मनुष्य क्या पाने के लिए व्याकुल है भाग रहा है उसे खुद पता नहीं होता

सत्येन्द्र पीएस  आजकल मन में अजीब अजीब ख्याल आते हैं। मैं जहां नौकरी करता हूँ, ऑफिस के पीछे बड़ा सा कब्रिस्तान है। पहले वह बाहर से नहीं दिखता था, अभी सरकार ने पेड़ काटो सफाई करो अभियान चलाया हुआ है। इस अभियान के तहत मेरे मोहल्ले के पार्क के पेड़Read More →

मित्रता में स्वतंत्रता है धोखे का सवाल ही नहीं उठता

लोग सबसे ज्यादा अपने फ्रेंड्स से धोखा खाते हैं, सोशल मीडिया पर टिप्पणियों से ऐसा पता चलता है। मुझे मित्रों से कभी कोई प्रॉब्लम नहीं होती। ऐसा नहीं है कि मेरे चिरकुट, स्वार्थी, भक्त, अपढ़, कुपढ़, बांगड़ू टाइप के मित्र नहीं हैं। मिलते ही हैं। एक नजर इधर भीः बौद्धRead More →

बौद्ध धर्म में प्रतीत्यसमुत्पाद और शून्यता क्या है

आप विश्व में जो भी चीज देखते हैं वह इंटरडिपेंडेंट हैं। हेतु और प्रत्यय से बने हैं, उनमें कार्य कारण सम्बन्ध है। उदाहरण के लिए आप एक मकान देखते हैं। उसकी सूक्ष्मता में जाएं। पहले आपको जमीन, क्षत, पिलर्स, दीवारें, प्लास्टर, डिजाइन आदि दिखता है। इन सबको मिलाकर जो चीजRead More →

दूसरे से पाने वाले दुख धोखा और कष्टों का सृजन अक्सर हम खुद करते हैं

तृष्णा, क्लेश, अविद्या। ये दुख की वजहें हैं। काम क्रोध, मोह आदि क्लेश है। क्लेश ही समस्या की वजह है। औसत व्यक्तियों का जीवन काम क्रोध लोभ आदि में बीत जाता है। वह उसी क्लेश के पीछे पीछे भागते हैं कि उसमें सुख है। क्लेश को हटाने से ही सुखRead More →

What is OM MANI PADME HUM?

भारतीय संस्कृति में ओम के उच्चारण का व्यापक असर है. हर शुभ जगहों पर आपको ओम् लिखा हुआ मिल जाता है. ओम नमः शिवाय से लेकर ओम भूर्भुवः स्वः तत्स वितुर्वरेण्यं धीमहि धियो योनः प्रचोदयात तक. ओम की व्यापक मौजूदगी है. इसके उच्चारण को सांस से भी जोड़ा जाता है.Read More →

हम जब आसपास के वातावरण से प्रभावित होकर सोचते हैं तो अपना बुद्धि विवेक गिरवीं रख देते हैं। फिर हम प्रभावित व्यक्ति/वातावरण के मुताबिक बह जाते हैं. सही गलत का फैसला नहीं कर पाते, बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस….   हमारे मस्तिष्क का दायरा बहुत छोटा है। जीवन के रहस्योंRead More →

अम्बेडकरवाद और ब्राह्मणवाद में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध

अम्बेडकरवाद और ब्राह्मणवाद में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध रहा है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। अगर ब्राह्मणवाद खत्म हो जाए तो अम्बेडकरवाद की प्रासंगिकता नहीं रहेगी। दोनों ही जाति चिंतन में रहते हैं। यूरोप के देशों में पूंजीवाद और मार्क्सवाद ऐसा ही मामला है। एक का काम पूंजी का संकेद्रण परRead More →

जो सामने आए उसे स्वीकार करके बेहतर करने की कोशिश ही अच्छी रणनीति

मनुष्य के सोचे के मुताबिक उसके जीवन में बहुत कम होता है. अगर कुछ अनचाहा भी आ जाए तो बेहतर सोचकर उस दिशा में काम करते रहना एक अच्छा विकल्प साबित होता है. जीवन में घटित हुई चीजों को नियति मानकर हंसी खुशी करते रहने पर जोर दे रहे हैंRead More →

किसी देश में पूंजीवाद को हराकर कम्युनिस्ट शासन नहीं आया?

किसी भी देश में पूंजीपतियों और मजदूरों के संघर्ष और मजदूरों की जीत से कम्युनिस्ट सत्ता नहीं आई है. कहीं भी पूंजीवाद से कम्युनिज्म नहीं जीत पाया है. कम्युनिज्म ने एक शांतिप्रिय बौद्ध धर्म को बहुत नुकसान पहुंचाया है, बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…   कम्युनिज्म में सर्वहारा वर्ग कीRead More →

भगवान राम गरीबों के देवता रहे हैं अमीरों के नहीं

भगवान राम आम जनमानस में रहे हैं. राम के कई रूप रहे हैं. कबीर, रैदास, तुलसी से लेकर तमाम कवियों ने राम का वर्णन किया है. लोक में राम की मौजूदगी के बारे में बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस भगवान राम कभी भी अमीरों, राजा रजवाड़ों, ब्राह्मणों के भगवान नहींRead More →