नाचना, गाना, हंसना, मुस्कुराना, दूसरे के प्रति सद्भाव रखना प्राकृतिक है. मनुष्यों ने कई पीढ़ियों से नियम कानून बनाना शुरू किया. उन्हें आने वाली और अपने लोगों पर थोपना शुरू किया. लेकिन मनुष्य की मूल प्रवृत्ति हजारों साल से नहीं बदली और वह यथावत बनी हुई है. ऐसे में प्रकृति के मुताबिक और मौज से जीने की नसीहत दे रहे हैं सत्येन्द्र पीएस
मनुष्य ही नहीं, इस प्रकृति में नृत्य है। सूर्य को स्थिर माना गया है। उसके चारों तरफ ग्रह नाचते हैं। एक एक ग्रहों के चारों तरफ उपग्रह नाचते हैं पशु नाचते हैं, पक्षी नाचते हैं, मोर के नाचने के कहने ही क्या? वह देखकर तो कोई भी मदहोश हो जाता है। हवाएं नाचती हैं। समुद्र की लहरें नाचती हैं। पेड़ पौधे नाचते झूमते हैं। इसी नाचने में ही जीवन है। नाचने में जीवंतता है। नाचने में मौज है।
एक नजर इधर भीः क्या बुद्धिज्म के अहिंसा के प्रचार के चलते भारत गुलाम बना?
अभी हाल ही में किसी फेसबुक मित्र का वीडियो देखा। वह खासे आहत थे कि शादी में लोग पहले नचनिया बुलाते थे, अब खुद नाचते हैं। वीडियो में महिलाओं की पगड़ी साफा, और कुछ और संकेतक बता रहे थे कि वह क्षत्राणी महिलाएं थीं, खाते पीते घर की थीं और म्यूजिक पर थिरक रही थीं।
प्रकृति ने महिलाओं को पुरुष की तुलना में बेहतर लय, ताल दिया है। उनमें बेहतर संतुलन दिया है। एक रोज पढ़ रहा था कि मेट्रो ट्रेन में महिलाएं अगर सीखचे न पकड़ें तब भी ट्रेन चलने या रुकने पर अमूमन नहीँ गिरतीं। लेकिन पुरुष मेट्रो के झटके में भी खुद को संतुलित नहीं कर पाता। आप खुद यह अनुभव कर सकते हैं, मेट्रो रेल में यात्रा करते हुए।
एक नजर इधर भीः वैज्ञानिक प्रगति ने हमको बम, हाइड्रोजन बम, परमाणु बम, मिसाइल आदि आदि दिया है, छोटे मोटे लोग बंदूक, रिवाल्वर का लाइसेंस पाकर भी धन्य
आप महिलाओं और पुरुषों को शादी ब्याह में नाचते हुए देखें। बच्चियों से लेकर महिलाओं तक आपको बढ़िया नाचते हुए मिलेंगी। महिलाओं के भीतर नृत्य इनबिल्ट होता है। वैसे पुरुषों को भी निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि नृत्य के बादशाह माइकल जैक्सन और बिरजू महाराज पुरुष ही हैं।
तो मामला यह है कि थोड़ा चिल करिए। सभ्यता संस्कृति को जेब के पिछले पॉकेट में डालिए। महिलाओं को भी जीने दीजिए और थोड़ा मनुष्य बनकर व संस्कृति सभ्यता की रक्षा की ठेकेदारी छोड़कर आप भी जी लीजिए। आपका ठेका लिए कोई और बैठा है जो आपको नचाता है। उसे आप महिलाओं का नाचना रोककर संस्कृति की रक्षा नहीं कर पाएंगे। जो आपको नचा रहा है, वही महिलाओं को भी नचा रहा है। आपकी उसके सामने कोई औकात नहीं है और 80 या 100 साल जिंदगी मिली है तो उसे जी लीजिए, सुख से जीना आपके ऊपर निर्भर है।
एक चुम्बन पर भी फोटो नाच रही है और इंटरकास्ट पर भी। किसी रोज गीत गोविन्दम और स्मृतियों के हवाले से बताऊंगा कि यह सब रोक पाना आपकी औकात में नहीं है। पता नहीं कितने सौ साल से यह चल रहा है और आगे चलता रहेगा। जाति भेद, चुंबन न लेना, ये न करना, वो न करना, नहीं हंसना, नहीं नाचना, यह सब आपके और आपके पुरखों के बनाए नियम हैं, इनकी कोई खास औकात नहीं होती है।
आज की रेसिपी इतनी ही। कुछ कच्चा, कुछ पक्का।
(फोटोः कार्डी बी के फेसबुक पेज से साभार। कार्डी बी अमेरिका की गायिका और स्टेज परफार्मर नृत्यांगना हैं।)