Dante Alighieri

दांते (Dante Alighieri) अपनी प्रेमिका बियाट्रिस से जिंदगी में सिर्फ 2 बार मिले. दांते जब भी बियाट्रिस के बारे में सोचते उनके मुँह से कविता फूटने लगती. और जब भी कविता के बारे में सोचते, उनके सामने बियाट्रिस का चेहरा आ जाता. अपनी इसी अनुभूति को शब्दों में ढालते हुए उन्होंने एक जगह लिखा है “अब मुँझ पर एक देवी शासन करती है, मुंझसे भी शक्तिशाली एक पवित्र देवी.

 राजेंद्र सिंह

“दान्ते अलगियरी” (Dante Alighieri) को इतिहास के सबसे बडे कवियों में से एक माना जाता है। एक ऐसा कवि जिसने इतावली भाषा को एक नया रूप और तेवर दिया, एक ऐसा कवि जिसने पश्चिमी यूरोप में कविता लिखने के तरीकों को बदल दिया। यूरोप और अमेरिका के कई हिस्सों में ये मान्यता है कि यदि आपने दाँते को ठीक से नहीं पढ़ा तो आपकी कविता में वो दार्शनिक गहराई नहीं आ पायेगी जिसको लिखने के आप सपने देखते हैं।

इस प्रेमकथा में प्रेम है लेकिन कोई कथा नहीं। प्रेम प्रेम की तरह नहीं और कथा कथा की तरह नहीं। 1265 ईस्वी में इटली के #फ्लोरेंस शहर में दान्ते का जन्म हुआ। ये कोई संयोग भी नहीं कि आगे चलकर यही शहर यूरोपियन पुनर्जागरण का केंद्र बना। क्योंकि दान्ते अपनी ऐतिहासिक कृति “डिवाइन कामेडी” में ईश्वर पे विश्वास और समर्पण तो दिखाते हैं। किंतु उनका ईश्वर, उनके दिल में सदैव के लिए घर बना चुकी “बियाट्रिस” थी। दान्ते दरअसल मध्यकालीन अंधकार युग और पुनर्जागरण काल के बीच की कड़ी थे।

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“दान्ते” (Dante Alighieri) जब नौ साल के थे तो उन्हे अपने पिता के साथ शहर के एक प्रतिष्ठित और समृद्ध व्यक्ति पोर्तिनारी के घर में आयोजित एक दावत में जाने का अवसर मिला। जब दान्ते वहाँ अपने हम उम्र बच्चों के साथ खेल रहे थे तो पोर्तिनारी की आठ साल की बच्ची बियाट्रिस भी वहाँ आ गई। #बियाट्रिस यानी सुंदर चेहरा, उज्ज्वल आभा, सुरीली आवाज और पवित्र व्यक्तित्व। उसे उसकी सुंदरता की वजह से उसे उसके परिवार में नन्हीं परी कहा जाता था। पहली नजर में दान्ते बियाट्रिस के प्रेम में पड़ गए। जैसे किसी ने उनपर जादू कर दिया हो।

दान्ते (Dante Alighieri) उसकी एक झलक पाने के लिए अक्सर उसके घर के आस पास भटकते रहते, शहर की गलियों में घूमते रहते। अपनी तलाश को गुप्त रखकर उन्होंने तमाम प्रयास किए लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली।

अगली मुलाकात 10 साल बाद हुई, तब दान्ते 18 और बियाट्रिस 17 साल की थी। फ्लोरेंस में आर्नो नदी के किनारे पुल के पास झक सफेद कपड़ों में बियाट्रिस अपनी दो सहेलियों के साथ चली आ रहीं थीं। दान्ते हर समय उसी के बारे में सोचते रहते थे। बरसों से उसकी एक झलक पाने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे थे। अब वो ठीक सामने थी अपनी सहेलियों के साथ आ रही थी। दान्ते मंत्रमुग्ध , सम्मोहित जैसी अवस्था में खड़े होकर उसे बस देखते रहे। बियाट्रिस बिलकुल उनके पास से गुजरी , चार कदम आगे बढ़ी और उसने पलट कर दान्ते को देखा। इतालवी अंदाज में सिर झुकाया, दाहिना हांथ ऊपर उठाया, दान्ते को सलाम किया और आगे बढ़ गई। नदी किनारे बियाट्रिस को देखने का ये दृश्य दान्ते के जीवन के सबसे मशहूर दृश्यों में है । इस दृश्य को यूरोप के कई चित्रकारों ने अपने कैनवस पर उतारा और नदी के किनारे हुई इस मुलाकात को इतिहास में अमर बना दिया।

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बियाट्रिस के इस दर्शन और अभिवादन से दान्ते इतना खुश हो गए थे कि वह अपने बाकी सारे कामों को छोड़ वह अपने कमरे में लौट गए। और एक सुंदर भविष्य की कल्पना करते हुए सो गए। तब उन्हे एक स्वप्न आया जिसमें एक विशाल प्रकाशपुंज प्रकट हुआ। उस प्रकाश पुंज ने उनसे कहा कि मैं तुम्हारा ईश्वर हूं। दान्ते चकाचौंध होते हुए उसे देखते रहे। उस प्रकाश पुंज की गोद में किसी नन्हे फरिश्ते की तरह बियाट्रिस बैठी हुई थी। उसके हाँथ में दान्ते का दिल था वो उससे खेल रही थी। यह एक अजीबो गरीब सपना था, एक तरह से देखिए तो बेहद सुंदर जिसमें खुद ईश्वर बियाट्रिस को गोद में बिठाए हुए हैं और दान्ते को प्रकाशित कर रहे हैं।

दान्ते कम उम्र से ही कविता लिखते थे , इस सपने ने उन्हें एक कविता लिखने की प्रेरणा दी। उन्होंने जो सोनेट लिखा वो उनकी प्रसिद्ध किताब “द न्यू लाइफ” का पहला सोनेट बन गया था। एक युवा कवि को उसके जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा मिल गई। उसके बाद दान्ते जब भी बियाट्रिस के बारे में सोचते उनके मुँह से कविता फूटने लगती और जब भी कविता के बारे में सोचते उनके सामने बियाट्रिस का चेहरा आ जाता। अपनी इसी अनुभूति को शब्दों में ढालते हुए उन्होंने एक जगह लिखा है “अब मुँझ पर एक देवी शासन करती है, मुंझसे भी शक्तिशाली एक पवित्र देवी।

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मन ही मन दान्ते (Dante Alighieri) का प्रेम बढ़ता गया, लेकिन विडंबना देखिए कि उन दोनों के बीच तीसरी मुलाकात कभी नहीं हो पाई। उसके बाद भी ये इतिहास की सबसे सुंदर प्रेमकथाओं में से एक है। पर दान्ते को थोड़े n पता था कि उनकी नियति में तीसरी मुलाकात नहीं लिखी है। वो तो दीवानों की तरह एक झलक पाने के लिए गलियों में भटकते रहे। नदी किनारे उसी जगह खड़े होकर प्रतीक्षा करते रहे। चर्च के चक्कर काटते, चौराहे पर उसके बारे में पूंछताछ करते। इस तरह सात साल और गुजर गए।

अचानक एक दिन खबर आई की बियाट्रिस की मृत्यु हो गई है। दान्ते शोकाकुल हो गए , पागलों की तरह रहने लग गए नींद छोड़ दी, भोजन छोड़ दिया और बीमार हो गए । सब हैरान थे कि आखिर उन्हें क्या हो गया है ? बार बार पूँछा गया, उनके मित्रों से पूंछा गया तब पता चला कि दान्ते बियाट्रिस से इतना प्यार करते थे। उन्हे ठीक करने और मातम से बाहर निकालने के बारम्बार प्रयास किए गए। तब जाकर वो धीरे धीरे सामान्य हो पाए लेकिन तब वो शरीर से दुर्बल हो चुके थे।

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कई दिनों के मातम और एकांतवास के बाद जब वो बाहर निकले तो वे उनके लिए एक नए जन्म की तरह था। सड़क पर एक नया दान्ते चल रहा था, ठीक उन्ही गलियों और सड़कों पे जहां बियाट्रिस को पागलों की तरह ढूंढने वाला एक प्रेमी चला करता था। वैसे देखा गया है कि प्रेम एक बेहद शक्तिशाली अनुभूति है, जो व्यक्ति को रचनात्मक भी बना सकती है और विद्धवंसात्मक भी। उसके बाद दान्ते की कविताओं में मानो विस्फोट हुआ। उनकी कविताओं में प्रेम, ईश्वर और फिलोसफी के नए नए आयाम जुड़ने लगे।

 

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