे के कौन मित्र हैं, उनके क्या शौक हैं? उनके माता पिता क्या करते हैं? दोस्त कहां रहते हैं? शिक्षकों, बस ड्राइवर, कंडक्टर आदि का व्यवहार कैसा है आदि आदि.
आपके बच्चे और आप अलग अलग विश्व में ना जिएं. दोनो के बीच एक पुल अवश्य होना चाहिए.