धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्न चित्त से सुखपूर्वक सोता है पण्डित बुद्ध के उपदिष्ट धर्म में सदा रमण करता है

धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्न चित्त से सुखपूर्वक सोता है पण्डित बुद्ध के उपदिष्ट धर्म में सदा रमण करता है

धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्न चित्त से सुखपूर्वक सोता है, पण्डित बुद्ध के उपदिष्ट धर्म में सदा रमण करता है। नहर वाले पानी को ले जाते हैं, बाण बनाने वाले बाण को ठीक करते हैं, बढ़ई लकड़ी को ठीक करते हैं और पण्डितजन अपना दमन करते हैं। जैसे ठोस पहाड़ हवा से नहीं डिगता, वैसे ही पण्डित निन्दा और प्रशंसा से नहीं डिगते।

धर्म का अर्थ इस समय सर्वाधिक बदला है। इसे रिलीजन या पंथ का समानार्थी मान लिया गया है। पंथ एक किसी खास सेक्ट या कल्ट से जुड़ा हुआ मसला लगता है। रिलीजन का कोई प्रवर्तक होता है। उस प्रवर्तक के फालोवर होते हैं और वही फालोवर बढ़ते बढ़ते जब बड़ी संख्या बना लेते हैं तो उस व्यक्ति के बताये हुए मार्ग और उसके शिक्षा का एक कल्ट बन जाता है। अक्सर यह कल्ट कट्टर होते हैं और अपने प्रवर्तक के लिए खून खराबा करते रहते हैं।
धर्म को लेकर मैं अक्सर अकबका जाता हूँ। जैसे मुस्लिम, ईसाई, पारसी, यहूदी आदि धर्मों में है।कि उनके एक प्रवर्तक रहे हैं। उन्होंने कोई किताब लिख दी है,ऐसा माना जाता है। उनकी कुछ शिक्षाएं हैं। और उन धर्मो को मानने वाले उनका कहा मानते हैं। मेरे लिए क्या है? रामायण मानें, महाभारत मानें, शिव पुराण मानें? किस आदेश को आदर्श मानें? ऐसा कोई पथप्रदर्शक तो हुआ नहीं है जिसके कहे को मान लिया जाए!
और अगर वेद को मान लिया जाए तब तो अजीब ही स्थिति हो जाती है क्योंकि वह अपौरुषेय हैं। उनकी रचना किसी एक व्यक्ति ने की ही नहीं है कि किसी एक व्यक्ति को अपने धर्म का प्रवर्तक मानकर मर कट जाऊं, या खून खच्चर मचा दूं। वेदों के सैकड़ों लेखक हैं उनमें से ज्यादातर के तो लोगों को नाम भी नहीं पता है, उन लेखकों के लिए मर मिटना तो दूर की कौड़ी है।
भारत के लोगों को जब किसी प्रवर्तक के धर्म से जोड़कर देखा जाता है तो परिभाषा बिल्कुल फिट नही बैठती। अगर किसी से पूछें कि हिन्दू धर्म का प्रवर्तक कौन है तो कोई बता ही नहीं सकता क्योंकि इसका कोई प्रवर्तक नहीं है। इसका क्रमश विकास हुआ है और जीवन शैली क्रमशः बदलती रही है। यह किसी प्रवर्तक के आदेश पर नहीं चलता।
बुद्धिज्म में धर्म या धम्म का मतलब प्रकृति के नियमों से है। यानी प्रकृति का नियम ही धर्म है। अगर आप प्रकृति के नियमों पर चलते हैं, उसका पालन करते हैं तो आप सुखी रहेंगे। धर्म का रसपान करने वाला हमेशा सुखी रहता है। जब हमारे भीतर नकारात्मक विकार आते हैं तो वह अपने धर्म के मुताबिक शरीर पर प्रभाव डालते है। अगर आपके भीतर क्रोध, ईर्ष्या, जलन, उन्माद पैदा होता है तो वह आपके शरीर का तापमान बढ़ाता है, वह आपकी शरीर को जलाता है। उसके बाद वह दूसरे पर असर डालता है।
अगर आप प्रकृति के नियम के अनुकूल चलते हैं और नकारात्मक धारणा नहीं आती है तो वह आपको सुख देता है। अगर आप मन की शुद्धता का अभ्यास करते हैं और दूसरे के प्रति दया, करुणा, प्रेम सद्भाव लाते हैं तो आप धर्म का पालन करते हैं, सुख के करीब जाते हैं। गौतम बुद्ध ने यही उवदेश दिया है। वह कहते हैं कि सबके कल्याण की कामना करें। अपने चारों ओर मौजूद समस्त जीवों के कल्याण की कामना करें। वही धर्म है। जो बुद्ध जन के उपदेशों में रमण करता है वही पण्डित है, वह आनंदित रहता है। कभी दुखी नहीं होता।
और जो पण्डित होता है वह दूसरे का नहीं अपने ही तमाम उन भावनाओं का दमन करता है जो दूसरों के लिए कल्याणकारी न हो। गौतम बुद्ध कहते हैं…
धम्मपीती सुखं सेति विप्पसन्नेन चेतसा।
अरियप्पवेदिप्ते धम्म सदा रमति पंडितो ।।4।।
(धर्मपीतीः सुखं शेते विप्रसन्नेन चेतसा।
आर्यप्रवेदिते धर्म सदा रमते पंडितः ॥4।।)
उदकं हि नयन्ति नेत्तिका उसुकारा नमयन्ति तेजनं ।
दारु नमयन्ति तच्छका अत्तानं दमयन्ति पंडिता ।।5।।
(उदकं हि नयन्ति नेतृका इषुकारा नमयन्ति तेजनम्।
दारु नमयन्ति तक्षका आत्मानं दमयन्ति पण्डिताः ॥5।।)
सेलो यथा एकघनो वातेन न समीरति ।
एवं निन्दापसंसासु न समिञ्जन्ति पंड़िता ।।6।।
(शैलो यथैकघनो वातेन न समीर्यते।
एवं निन्दाप्रशंसासु न समीर्यन्ते पण्डिताः॥6॥)
धर्म रस का पान करने वाला प्रसन्न चित्त से सुखपूर्वक सोता है, पण्डित बुद्ध के उपदिष्ट धर्म में सदा रमण करता है।
नहर वाले पानी को ले जाते हैं, बाण बनाने वाले बाण को ठीक करते हैं, बढ़ई लकड़ी को ठीक करते हैं और पण्डितजन अपना दमन करते हैं।
जैसे ठोस पहाड़ हवा से नहीं डिगता, वैसे ही पण्डित निन्दा और प्रशंसा से नहीं डिगते।
अगर आपने प्रकृति के मुताबिक कदम उठाए, सनातन के मुताबिक चले हैं तो आपने धर्म का रसपान किया है। खुश रहेंगे और चैन की नींद सोएंगे भी। दूसरे का अहित सोचकर अपने को जलाएंगे भी नहीं। और अगर आपकी प्रज्ञा जागृत है तो निचकट टाइप निंदक आपको डिगा भी नहीं सकते क्योंकि आपको पता होता है कि आप जो कर रहे हैं वैश्विक मानवता के हित मे है।
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