मिल्की वे में मौजूद सितारों में से एक सितारा हमारा सूर्य है, और 40 लाख सूर्य के बराबर है ब्लैक होल. सौर मंडल में एक छोटा ग्रह है पृथ्वी. जिस पर हम रहते हैं.
नवमीत
यूनिवर्स लगभग 13.7 अरब साल पुराना है। ब्रह्मांड में अनुमानतः 2 ट्रिलियन यानि 200000000000 आकाशगंगाएं यानि गैलैक्सियाँ हैं। इनमें से प्रत्येक के अंदर अरबों सितारे हैं। हमारी गैलेक्सी का नाम है “मिल्की वे”। नाम से यह कोई चॉकलेट बार लगती है। है न?
खैर “मिल्की वे” में भी अरबों सितारे हैं जो इसके केंद्र को धुरी बनाकर घूम रहे हैं। इन सितारों में से एक सितारा है हमारा सूर्य। सूर्य को केंद्र बनाकर इसके चारों तरफ 8 ग्रह घूम रहे हैं जिनमें से एक ग्रह है हमारी धरती। मिल्की वे गैलेक्सी के केंद्र में एक ब्लैक होल यानि कृष्ण विवर है जिसको नाम दिया गया है “सेजिटेरियस ए”। और इसका आकार कितना बड़ा है? 40 लाख सूर्यों के बराबर।
मिल्की वे एक सर्पिलाकार आकाशगंगा है जिसकी एक भुजा के बाहरी हिस्से पर हमारा सूर्य व इसके 8 ग्रह हैं। इस आठ ग्रहों में से एक ग्रह है पृथ्वी। तो पृथ्वी इतना महत्वपूर्ण क्यों है? जबकि खरबों खरब सितारे व उनसे कई गुना ग्रह ब्रह्मांड में विद्यमान हैं। आपने बिलकुल सही पहचाना है। इस ग्रह पर हम रहते हैं। यह हमारा घर है। क्या कहा? आपका घर तो आपके शहर में है। और आपका शहर आपके राज्य में। आपका राज्य आपके देश में। सोचिए इतने बड़े ब्रह्मांड में आपका देश, आपका राज्य या आपका शहर व गांव कहाँ खड़े हैं? और आपका धर्म व आपकी जाति कहाँ खड़ी है? आप कहाँ खड़े हैं? मैं बताऊं? पृथ्वी पर। पृथ्वी इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि यहां इंसान रहते हैं। हालांकि यह एक महत्वपूर्ण बात है। लेकिन इससे महत्वपूर्ण बात ये है कि पृथ्वी पर जीवन है। इस महाविशाल ब्रह्मांड में अभी तक एक ही ज्ञात ग्रह ऐसा है जिसपर जीवन है।
पता है यहां पर जीवन होना किस तरह से ब्रह्मांड की विशालता से तुलनीय है? पृथ्वी पर रहने वाले जीवों में सबसे अधिक संख्या है एक बैक्टीरिया की। Plegibacter ubigue नाम का यह जीवाणु पानी में पाया जाता है। खारे व मीठे दोनों तरह के पानी में। अनुमानतः महासागरों में सूक्ष्म जीवों की संख्या 1000000000000000000000000000000 है। यह संख्या पूरे ब्रह्मांड में सितारों की अनुमानित संख्या 10000000000000000000000 से कहीं ज्यादा अधिक है। इंटरेस्टिंग है न?
चलिए एक चक्कर पुराने समय का लगा कर आते हैं।
150 ईस्वी सन में मिस्र के अलेग्जेंडरिया शहर (अनेकों अन्य शहरों की तरह यह शहर सिकंदर महान ने बसाया था। उन तमाम शहरों में से यही एक है जो आज भी विद्यमान है) में एक ग्रीक दार्शनिक और गणितज्ञ हो गए हैं। क्लाडियस टॉलमी। टॉलमी ने ब्रह्माण्ड का एक मॉडल प्रस्तुत किया था जोकि अरस्तु के पृथ्वी केंद्रित मॉडल पर आधारित था। यह मॉडल ग्रीक खगोल विज्ञान का चरमोत्कर्ष था।
जब अरबों ने मिस्र पर अधिकार किया तो उन्होंने प्राचीन ग्रीक दर्शन और विज्ञान से बहुत कुछ सीखा। उस सीख में से एक सीख ब्रह्माण्ड का यह मॉडल भी था।
अरबों ने टॉलमी के विचारों का अरबी में अनुवाद किया और इसको नाम दिया “अलमजेस्ट” जिसका अर्थ होता है सबसे महान। बाद में क्रूसेडर इस किताब को स्पेन ले गए और वहां इसका लैटिन में अनुवाद किया गया। नाम वही रखा अलमजेस्ट।
इस मॉडल में पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केंद्र थी, और दूसरे ग्रह इसके चारों तरफ एक क्रिस्टलाइन घेरे में घूमते थे जिनको संयुक्त रूप से एपिसाइकिल कहा जाता था। यह पूरा मॉडल ग्रीक और बेबीलोनीयन खगोलशास्त्रियों द्वारा हजारों साल से किये जा रहे अवलोकनों व गणनाओं पर आधारित था जोकि दिनों का, महीनों का और यहाँ तक कि सूर्य और चंद्र ग्रहणों का भी सही अनुमान लगा लेता था।
इससे पहले एक बहुत बड़ा मिसकांसेप्शन जो मध्य युग के बारे में आज के जनमानस में है वो ये कि मध्य युग में लोग, खासतौर पर चर्च पृथ्वी को चपटी मानते थे।
जबकि सच्चाई ये है कि अरस्तु और फिर टॉलमी के समय से ही पृथ्वी को गोलाकार माना जाता रहा है, यहाँ तक कि मध्य युग में अरब और रोमन कैथोलिक चर्च भी पृथ्वी को गोलाकार ही मानते थे। कोलम्बस जब पूर्वी देश भारत को खोजने निकला तो वह पश्चिम की तरफ ही गया था क्योंकि उसे लगता था कि पश्चिम की तरफ से गोलाई में चक्कर काट कर वह भारत पहुँच जाएगा जोकि लॉजिकली ठीक था। लेकिन उसे उससे पहले ही अमेरिका मिल गया और बाकी तो इतिहास है ही।
माना जाता है कि चपटी धरती मानने वाली यह अफवाह प्रोटेस्टेंट चर्च ने कैथोलिक चर्च को बदनाम के करने के लिए फैलाई थी कि कैथोलिक चर्च कितना अवैज्ञानिक है। वो कहानी फिर कभी।
बहरहाल टॉलमी ने अपनी किताब अलमजेस्ट में मिल्की वे का भी जिक्र किया है। टॉलमी के अनुसार मिल्की वे छोटे छोटे सितारों का एक समूह है। आधुनिक विज्ञान भी मिल्की वे आकाशगंगा को सितारों का समूह ही मानता है। लेकिन टॉलमी और उनके समय की विज्ञान और तकनीकी का विकास जितना कम था उतनी ही उनकी मिल्की वे या यूनिवर्स को लेकर समझ भी कम थी। टॉलमी ने लिखा है की मिल्की वे एक प्रकाश की एक पट्टी है जो आकाश में फैली हुई है। यह पट्टी छोटे छोटे सितारों से बनी हुई है। उन्होंने यह भी नोट किया था कि यह पट्टी आकाश के कुछ हिस्सों में ज्यादा संकेंद्रित और सघन दिखाई देती है। इसका कारण वह बताते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उन हिस्सों में सितारों व अन्य आकाशीय पिंडों के झुण्ड मौजूद हैं।
अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद टॉलमी का अवलोकन व गणनाएँ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
आप पूछना चाह रहे होंगे कि नवमीत, बाकी सब तो ठीक है लेकिन यह नाम मिल्की वे कहाँ से आया? वेल इसके लिए भी हमें प्राचीन यूनान में ही जाना पड़ेगा। एक बार की बात है, प्राचीन यूनान में एक देवी होती थी। मतलब ऐसा प्राचीन यूनानी सोचते थे। इन देवी जी का नाम था हेरा। यह देवताओं के राजा ज़ीउस की पत्नी थी। रोमन इन्हें जूनो के नाम से पूजते थे। तो यूनानियों का मानना था कि देवी हेरा ने आकाश में दूध बिखरा दिया है जिसकी वजह से आकाश में एक दूधिया वृत्त दिखाई देता है। उन्होंने इसको नाम दिया Galaxias Kyklos जिसका अर्थ है Milky Circle यानि दूधिया वृत्त। गैलेक्सी शब्द भी यहीं से आया है। जब रोमनों ने यूनान पर अधिकार कर लिया तो उन्होंने यूनानियों के तमाम देवी देवताओं और मान्यताओं को अपना लिया। अब रोमन इसे कहने लगे Via Lactea. Via मतलब? सही समझे हैं। via मतलब रास्ता। और Lactea मतलब दूध। यानि दूध का रास्ता यानि? मिल्की वे। प्राचीन भारतीय भी इसके बारे में परिचित थे। उनको यह रास्ता आसमान में बह रही एक नदी जैसा लगता था। नदी बोले तो? प्राचीन भारतीयों के लिए सबसे खास नदी थी गंगा। तो उन्होंने इसे नाम दिया “आकाशगंगा”। प्राचीन बेबीलोन वासी इसे “देवताओं का रास्ता” कहते थे। अब इससे पहले कि इस ऐतिहासिक और मिथकीय ब्यौरे से बोर होकर आप मुझे गरियाएं, हम वापस अपनी स्पेस टाइम की यात्रा पर निकल लेते हैं।
तो अपना स्पेस सूट और स्पेस हेलमेट पहन लीजिए और कुर्सी की पेटी कस लीजिए। कॉफ़ी का प्याला भर लीजिए। हम चल चुके हैं मिल्की वे के भ्रमण के लिए। पिछली यात्रा में हमने आरंभिक आकाशगंगाओं और सितारों के बनने और बिखरने व उनसे आधुनिक आकाशगंगाओं के निर्माण का अवलोकन किया था। उन आधुनिक आकाशगंगाओं में से एक हमारी अपनी आकाशगंगा यानि मिल्की वे यानि मन्दाकिनी भी थी। मन्दाकिनी एक सर्पिलाकार आकाशगंगा है जो सदियों से इन्सान की जिज्ञासा का केंद्र रही है। हम पढ़ चुके हैं की यूनानी, भारतीय, रोमन, बेबीलोनियन सब इसके बारे में जानने और समझने के उत्सुक रहते थे लेकिन विज्ञान और तकनीकी का विकास न होने के कारण उन्होंने इसे मिथकों से जोड़ रखा था।
फिर 17वीं सदी में एक महान वैज्ञानिक ने समयधारा को नई दिशा दी। पता है ये महान वैज्ञानिक कौन थे? बताइए। सही जवाब। यह थे गैलीलियो गैलिली। गैलीलियो वह पहले शख्स थे जिन्होंने आसमान की तरफ अपने टेलीस्कोप का मुंह कर दिया। गैलीलियो ने अपनी दूरबीन की मदद से मन्दाकिनी का पहली बार विस्तृत अध्ययन किया। उन्होंने नोट किया कि टॉलमी सही थे और प्रकाश की यह पट्टी असंख्य सितारों से बनी हुई है। प्राचीन के अनुमान पर आधुनिक के अवलोकन की मुहर लग चुकी थी। यह अपने समय की युगांतरकारी खोज थी जिसने आने वाले समय में हमारी अन्तरिक्ष की तमाम अवधारणाओं को बदल देना था।
लेकिन फिर भी मिल्की वे को समझने में 100 साल और लग गए। प्रसिद्ध खगोल विज्ञानी विलियम हर्शेल ने 18वीं सदी में सुझाव दिया कि मिल्की वे असल में सितारों से बनी हुई एक समतल डिस्क है और हमारा सौर मंडल भी इसी डिस्क में किसी जगह मौजूद है।
लेकिन अभी भी और 100 साल लग गए यह जानने में कि मन्दाकिनी का सही रूप, आकार और विस्तार क्या है? रेडियो टेलीस्कोप के आविष्कार ने खगोलविज्ञानियों के लिए आकाशगंगा के केंद्र में स्थित सघन बादलों के परे का अवलोकन करने का रास्ता खोल दिया था। अब हमें इस डिस्क की सर्पिलाकार भुजाओं के बारे में पता चल गया। आज हम जानते हैं कि मिल्की वे एक स्पाइरल यानि सर्पिलाकार गैलेक्सी है जिसमें एक केन्द्रीय छड़ के आकार का ढांचा है और इससे अनेकों भुजाएँ निकली हुई हैं। हमारा सौर मंडल ऐसी ही एक सर्पिलाकार भुजा पर स्थित है और गैलेक्सी के केंद्र से 25 हजार प्रकाश वर्ष दूर मौजूद है।
अब आप सोच रहे होंगे कि नवमीत, तुम अपनी ही पेले जा रहे हो, वो मिल्की वे के जन्म की यात्रा का क्या रहा जिसके लिए हमने स्पेस सूट और हेलमेट पहना था? अब तो कॉफ़ी भी खत्म हो गयी। मैं भी यही सोच रहा हूँ। मैंने कॉफ़ी का नया कप बना लिया है और अब हम चलते हैं अपनी स्पेस टाइम यात्रा पर।
आज से 13.5 या 13.6 अरब साल पहले.. यानि यूनिवर्स के जन्म के कुछ ही समय बाद, यूनिवर्स की लाडली बेटी मिल्की वे का जन्म हुआ। गैस और धूल के बड़े बड़े बादल नए सितारों और प्रारंभिक आकाशगंगाओं को जन्म दे रहे थे। ऐसे अनेक बादलों और प्रारंभिक आकाशगंगाओं के आपस में टकराने से और अपनी ग्रेविटी के वशीभूत होकर अपनी धुरी पर घुमने के चलते सितारों और गैस व् धूल से बने ढांचे ने सर्पिलाकार ग्रहण कर लिया। घूमते घूमते यह डिस्क अपना आकार ग्रहण करती रही और इसकी ग्रेविटी ने तमाम पदार्थ को अपने केंद्र की तरफ खींचना शुरू कर दिया।
इसके चलते इसके केंद्र में एक अति सघन और अत्यंत गर्म कोर का निर्माण हुआ जोकि कालांतर में गैलेक्सी का केंद्रीय उभार बन गयी। जैसे जैसे यह उभार बड़ा होने लगा यह एक अत्यंत शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र पैदा करने लगा जिसने गैलेक्सी की सर्पिलाकार भुजाओं को आकार प्रदान किया। समय के साथ गैलेक्सी में नए सितारों का निर्माण होने लगा। प्रथम सितारे, जैसा कि हम पिछले एक पोस्ट में पढ़ चुके हैं, बड़े बड़े थे लेकिन छोटी आयु के थे। ये बन रहे थे और बिखर रहे थे और साथ में बिखेर रहे थे भारी तत्व।
जैसे जैसे गैलेक्सी बड़ी हो रही थी, इसकी सर्पिलाकार भुजाएँ भी फ़ैल रही थी जिसके साथ इसमें एक केन्द्रीय छड के आकार का ढांचा बनना शुरू हो गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि छड़ के आकार का यह ढांचा मिल्की वे और दूसरी आकाशगंगाओं के बीच जो गुरुत्वाकर्षण है, उसका परिणाम है। इसकी वजह से ही गैलेक्सी का केंद्र खिंच कर छड़ के आकार का हो गया है।
आज मन्दाकिनी एक बहुत बड़ी, डिस्क के आकार की गैलेक्सी है जिसका व्यास 100000 प्रकाश वर्ष का है। मतलब अगर हम प्रकाश की गति से यात्रा करें तो इसके एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचने में हमें एक लाख वर्ष लग जाएँगे। इसके केंद्र में एक बहुत बड़ा ब्लैक होल है जिसकी चर्चा हम पोस्ट की शुरुआत में ही कर चुके हैं।
अब थोड़ा सा अवलोकन भी कर लेते हैं। हमें प्रकाश की गति से भी ज्यादा चलना पड़ेगा। लेकिन वह संभव नहीं, आप मुझे अभी टोकेंगे। वेल महान अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने कहा था कि “कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि ज्ञान सीमित है, जबकि कल्पना समूची कायनात को गले लगाती है, प्रगति को प्रेरित करती है और विकास को जन्म देती है”. तो अभी हम अपनी असीमित कल्पना का सहारा लेंगे। हम जानते हैं कि यह गैलेक्सी अंग्रेजों के जमाने की जेलर है.. आई मीन सर्पिलाकार है। तो चलिए इसकी सर्पिलाकार भुजाओं के दर्शन करते हैं। इसकी मुख्य रूप से चार बड़ी भुजाएँ हैं जिनके नाम हैं the Norma Arm, the Perseus Arm, the Sagittarius Arm, and the Scutum-Centaurus Arm. इसके अलावा अनेकों छोटी भुजाएँ हैं। हमारा सौर मंडल भी इन्ही छोटी भुजाओं में से एक Orion Arm या लोकल आर्म पर स्थित है जोकि Perseus Arm और Sagittarius Arm के बीच में पडती है। हमारा सूर्य और सौर मंडल इस भुजा के साथ गैलेक्सी के केंद्र की परिक्रमा करता है। हम अपना एक गैलेक्टिक वर्ष 225 से 250 मिलियन वर्षों में पूरा करते हैं। खैर ये भुजाएँ ठोस ढांचे न होकर सितारों की सघनता की तरंगें हैं जो आकाशगंगा में घूम रही हैं। अब आप कहेंगे कि भैया क्यों फेंक रहे हो? सघनता की तरंगे? यह क्या बात हुई? एक मिनट रुकिए। कॉफ़ी की घूंट भर लूँ। ओके तो क्या कह रहे थे आप? मैं फेंक रहा हूँ? चलिए इसका जवाब दे ही देता हूँ।
ये तरंगें गैलेक्सी के अंदर उन क्षेत्रों में पैदा होती हैं जहाँ सितारों, गैस और धूल की सघनता अधिक होती है। गैलेक्सी के ये हिस्से इतने सघन होते हैं कि इनके रास्ते में जो भी वस्तु आती है उसे ये compress कर देते हैं यानि संपीड़ित कर देते हैं। जैसे जैसे सघनता की ये तरंगें आकाशगंगा में घूमती हैं, ये रास्ते में आने वाली गैसों और धूल को भी संपीड़ित कर देती हैं जिनसे नए सितारों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है। जो सितारे पहले से मौजूद हैं वे भी सघनता तरंगों से प्रभावित होते हैं।
ओके तो हम बात कर रहे थे सर्पिलाकार भुजाओं की, सर्पिलाकार भुजा किसी गैलेक्सी का स्थाई गुण नहीं है। समय के साथ सघनता तरंगें मंद पड़ जाती हैं और इनका सर्पिलाकार भी ख़त्म होता चला जाता है लेकिन फिर किसी और हिस्से में नई सघनता तरंग का निर्माण होता है और नई सर्पिलाकार भुजा जन्म लेती है।
लेकिन सर्पिल भुजा हमारी गैलेक्सी का एकमात्र गुण नहीं है। एक अन्य गुण है इसकी केन्द्रीय छड़ जिसकी चर्चा हम कर चुके हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि केन्द्रीय छड़ का निर्माण तुलनात्मक रूप से नई घटना है। इसके अलावा अन्य आकाशगंगाओं की ही तरह हमारी गैलेक्सी के केंद्र में भी एक महाविशाल ब्लैक होल है। इसकी चर्चा भी हम एकाधिक पोस्टों में कर चुके हैं।
आकाशगंगा की एक और खासियत है। डार्क मैटर की मौजूदगी। वही डार्क मैटर जिसकी चर्चा हमने पिछली पोस्ट में की थी। हमारी आकाशगंगा में दृश्यमान पदार्थ से कई गुना अधिक डार्क मैटर मौजूद है जिसका गुरुत्वाकर्षण बल इसके अस्तित्व और आकार प्रकार के लिए जिम्मेदार है।
यह है आपकी अपनी आकाशगंगा यानि मिल्की वे या मन्दाकिनी। एक खुबसूरत सर्पिलाकार गैलेक्सी जिसको सदियों से पूजा जाता रहा है, पढ़ा जाता रहा है, देखा जाता रहा है और समझने की कोशिश की जाती रही है। तो प्रिय सहयात्रियों, रात्रि आकाश को देखते रहिये, क्या पता कल को हमारी गैलेक्सी क्या नया आश्चर्य हमारे सामने प्रस्तुत कर दे। अगली पोस्ट जल्द ही।
यह यात्रा आपको कैसी लगी? कमेंट में जरुर बताइयेगा।
अच्छी लगी तो दूसरों को जरुर सुनाइएगा, खासतौर पर … ठीक समझे। बच्चों को।