बिहार में कुछ जातियां ही 75 प्रतिशत भूमि पर जमाए हुए हैं कब्जा

बिहार में कुछ जातियां ही 75 प्रतिशत भूमि पर जमाए हुए हैं कब्जा

बिहार में भूमि वितरण बड़ी समस्या है. लार्ड कार्नवालिस के स्थाई बंदोबस्त ने कुछ मुट्ठीभर लोगों के हाथों जमीन सौंप दी, जिनका खेती से कोई लेना देना नहीं रहा है. इसकी वजह से बिहार में अभी भी जमीनी स्तर पर तमाम समस्याएं बनी हुई हैं. बता रहे हैं जीतेंद्र नारायण…

 

जैसे आज सरकारी नीतियों से दो-चार लोगों को लाभ पहुँचाकर उन्हें देश के एयरपोर्ट, बंदरगाह, कोयला ख़ानें आदि सौंपा जा रहा है, स्पेक्ट्रम की तथाकथित नीलामी द्वारा दो-तीन डाटा ज़मींदार बनाए जा रहें हैं, वैसे ही लॉक कार्नवालिस की 1793 की ज़मीन की स्थाई बन्दोबस्त की नीति ने बिहार की मुट्ठीभर जातियों के हाथों में राज्य की 75% ज़मीन सौंप दीं. मालिकाना हक प्राप्त करने वाली कुछ ऐसी जातियाँ भी कृषि भूमि की मालिक बन गईं जिनका खेती से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था.

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कृषि भूमि का मालिकाना हक खेतिहर जातियों के हाथों से निकलकर ग़ैर-खेतिहर जातियों के हाथों में चले जाने के पीछे निम्नलिखित दोषपूर्ण नीतियों का हाथ था…

  1. भू-कर का निश्चित निर्धारणः- 1793 से पहले भू-कर के रुप में उपज का हिस्सा लिया जाता था, जो सामान्यतः उपज का 16 वाँ भाग होता था. स्थाई बन्दोबस्ती द्वारा भू-कर की राशि निश्चित कर दी गई, जो उपज होने या न होने, दोनों स्थितियों में किसानों को देना पड़ता था. जिस साल बाढ़ या सुखाड़ या किसी अन्य कारणों से फसल नहीं हो पाता था, उस साल भू-कर नहीं चुकाने के कारण किसानों की भूमि की नीलामी कर दी जाती थी.
  2. कृषि उपज की जगह नगद मालगुज़ारी की वसूली:- कृषि उपज में हिस्से की जगह नगदी भू-कर वसूली ने किसानों के सामने गंभीर संकट पैदा कर दिया. कई बार नगद में भू-कर चुकाने के लिए किसानों को अपनी उपज को वाजिब क़ीमत से कम में बेचना पड़ता था. कभी-कभी कृषि उपज की बिक्री नहीं हो पाने के कारण किसान समय पर भू-कर नहीं चुका पाते थे और उनकी भूमि की नीलामी हो जाती थी, जिसे कोई पैसे वाला ले लेता था और फिर वही किसान अपनी ही ज़मीन पर बँटाईदार बनकर रह जाता था.
  3. कृषक जातियों में शिक्षा का अभावः- कृषक जातियों में शिक्षा के अभाव ने भी उन्हें उस समय के शिक्षित जातियों के षड्यंत्र का शिकार होकर अपनी ज़मीन से हाथ धोना पड़ा. शिक्षित जातियों के लोगों ने षड्यन्त्रपूर्वक बहुत सारे भोले-भाले और कमजोर कृषक जातियों के ज़मीन का मालिकाना हक भ्रष्ट अधिकारियों से मिलकर अपने नाम करवा लिया और बाद में कहीं ताक़त के बल पर तो कहीं पुलिस एवं अदालतों का सहारा लेकर भूमि पर क़ब्ज़ा कर लिया.

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आज़ादी के बाद देश के अन्य भागों में जहाँ ज़मींदारी उन्मूलन, भू-हदबंदी जैसे भूमि-सुधार क़ानूनों के द्वारा जमीन का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित किया गया. वहीं बिहार में यह सत्ताधारियों के भ्रष्टाचार और जातिवाद का शिकार हो गया. आज़ादी के बाद बिहार में सत्ता पर क़ब्ज़ा उन्हीं जातियों भूमिहार, कायस्थ, राजपूत और ब्राह्मण का रहा जिन्होंने अँग्रेजी भू-नीति से जमकर लाभ उठाया था. इसका दुष्परिणाम हुआ कि बिहार में भूमि सुधारों को ईमानदारी से कभी लागू ही नहीं किया गया और आज तक यही जातियाँ राज्य के 75% भूमि पर क़ब्ज़ा जमाए हुए हैं.

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