आप जो सोचते हैं, वैसा ही काम करते हैं। और जिस चीज के बारे में बड़ी गम्भीरता से सोचते हैं, वह आपके दिमाग मे चलने लगता है। आपका वह विचार आपका मस्तिष्क कई गुना बढ़ाता है। आप सोचते जाते हैं और फिर ख्वाबो की दुनिया मे डूबते जाते हैं।
आप कल्पना करें कि मेरे पास एक फेरारी कार है। जैसे ही आपके मन मे फेरारी आई, आप उसकी हाइट, कलर, इंटीरियर डेकोरेशन, उसके कम्फर्ट जोन की कल्पना करने लग सकते हैं। आपके ध्यान में यह आ सकता है कि पड़ोसी कितना जलेगा! या यह कल्पना कर सकते हैं कि पड़ोस वाली भाभी को लेकर उसमें घूमने जाएंगे। उसकी रफ्तार में आप कुलांचे भरने लगेंगे। पुलिस, ओवर स्पीडिंग की फाइन ध्यान में आ सकता है। और अब क्या क्या लिखें, जितनी शिद्दत से आप फेरारी के बारे में सोचते जाएंगे, उतनी ही आपकी कल्पनाएं कई कई गुना बढ़ती जाएंगी। जबकि हकीकत में वह फेरारी अभी आपके सपनों में आई है। और यह सम्भव है कि आप फेरारी के प्रति इतने दीवाने हो जाएं कि उसे खरीद डालने के प्रयोजन में जुट जाएं!
इसी तरह से आप जिस भी तरह का भाव अपने मन मे लाते हैं, आपका मस्तिष्क आपको उसी तरफ भगाता है, दौड़ाता है, दौड़ाते दौड़ाते थका देता है। उम्मीद है कि यह सभी के साथ होता है।
अभी के संसार मे आपके जीवन मे बड़ी अनिश्चितता है। और अनिश्चितता में बड़ी नेगेटिविटी भी आती है। हम ज्यादातर अपने बारे में, अपने आसपास के बारे में नेगेटिव सोचते हैं।उस नेगेटिविटी का परिणाम यह होता है कि आपका मस्तिष्क उसे कई गुना बढ़ाकर आपको नेगेटिव और बुरे की तरफ मोड़ देता है। इससे केवल मानसिक ही नहीं, शारीरिक व्याधियां भी होती हैं। आज ही सुना कि केजीएमसी के एक दांत के डॉक्टर ने कहा कि आपको गुस्सा बहुत आता है इसलिए आपका दांत खराब होता है! हो सकता है कि डॉक्टर ने यूँ ही कह दिया हो, या यह भी सम्भव है।कि गुस्से का सम्बन्ध दांत से हो!
शरीर मे अल्सर, गांठ बनना, अपच, कब्ज आदि आदि का मस्तिष्कसे बड़ा नजदीकी सम्बन्ध है। ये मैंने खुद फील किया है। 10 साल पहले जब मैं तम्बाकू खाता था तो बगैर गुटखा, तम्बाकू, गुल, सिगरेट के लैट्रिन ही नही उतरती थी। बाद में यह आदत हो गई कि तम्बाकू मलते मलते फ्रेश हो जाता था और तम्बाकू मलकर मैं फ्लश कर देता था क्योंकि तम्बाकू से मुंह का टेस्ट बिगड़ जाने के कारण तम्बाकू खाना अवॉयड करता था। तो यह अहसास हुआ कि यह तम्बाकू खाकर फारिग होना भी एक मनोदशा है।
हमलोगों का मस्तिष्क अक्सर वही सोचता है, जिस तरह के वातावरण में हम प्ले बढ़े होते हैं। तमाम लोगों को देखा है कि बीएचयू में थे तो संघी थे, जेएनयू में आए तो भयानक वाले जर्जरात कॉमरेड हो गए। इसका वाइसवर्सा तो स्वाभाविक ही होता है। तमाम लोग 2014 तक कांग्रेस के दुश्मन दिखते थे वो आजकल आपको राहुल गांधी के सबसे बड़ा झंडावरदार मिलेंगे। यहां तक कि कामरेड जैसे दिखने काले लोग संघिया गए सीधे! बंगाल एक बड़ा उदाहरण है जहां कम्युनिस्ट समर्थक सीधे भाजपा में जा गिरे!
गौतम बुद्ध कहते हैं…
नीधीनं ‘व पवत्तारं यं पस्से वज्जदस्सिनं।
निग्गय्हवादि मेधावि तादिसं पण्डितं भजे।
तादिसं भजमानस्स सेय्यो होति न पापियो।।1।।
ओवदेय्यानुसासेय्य असब्भा च निवारये।
सतं हि सो पियो होति असतं होति अप्पियो।।2।।
न भजे पापके मित्ते न भजे पुरिसाधमे।
भजेथ मित्ते कल्याणे भजेथ पुरिसुत्तमे।।3।।
निधियों को बतलाने वाले की भाँति दोष दिखाने वाले वैसे संयमवादी, मेधावी पण्डित का साथ करे, क्योंकि वैसे का साथ करने से कल्याण ही होता है, बुरा नहीं ।
जो उपदेश दे, सुमार्ग दिखाये तथा कुमार्ग से निवारण करें, वह सज्जनों को प्रिय होता है, किन्तु दुर्जनों को अप्रिय।
बुरे मित्रों का साथ न करें, न अधम-पुरुषों का सेवन करें। अच्छे मित्रों का साथ करे, उत्तम पुरुष का सेवन करें।
आपके आसपास कौन लोग हैं, वह आपके जीवन मे बहुत मायने रखता है। अपने आसपास के मुताबिक पूरा आपका थॉट प्रॉसेस बनता है। ऐसे में अगर कोई कड़वा करेला लग रहा है और वहां से हित की बात निकल रही है तो आप अपने हितों पर ध्यान दें। बुरे लोगों से एक डिस्टेंस रखें। उनके लिए भी मंगल की कामना करें जिससे वे बेचैनी और अशांति से दूर हों, उनका भी कल्याण हो। तभी आप सुखी हो सकते हैं। अगर आपके आसपास भूखे नङ्गे अशांत लोग रहेंगे तो आपका सुख चैन भी छिनेगा।
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