सौरभ वाजपेयी
लोहिया ने तीन तरह के गांधीवादी बताये. मैं तीन तरह के समाजवादी बताता हूँ. इन तीनों में पहली श्रेणी के साथ बहस नहीं है. दूसरी श्रेणी की पहली उपश्रेणी से भी बहस नहीं है. यह सब वर्तमान संघर्ष के साथी हैं. बाकियों से डिबेट है— यह डिस्क्लेमर जरूरी है. यह श्रेणियाँ वयोवृद्ध समाजवादियों की हैं. हम उनका लिहाज़ करते हैं. कुछ लोग लिहाज़ को कमज़ोरी समझ बैठे. इन लोगों ने अपना संघर्ष जी लिया. उस संघर्ष को यह ‘गर्व’ समझते. उन्होंने इसे ‘घमंड’ बना लिया.
उनका संघर्ष हमारी पीढ़ी पर भारी पड़ा. हम फासीवाद की अंधी खोह में जा गिरे. इसी पर एक X स्पेस आयोजित हुआ. इस स्पेस को लेकर बवंडर मच गया. अरे भाई! आप अपने समय का युद्ध लड़ चुके. हमको हमारा युद्ध लड़ने दीजिये. युद्ध हमारा है तो समझ भी हमारी होगी. लेकिन इस पर पूरी बात बाद में.
सबसे पहले तीन तरह के समाजवादी—
(1) स्वतंत्र समाजवादी: यह लोहिया-जेपी की परंपरा से निकले समाजवादी दल हैं. इन्होंने अपने अलग राजनीतिक दल बनाए. मसलन समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल. इनकी विचारधारा एकदम साफ़ है. इनको कोई संशय नहीं है. कोई आइडेंटिटी क्राइसिस नहीं है. यह समाजवादी कॉन्फिडेंस से भरे लोग हैं. कांग्रेस से वैचारिक रूप से अलग हैं. परन्तु, व्यापक संघर्ष में कांग्रेस के साथ हैं. साम्प्रदायिकता को समझने और उससे लड़ने में. लालू यादव जी इस मामले में सबसे आगे हैं. इस श्रेणी के लोग अलग विचारों को समझते हैं. स्पेस देते हैं, स्पेस करने पर आपत्ति नहीं करते.
(2) कांग्रेस समाजवादी: यह लोहिया-जेपी की परंपरा से निकले समाजवादी हैं. इन्होंने बढ़-चढ़कर जेपी मूवमेंट में भाग लिया. जेपी-लोहिया को मानते रहे, पर कांग्रेस के साथ आ गए. इस श्रेणी को फिर तीन उपश्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं—
(क) सत्यनिष्ठ कांग्रेस समाजवादी: यह वो समाजवादी हैं जो सोच-विचारकर कांग्रेस में आये. जेपी-लोहिया को मानते रहे, कांग्रेस के साथ रहे. क्योंकि जेपी आंदोलन के कांसीक्वेंस उन्हें दिख रहे थे. खुद जेपी के पछतावे के वो साक्षी थे. इसलिए उन्होंने दोनों धाराओं को साध लिया. हार हुई, जीत हुई, कांग्रेस के साथ रहे. इसमें गांधीवादी कांग्रेसी भी शामिल हैं. सर्वसेवा संघ के विभाजन में वो जेपी के साथ आ गये थे. नुकसान कर चुके थे, पर प्रायश्चित भी किया.
(ख) अवसरवादी कांग्रेस समाजवादी: यह वो समाजवादी हैं जो कांग्रेस के साथ आ गये. सत्ता का स्वाद ‘77 में लग चुका था. अब बिन सत्ता रह नहीं सकते थे. अपने धुर कांग्रेस-विरोध को ताख पर रखा. कांग्रेस ज्वाइन की, पद लिए, प्रतिष्ठा पाई. फिर कांग्रेस से बार्गेन करने लगे. कांग्रेस नहीं हुई तो एंटी-कांग्रेसिज्म की पिस्टल तान दी. कांग्रेस को बात-बात में गाली देना इनका शगल है. नेहरू- इंदिरा को अनाप-शनाप बोलना इनका मर्ज़. पर कोई अगर जेपी-लोहिया पर लिमिटेड स्पेस में बोले, आक्रमण कर देते हैं.
(ग) खुदमुख्तार समाजवादी: यह वो समाजवादी हैं, जो अवसरवादी समाजवादियों से थोड़ा भिन्न हैं. यह कांग्रेस समाजवादी हो भी सकते हैं, नहीं भी. यह कांग्रेस पर अहसान करते हैं. उसका साथ नहीं देते, उसके साथ नहीं होते. कांग्रेस को जिताने का दावा करते हैं. क्षण भर में उसको हारने की हुंकार भी भरने लगते हैं. यह बात-बात पर तुनक जाते हैं. कांग्रेस को उसकी औकात दिखाने चल देते हैं. इंदिरा गांधी नहीं तो ‘पोता’ सही. सम्पूर्ण क्रांति इनकी रगों में फड़क उड़ती है. एक मामले में यह तीसरी श्रेणी— संघी समाजवादी— जैसे हैं.
(3) संघी समाजवादी: यह वो समाजवादी थे, जिनका ‘ट्रांसफॉर्मेशन’ हो गया था. नानाजी देशमुख एंड कंपनी उन्हें साध चुकी थी. वो इधर भी थे, उधर भी थे. इन्हें आरएसएस से लड़ना नहीं है, ‘एडजस्ट’ करना है. कई भाजपाइयों व् संघियों के साथ सहज हैं. कोई भाजपाई गांधी पर अंटशंट बोले, तो लोकतांत्रिक रहते हैं. लेकिन इन्हें कांग्रेस के साथ लड़ना है, ‘एडजस्ट’ नहीं करना है. एक सोच के कुछ लोग एक स्पेस में आये. आपातकाल पर बात करने के लिए. यह उनके लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया. कांग्रेस को धमकी देने लगे, एक्स्पोज़ करने चल दिए.
तथ्यों पर बात विस्तार से बात होगी. मेरी अपनी समझ है, पोजीशन है. इतिहास कभी वर्तमान को आच्छादित नहीं कर सकता. इन्होने स्लीपर सेल कहकर उकसाया है. इसलिए जवाब देना बनता है. बाकी अशोक भाई और मनीष भाई ने पहले ही खूंटे उखाड़ दिए हैं. टैग करने के लिए माफ़ी, सोचा आप तक पहुँच जाए.