उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार को उसके जाति आधारित सर्वेक्षण के और आंकड़े प्रकाशित करने से रोकने से इनकार कर दिया. शीर्ष न्यायालय ने 6 अक्टूबर 2023 को कहा कि वह राज्य सरकार को कोई नीतिगत निर्णय लेने से नहीं रोक सकता.
न्यायमूर्ति संजय खन्ना और न्यायमूर्ति एसएन भट्टी ने पटना उच्च न्यायलाय के 1 अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक औपचारिक नोटिस जारी किया. उच्च न्यायालय ने बिहार में जाति सर्वेक्षण की मंजूरी दी थी. शीर्ष न्यायालय ने याचियों की उन आपत्तियों को खारिज कर दिया कि राज्य सरकार ने कुछ आंकड़े प्रकाशित कर स्थगन आदेश की अवहेलना की और मांग की कि आंकड़ों को प्रकाशित किए जाने पर पूर्ण रोक लगाने का आदेश दिया जाना चाहिए.
पीठ ने कहा, ‘हम अभी किसी चीज पर रोक नहीं लगा रहे हैं। हम राज्य सरकार या किसी भी सरकार को कोई नीतिगत निर्णय लेने से नहीं रोक सकते. यह गलत होगा. हम इस सर्वेक्षण को कराने के राज्य सरकार के अधिकार से संबंधित अन्य मुद्दे पर गौर करेंगे.’
याचियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि मामले में निजता का उल्लंघन किया गया और उच्च न्यायालय का आदेश गलत है. इस पर पीठ ने कहा कि चूंकि किसी भी व्यक्ति का नाम तथा अन्य पहचान प्रकाशित नहीं है तो निजता के उल्लंघन की दलील संभवत: सही नहीं है.
न्यायालय ने कहा, ‘अदालत के लिए विचार करने का इससे ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा आंकड़ों का विवरण और जनता को इसकी उपलब्धता है.’
बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 2 अक्टूबर को अपने जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जारी कर दिए थे. इन आंकड़ों से पता चला है कि राज्य की कुल आबादी में 63 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की है.