कर्नाटक में विपक्ष में भी लोकप्रिय डीके शिवकुमार को तिहाड़ भेजने की भाजपा की कवायद उल्टी पड़ गई और तिहाड़ से छूटने के बाद ही वह Chief Minister Karnataka की कुर्सी की ओर बढ़ने लगे.
कर्नाटक में 136 विधानसभा सीटों पर ऐतिहासिक जीत के बाद राज्य में मुख्यमंत्री पद की दौड़ शुरू हुई, यह कहना अजीब होगा. राज्य में पहले से ही मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार थे. सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार. डीके शिवकुमार लगातार 8 चुनावों से विधानसभा जीत रहे हैं. कांग्रेस का बेड़ा गर्क होने के दौर में वह लगातार संकट मोचन बनकर उभरे. चाहे वह महाराष्ट्र सरकार बचाने का मामला हो या गोवा का मामला हो. हर पल, हर क्षण वह कांग्रेस के साथ बने रहे. कांग्रेस ने उन्हें केंद्रीय राजनीति में लाने की कवायद नहीं की, लेकिन राज्य में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर अजेय बन चुकी भाजपा के सामने संघर्ष करने को चुना.
कांग्रेस खुद नहीं प्रचार कर पाई अपने नेता का
शिवकुमार ने राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं को जोड़ने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगा दिया. यह आंकड़े मीडिया में नहीं आ रहे हैं कि कितने रोडशो, कितनी जनसभाएं, कितनी गोष्ठियां, पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ कितनी बैठकें शिवकुमार ने अपनी अध्यक्षता में की. इसे कांग्रेस का मिसमैनेजमेंट ही कहा जा सकता है कि उसने जिस नेता के चेहरे को सामने करके चुनाव लड़ा, उसके कार्यक्रमों और उसकी मेहनत का बखान करने में भी चूक करती रही. लेकिन यह तो पहले से तय था कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो किसी न किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा और किसी को निराश करना पड़ेगा. इसमें कुछ ऐसा अद्भुत नहीं हुआ है कि कांग्रेस को अप्रत्याशित मिल गया है और उसे पता ही नहीं था. अब अचानक सिर पर आफत आ गई है कि मुख्यमंत्री किसे बनाएं!
सिद्धारमैया को बड़ा हृदय दिखाने की जरूरत
स्वाभाविक रूप से सिद्धारमैया की भी महत्त्वाकांक्षा होगी कि वह मुख्यमंत्री बनें. जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने थे, तब भी तमाम नेताओं को मुख्यमंत्री पद न मिलने पर निराश होना पड़ा था. डीके शिवकुमार भी उनमें से एक रहे होंगे और उन्हें लगा होगा कि किसी विरोधी दल का बागी राज्य का मुख्यमंत्री बन रहा है. इन सबके बावजूद विपक्षी दलों को तोड़ देने की क्षमता रखने वाले शिवकुमार ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने को कभी सोचा भी नहीं. ऐसे में कांग्रेस कहीं से मुख्यमंत्री को लेकर भ्रम दिखाती तो वह उसकी क्षमता पर सवाल उठाता. सिद्धारमैया दूसरे दल से आकर कांग्रेस के मुख्यमंत्री बने. उन्हें अब अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को लगाम लगाकर कांग्रेस के लिए काम करने का वक्त आ गया है. हालांकि राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं अजीबोगरीब होती हैं और वह मृत्युपर्यंत चलती हैं.
शिवकुमार को तिहाड़ जेल भेजना जनता बर्दाश्त नहीं कर पाई
भाजपा ने वही तरीका शिवकुमार के साथ आजमाने की कोशिश की, जो देश के अन्य नेताओं के साथ किया. शिवकुमार नेता होने के साथ अच्छे कारोबारी हैं. उनका नाम भी गड़बड़ियों और घोटालों में आया, जैसा कि इस समय विपक्ष के किसी भी चमकते नेता का नाम सामने आ रहा है. डीके शिवकुमार जब जेल भेजे गए तो भाजपा के नेता बीएस येदियुरप्पा ने भी विरोध किया और कहा कि जो भी हुआ, गलत हो रहा है. खैर.. भाजपा को भी समझ में आ गया और शिवकुमार जमानत पर जेल से छूट गए. उसके बाद शिवकुमार ने साफ शब्दों में कहा कि वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल नहीं हो रहे हैं, इसलिए उन्हें जेल भेजा गया. शिवकुमार को प्रवर्तन निदेशालय ने धनशोधन के मामले में 3 सितंबर 2019 को गिरफ्तार किया और करीब 50 दिन बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत दी, जब वह 23 अक्टूबर 2019 तिहाड़ से छूटकर कर्नाटक पहुंचे. वह लगातार लगे रहे, जनता के बीच बने रहे. तब तक काम करते रहे, जब तक कांग्रेस को सत्ता में नहीं ले आए.
सभी सांप्रदायिक हथकंडे फेल करने में कामयाब रहे डीके
भारतीय जनता पार्टी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की उस्ताद है. उसने राम भक्त हनुमान को मुद्दा बनाकर धर्म बेचने की कोशिश की. उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और निचले स्तर पर आए व कहा कि कांग्रेस आतंकवादियों के प्रति नरम रवैया अपनाती है, जिससे तुष्टिकरण हो सके. यह सब बातें अब छिपी नहीं रहतीं कि प्रधानमंत्री कहना चाह रहे हैं कि मुसलमान आतंकवादी होते हैं और मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस आतंकवादियों के खिलाफ नरम रवैया अपनाती है. अब वह एक रोल मॉडल बन चुके हैं कि किस तरह से कांग्रेस मजबूती से सांप्रदायिक राजनीति से निपट सकती है.
मुख्यमंत्री कौन बनेगा वो तो पता नही पर काग्रेस ने बैटिंग करने के लिए अपनी पीच तैयार कर ली है।