धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्न चित्त से सुखपूर्वक सोता है पण्डित बुद्ध के उपदिष्ट धर्म में सदा रमण करता है

धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्न चित्त से सुखपूर्वक सोता है, पण्डित बुद्ध के उपदिष्ट धर्म में सदा रमण करता है। नहर वाले पानी को ले जाते हैं, बाण बनाने वाले बाण को ठीक करते हैं, बढ़ई लकड़ी को ठीक करते हैं और पण्डितजन अपना दमन करते हैं। जैसे ठोस पहाड़Read More →

आप जो सोचते हैं वैसा ही काम करते हैं

आप जो सोचते हैं, वैसा ही काम करते हैं। और जिस चीज के बारे में बड़ी गम्भीरता से सोचते हैं, वह आपके दिमाग मे चलने लगता है। आपका वह विचार आपका मस्तिष्क कई गुना बढ़ाता है। आप सोचते जाते हैं और फिर ख्वाबो की दुनिया मे डूबते जाते हैं। आपRead More →

भगवान कृष्ण की रासलीला पर लिखित ग्रंथ गीतगोविंदम् के पहले सर्ग में चुंबनों की भरमार

चुंबन या चुम्मा लेना बहुत आम है. यह प्रेमी-प्रेमिका के बीच विशिष्ट स्थान रखता ही है और इसकी वजह से सेक्स सिंड्रोम जाग जाते हैं. वहीं बाप-बेटे, मां बेटे का भी चुंबन अहम है. बच्चे जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, चुंबन की प्रक्रिया कम और खत्म होती जाती है.Read More →

नाचना गाना नैचुरल है महिलाओं पर न थोपें अपने कुंठा वाले नियम

नाचना, गाना, हंसना, मुस्कुराना, दूसरे के प्रति सद्भाव रखना प्राकृतिक है. मनुष्यों ने कई पीढ़ियों से नियम कानून बनाना शुरू किया. उन्हें आने वाली और अपने लोगों पर थोपना शुरू किया. लेकिन मनुष्य की मूल प्रवृत्ति हजारों साल से नहीं बदली और वह यथावत बनी हुई है. ऐसे में प्रकृतिRead More →

क्या बुद्धिज्म के अहिंसा के प्रचार के चलते भारत गुलाम बना?

अक्सर यह सवाल उठते हैं कि भारत में बुद्धिज्म के कारण लोग अहिंसक और शांतिप्रिय हो गए, जिसका फायदा विदेशी आक्रांताओं ने उठाया और भारत को लंबे समय तक गुलाम रहना पड़ा. वहीं बुद्धिज्म में वैश्विक कल्याण के फैसले करते समय हमेशा बुद्धि विवेक के इस्तेमाल को प्राथमिकता दी गईRead More →

सेक्स और भोजन की तलाश में घूमता है मनुष्य

सदियों से मनुष्य भोजन और सेक्स के इर्द गिर्द ही घूम रहा है. तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद हर मनुष्य के केंद्र में यही दो चीजें हैं. जब इससे थोड़ी सी संतुष्टि मिल जाती है तो वह अन्य चीजों की तरफ सोच पाता है. इन जरूरतों को पूरा करना सहजRead More →

वैज्ञानिक प्रगति

धर्म और विज्ञान को लेकर तरह तरह का रायता फैलता है। ईश्वरवाद, अनीश्वरवाद, नास्तिकवाद तो है ही। सैकड़ों तरह के और भी वाद हैं, गांधीवाद, गोडसेवाद, सावरकरवाद, लोहियावाद, मार्क्सवाद, हीगलवाद, माओवाद, लेनिनवाद आदि आदि। मुझे सारे वाद आयुर्वेद के मुताबिक कब्जियत जैसे लगते हैं और अगर कोई वादी हो गयाRead More →

धर्म को यूरोप की चर्च के माध्यम से समझेंगे तो बड़ी दिक्कत होगी

धरती सूर्य का चक्कर लगाती है, यह कहने पर1633 ईसवी में गैलीलियो को सजा दी गई। यह सब बेवकूफियां यूरोप में ही हुई हैं। भारत में कभी किसी को न तो जेल में डाला न किसी को उत्पीड़ित किया गया इस सबके लिए। जब यूरोप में यह सब बेवकूफियां चलRead More →

मनुष्य क्या पाने के लिए व्याकुल है भाग रहा है उसे खुद पता नहीं होता

सत्येन्द्र पीएस  आजकल मन में अजीब अजीब ख्याल आते हैं। मैं जहां नौकरी करता हूँ, ऑफिस के पीछे बड़ा सा कब्रिस्तान है। पहले वह बाहर से नहीं दिखता था, अभी सरकार ने पेड़ काटो सफाई करो अभियान चलाया हुआ है। इस अभियान के तहत मेरे मोहल्ले के पार्क के पेड़Read More →

मित्रता में स्वतंत्रता है धोखे का सवाल ही नहीं उठता

लोग सबसे ज्यादा अपने फ्रेंड्स से धोखा खाते हैं, सोशल मीडिया पर टिप्पणियों से ऐसा पता चलता है। मुझे मित्रों से कभी कोई प्रॉब्लम नहीं होती। ऐसा नहीं है कि मेरे चिरकुट, स्वार्थी, भक्त, अपढ़, कुपढ़, बांगड़ू टाइप के मित्र नहीं हैं। मिलते ही हैं। एक नजर इधर भीः बौद्धRead More →