बिहार के मुख्यमंत्री ने एससी एसटी ओबीसी के आरक्षण का कोटा बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने की वकालत की

बिहार के मुख्यमंत्री ने एससी एसटी ओबीसी के आरक्षण का कोटा बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने की वकालत की

लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश कुमार ने आरक्षण का कोटा बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने की बात रखकर एक नया विमर्श छेड़ दिया है.बिहार विधानसभा में 7 नवंबर 2023 के अपने ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने कहा कि मौजूदा विधानसभा सत्र में इस आशय का कानून लाने की संभावना है.

कुमार ने बिहार सरकार की महत्त्वाकांक्षी जातिगत सर्वेक्षण पर एक विस्तृत रिपोर्ट बिहार विधानसभा के पटल पर पेश किए जाने के बाद हुई चर्चा में भाग लेते हुए यह बयान दिया. विधानमंडल के 5 दिन के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन कहा कि एसी और एसटी के साथ ओबीसी का मौजूदा आरक्षण बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के बाद कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो जाएगा और शेष 25 प्रतिशत सीटें अनरिजर्व्ड रहेंगी.

कुमार ने इस मसले पर सदन से विचार करने को कहा. उन्होंने कहा कि परामर्श के बाद आवश्यक कदम उठाएंगे. उन्होंने कहा कि हमारा चालू सत्र में इस संबंध में आवश्यक कानून लाने का इरादा है.

सर्वेक्षण के अनुसार अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) उपसमूह सहित ओबीसी, राज्य की कुल आबादी का 63 प्रतिशत है जबकि एससी और एसटी कुल मिलाकर 21 प्रतिशत से थोड़ा अधिक हैं.

मुख्यमंत्री के बयान का राज्य की राजनीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है. इससे देश के अन्य राज्यों से आरक्षण बढ़ाने की मांग उठ सकती है. कुमार ने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण को ‘बोगस’ बताए जाने की भी निंदा की. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का जबाव देते हुए कुमार ने कहा, ‘कुछ लोग कहते हैं कि अन्य जातियों के नुकसान के लिए कुछ समुदायों के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है. ये सब ‘‘बोगस’’ बात है, नहीं बोलना चाहिए था.’

शाह ने मुजफ्फरपुर जिले में 2 दिन पहले एक रैली में नीतीश कुमार सरकार पर निशाना साधते हुए उस पर अपनी ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ के तहत राज्य के जातिगत सर्वेक्षण में जानबूझकर मुस्लिमों और यादवों की आबादी को बढ़ाकर दिखाने का आरोप लगाया था. शाह ने कहा था कि इसका अन्य पिछड़े वर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. शाह ने कुमार पर यह भी आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने सहयोगी दल राजद के प्रमुख लालू प्रसाद के दबाव में ऐसा किया.

लालू प्रसाद इन दोनों समुदायों को अपना प्रबल समर्थक मानते हैं. कुमार ने लालू प्रसाद के छोटे बेटे और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मौजूदगी में सदन को संबोधित करते हुए कहा कि यहां तक कि उनकी अपनी जाति भी कुल आबादी का एक छोटा प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि इस सर्वेक्षण से पहले हमारे पास केवल धारणाएँ थीं, संबंधित समूहों की जनसंख्या का अनुमान लगाने के लिए कोई ठोस डेटा नहीं था. आखिरी बार जातिगत गणना 1931 की जनगणना में की गई थी.

बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार रिपोर्ट की एक प्रति केंद्र को भेजेगी, जिसमें समाज के कमजोर वर्गों पर लक्षित उपाय करने के लिए अतिरिक्त सहायता की मांग की जाएगी. उन्होंने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने से राज्य का समुचित विकास हो सकेगा.

जनता दल यूनाइटेड (जदयू) नेता कुमार ने कहा, ‘इस अवसर पर मैं बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए अपने अनुरोध को फिर से दोहराना चाहूंगा. हमने अनुमान लगाया है कि गरीबों की स्थिति में सुधार के लिए राज्य को 2.51 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना होगा.’

आवास बनाने के लिए बेघरों को मिलेगा धन

मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में 94 लाख परिवार गरीब हैं जो 6000 रुपये या उससे कम की मासिक आय पर जीवन यापन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार द्वारा रखे गए प्रस्तावों में से एक गरीब परिवारों को आर्थिक रूप से उत्पादक कार्य करने के लिए प्रत्येक को 2 लाख रुपये की सहायता प्रदान करना है. इसके अलावा उनकी सरकार ने आवास निर्माण के लिए ऐसे प्रत्येक परिवार को एक लाख रुपये देने की योजना बनाई है जिनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर हमें विशेष दर्जा मिलता है, तो हम दो से तीन वर्षों में अपने लक्ष्य हासिल करने में सक्षम होंगे। अन्यथा इसमें अधिक समय लग सकता है. उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि यह सर्वेक्षण केंद्र को राष्ट्रव्यापी जनगणना के अनुरोध पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेगा. उन्होंने कहा कि इस मांग को लेकर उन्होंने बिहार के एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करते हुए 2 साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी. मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें बताया गया कि अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता है लेकिन यदि इसकी आवश्यकता महसूस की गई तो राज्य सर्वेक्षण करने के लिए स्वतंत्र हैं. जनगणना अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी अभी तक शुरू नहीं हुई है. केंद्र जनगणना के हिस्से के रूप में जातियों की गणना पर विचार कर सकता है.
जाति सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में रहने वाले एक तिहाई से अधिक परिवार गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं. उनकी मासिक आय 6,000 रुपये या उससे कम है. रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया कि सवर्ण जातियों में काफी गरीबी है. हालांकि पिछड़े वर्गों, दलितों और आदिवासियों में यह प्रतिशत अनुमानतः काफी अधिक है।

नीतीश कुमार ने कहा कि 2.97 करोड़ परिवार हैं जिनमें से 94 लाख से अधिक यानी 34.13 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. 59.1 प्रतिशत लोगों के पास पक्के मकान हैं, 29 लाख लोग झोपड़ियों में रहते हैं. 65,850 परिवार आवासहीन हैं.

उन्होंने कहा कि 94 लाख से अधिक परिवार आर्थिक रूप से गरीब हैं. 25.09 प्रतिशत अपर कास्ट के लोग गरीब हैं. पिछड़ा वर्ग में 33.16 प्रतिशत की आर्थिक स्थिति खराब है. अति पिछड़ा वर्ग में 33.58 प्रतिशत की स्थिति बहत खराब है. अनुसूचित जाति और जनजाति में क्रमशः 42.93 और 42.70 प्रतिशत गरीबी रेखा के नीचे हैं.

नीतीश कुमार ने कहा कि सर्वेक्षण के निष्कर्षों ने कई सकारात्मक पहलुओं का संकेत मिला है. उन्होंने कहा कि साक्षरता की दर में सुधार हुआ है और यह 2011 की जनगणना के अनुसार 69.8 प्रतिशत से बढ़कर 79.8 प्रतिशत हो गई और महिलाओं ने शिक्षा के मामले में अपेक्षाकृत लंबी छलांग लगाई हैं. राज्य में लिंगानुपात में भी सुधार हुआ है, जहां प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 918 से बढ़कर 953 हो गयी है.

रिपोर्ट के अनुसार 50 लाख से अधिक बिहारवासी आजीविका या बेहतर शिक्षा के अवसरों की तलाश में राज्य से बाहर रह रहे हैं. बिहार के बाहर दूसरे राज्यों में जीविकोपार्जन करने वालों की संख्या लगभग 46 लाख है जबकि अन्य 2.17 लाख लोग विदेशों में रह रहे हैं. दूसरे राज्यों में पढ़ाई करने वालों की संख्या लगभग 5.52 लाख है. लगभग 27,000 विदेश में भी पढ़ाई कर रहे हैं.

हिंदू समुदाय में सबसे समृद्ध सवर्ण जाति संख्यात्मक रूप से छोटे कायस्थ हैं. बड़े पैमाने पर शहरीकृत समुदाय के केवल 13.83 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भूमिहार समुदाय में गरीबी दर 27.58 प्रतिशत है. माना जाता है कि बिहार में सबसे अधिक भूमि इसी समुदाय के पास है.

इस सर्वेक्षण के प्रारंभिक निष्कर्षों के मुताबिक यादव सबसे प्रमुख ओबीसी समूह है जिसकी कुल आबादी में 14 प्रतिशत हिस्सेदारी है. राजनीतिक रूप से आगे बढ़ने के बावजूद यादव काफी हद तक गरीबी से उबर नहीं पाए हैं और समुदाय के 35 प्रतिशत से अधिक लोग गरीब हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से आते हैं और सर्वेक्षण के मुताबिक उनकी आबादी में करीब 30 प्रतिशत लोग गरीब हैं. सर्वेक्षण में मुसलमानों के बीच जाति विभाजन को भी ध्यान में रखा गया जो कुल मिलाकर राज्य की आबादी का 17 प्रतिशत से अधिक है. सैय्यद में गरीबी की दर सबसे कम 17.61 प्रतिशत है. सर्वेक्षण के मुताबिक अनुसूचित जातियों में 42.91 प्रतिशत परिवार गरीब हैं जबकि अनुसूचित जनजातियों में गरीबों की संख्या 42.78 प्रतिशत हैं.

विभिन्न जातियों में गरीबों का प्रतिशत देखें तो दुसाध, धारी, धरही 39%, चमार, मोची 42%, मुसहर 54%, पान, सवासी, पानर 36%, पासी 38%, धोबी, रजक 35%, भुइया 53%, चौपाल 39% गरीबी रेखा के नीचे हैं.

वहीं ओबीसी में यादव 35%, कुशवाहा, कोइरी 34%, कुर्मी 30% गरीबी रेखा के नीचे हैं.

बनिया 24%, ब्राह्मण 25.32%, भूमिहार 27.58%, राजपूत 24.89%, कायस्थ 13.83%, शेख 25.84%, पठान (खान) 17.61%, तेली 29.87%, मल्लाह 34.56%, कानू 32.99%, धानुक 34.35%, नोनिया 35.88%, चंद्रवंशी (कहार) 34.08%, नाई 38.37%, बढ़ई 27.71%, प्रजापति (कुम्हार) 33.39% गरीबी रेखा के नीचे हैं.

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