भरोसे को धंधा बनाने पर ही यह टूटता है- अगर भरोसा टूटता तो ईश्वर से विश्वास उठ जाता

भरोसे को धंधा बनाने पर ही यह टूटता है- अगर भरोसा टूटता तो ईश्वर से विश्वास उठ जाता

किसी पर भरोसा करना निजी अनुभूति और निजी सुख का मामला है. अगर कोई व्यक्ति किसी पर स्वार्थवश भरोसा करता है तो उसके टूटने पर बड़ी तकलीफ होती है. भारत का पूरा भक्तिमार्ग भरोसे पर चलता है. अक्सर लोग कहते हैं कि उन्हें भगवान पर भरोसा है. अगर यह स्वार्थ तक सिमटा रहता तो सबसे पहले भगवान से भरोसा उठ जाता, बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…

 

भरोसा, विश्वास। प्रेम के बाद दूसरा शब्द है जो मनुष्यों को बहुत तकलीफ देता है। अक्सर लोगों का भरोसा टूट जाता है। और दुखी होते हैं कि मैंने बहुत विश्वास किया, उसने विश्वास तोड़ दिया। विश्वास भी लोगों के लिए प्रेम की तरह फ्रेगाइल है। बड़ी तेजी से बनता और टूट जाता है!

विश्वास करना बड़ी अद्भुत चीज होती है। आपका पूरा भक्ति मार्ग विश्वास पर चलता है। विश्वास कभी टूटता नहीं है। यह दुनिया तमाम तरह के विश्वासों पर ही चल रही है। अगर भरोसा या विश्वास इतनी तेजी से टूटता तो कम से कम भगवान, खुदा, गॉड टाइप चीजें रहती ही नहीं। इन पर से रोज ही विश्वास टूट जाता!

लेकिन विश्वास भी प्रेम जैसा ही है। जिस पर कर लिया, उस पर कर लिया। यह एकतरफा मामला है। इसमें टूटने या तोड़ने जैसा कोई मामला ही नहीं। आपने विश्वास किया तो किया। इसमें सामने वाली पार्टी उस पर क्या रिएक्ट करेगी, वह आपको कैसे पता चल सकता है? लेकिन यह सच है कि विश्वास किया जाता है और आप जिस पर विश्वास करते हैं, वह आपके विश्वासों पर खरा उतरता है!

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भारत में पत्थर पूजने की परंपरा है। भारतीय पत्थर में प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। पत्थर में जीवन देखते हैं। उसे देखकर भावुक होते हैं। उसे तरह तरह भोजन उपहार चढ़ाते हैं। वहां एसी कूलर लगाते हैं कि कोई दुख न पहुँचे। मंदिरों के कपाट बंद होते हैं, उसमें पत्थर की मूर्तियां आराम कर रही होती हैं। आपके लिए यह चीजें बेवकूफी लग सकती हैं, लेकिन जिसने उन पत्थरों में प्राण प्रतिष्ठा की है। उनका विश्वास है, भरोसा है और वह भरोसा कभी नहीं टूटता। उसी के सहारे वह जिंदगी की तमाम प्रतिकूलताएं, विपत्तियां झेल जाते हैं।

तो भरोसा टूटना भी ऐसे ही है। अगर आपका किसी पर भरोसा टूटा है तो उसने आपको धोखा नहीं दिया, उसने आपका भरोसा नहीं तोड़ा। असल बात यह है कि अपने भरोसा किया ही नहीं, या आपका भरोसा कच्चा था। आपका विश्वास और भरोसा कोई भरोसा नहीं, धंधा था।

बिल्कुल उसी तरह से, जैसे आप एक लड़की की देह देखकर आकर्षित होते हैं, काम वासना, जवानी का जोश उधर खींचता है और आप उसे प्रेम नाम दे देते हैं। उसी तरह अपका विश्वास भी एक धंधा होता है, लेनदेन होता है। जैसे ही आपको धंधे में घाटा लगा, बस…. कटाक से आपके विश्वास के टूटने की आवाज आई! मसला यह है.

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पूंजीवाद या मार्क्सवाद से नहीं, प्रेम बढ़ने पर आएगी खुशहाली

पूंजीवाद, मार्क्सवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों न सिर्फ धरती को बर्बाद कर रहे हैं बल्कि मनुष्यों को गुलाम बना रहे हैं। मनुष्य को फ्रीडम चाहिए, अपनी इच्छा मुताबिक रहना, काम करना, घूमना फिरना। पूंजीवाद व मार्क्सवाद दोनों ही धन पर केंद्रित हैं। मनुष्य इनकी प्राथमिकता से बाहर हैं। ये मनुष्य को मशीन की तरह देखते हैं कि जितना अच्छा उसका रखरखाव होगा, उतना बेहतर चलेगी। ये मस्तिष्क वाले पहलू को छोड़ देते हैं कि शारीरिक शैष्ठव जरूरी तो है लेकिन मस्तिष्क का पोषण उससे ज्यादा जरूरी है जो सब गड़बड़ करता है।

दलिद्दर टाइप जितने दर्शन हैं चाहे वह पूंजीवाद हो, मार्क्सवाद हो या भारत मे चल रहा कथित अम्बेडकरवाद हो। ये बेचारे पैसा पैसा करते रहते हैं, यही इनका जीवन बन जाता है कि कभी तो पैसा आएगा और खुशहाली बराबरी आ जाएगी।

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वहीं धन में डूबते उतराते लोग अलग ही तरीके से अपनी जिंदगी का बोझ ढो रहे है। 15 साल पहले पढा था कि एक अरबपति राजा का लड़का गे निकल गया। बाप ने कहा कि सम्पदा से बेदखल कर दूंगा। वो बोला कि कर दे!

यही हाल सिंघानिया फेमिली का है। बाप ने पैसे बनाए। बेटे ने बाप को ही ठिकाने लगा दिया, अब उसकी शादी टूट गई, स्वाभाविक है कि उसके पहले लम्बा कलह भी चला होगा। रघुराज प्रताप सिंह के पास पैसे की कोई कमी नहीं है। अब पता चला कि 20 साल से वह पारिवारिक जीवन ढो रहे थे। नटवर सिंह की बहू और बेटी दोनों ने सुसाइड कर लिया।

जिंदगी में अगर प्रेम न हो तो सब कुछ शून्य है।

यह पैसा पैसा करने वाले दर्शन के प्रणेताओं को कभी समझ मे नहीं आएगा कि मानसिक हलचलें क्या होती हैं? वह जिंदगी को किस तरह प्रभावित करती हैं?

 

#भवतु_सब्ब_मंगलम

 

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