अगर आप बेहतर मनुष्य बनने की कोशिश नहीं करेंगे तो पीढ़ियों का संचित धन गंवा देंगे धम्मपद-3

अगर आप बेहतर मनुष्य बनने की कोशिश नहीं करेंगे तो पीढ़ियों का संचित धन गंवा देंगे : धम्मपद-3

सत्येन्द्र पीएस

फरलो मारने में जो मजा होता है, वह बीमार पड़कर छुट्टी लेने में बिल्कुल नहीं होता है। मेडिकल लीव में मजा तभी है जब आपकी तबीयत खराब न हो और ऐसे ही छुट्टी ले लीजिए!

ऐसे ही प्यार मोहब्बत का मामला है। प्यार मोहब्बत में झूठ बोलने, परिजनों के प्रतिरोध के प्रति विद्रोह करने में ज्यादा मज़ा आता है।

हमारे जिले में एक प्रोफेसर पांडे जी थे। उनकी लड़की ने अपने से ब्याह कर लिया तो उन्होंने उसकी श्राद्ध कर डाली थी, जबकि उसने जात में ही विवाह किया था। यह पांडे जी का ही इशू नहीं है, मैं भी इसी सोच का था, तलवारें निकल जाती थी, हत्याएं करने की योजना बनने लगती थी।

अब स्थिति बदल गई है। कोई ऐसी बात नहीं करता कि उसकी बेटी बेटा लव मैरिज या कुजतिहा में ब्याह कर लें तो कोई मारने दौड़ेगा। लोग केवल इतना सोचते हैं कि लड़की कहीं ऐसे जगह ब्याह न करे कि उसकी जिंदगी भर के लिए दुर्गति हो जाए। लड़के के बारे में तो उतना भी नहीं सोचा जाता।

मेरे तमाम परिचित, रिलेटिव्स हैं, जो यह सोचते है कि बेटा बेटी आईआईटी, एमबीबीएस करते वहीं पर लड़की लड़का देख लें अपने लिए। यह आदर्श स्थिति मानी जा रही है, विरोध करना तो दूर की कौड़ी है। मेरे रिलेशन में तो कुजतिहा में अब पहले की तुलना में आसानी से शादियां हो रही हैं और लोग बाकायदा अरेंज तरीके से शादियां कर दे रहे हैं।

अब तो लड़का लड़की सब शादी ब्याह, प्यार मोहब्बत की तरफ ताक ही नहीं रहे हैं, तब भी हम लोगों को समस्या हो रही है। अब हम लोगों से नीचे छूट गए लोग, यानी 30 साल पहले।की सोच वाले भी हों तो कहा नहीं जा सकता। लेकिन मेरे लेवल वाले ऑनर किलिंग को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं।

श्रावस्ती में कौशाम्बी के भिक्षु से गौतम बुद्ध कहते हैं…

परे च न विजानन्ति मयमेत्थ यमामसे।

ये च तत्थ विजानन्ति ततो सम्मन्ति मेधगा।।6।।

(परे च न विजानन्ति वयमत्र यंस्यामः।

ये च तत्र विजानन्ति ततः शाम्यन्ति मेधगाः॥6॥)

अनाड़ी लोग इसका ख्याल नहीं करते कि हम इस संसार में नहीं रहेंगे, जो इसका ख्याल करते हैं, उनके सारे कलह शान्त हो जाते हैं।

सामाजिक व्यवस्था को हिंसा और लाठी के दम पर चलाने वाले हमेशा से रहे हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि समाज ऐसे में चल सकता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। लेकिन दोनों तरह की सोच के लोग मौजूद होते हैं। कभी किसी की प्रधानता होती है, कभी किसी की प्रधानता होती है। समाज तब बेहतर रहता है जब अहिंसक लोगों की प्रधानता होती है। लोग यह सोचते हैं कि हम भी निपट जाएंगे, सामने वाला भी निपट जाएगा। लोगों को अनित्यता का बोध रहता है। लेकिन कुछ लोग तो रहते ही हैं जो ऐसा सोचते हैं कि उन्ही के फन पर धरती टिकी है। वह नही रहेंगे तो समाज और मनुष्य कैसे रहेंगे? वह अपने मुताबिक दूसरे को चलाने की कोशिश करते हैं। खुद भी आफत में पड़ते हैं और दूसरों को भी आफत में डालते हैं।

इससे एक मसला और हुआ है। पैसे वाले और पद वाले परिवार काबिल युवाओं को खरीद नहीं पाते। बिरादरी में जो भी आइएएस/पीसीएस या डॉक्टर होते हैं, उधर ही टांका भिड़ा लेते हैं। बोली लगाने वाले ताकते ही रह जाते हैं।

सेतव्य नगर में गौतम बुद्ध अपने एक शिष्य महाकाल से कहते हैं…

सुभानुपस्सि विहरन्तं इन्द्रियेसु असंवुतँ।

भोजनम्हि अमत्तञ्जु कुसीतं हीनवीरियं।

तं वे पसहति मारो वातो रुक्खं’व दुब्बलं ।।7।।

( शुभमनुपश्यन्तं विहरन्तं इन्द्रियेषु असंवृतम्।

भोजनेऽमात्राज्ञं कुसीदं हीनवीर्यम्।

तं वै प्रसहति मारो वातो वृक्षमिव दुर्बलम् ॥7॥)

शुभ ( रूप-सौंदर्य) को देखते हुए विहार करने वाले, इन्द्रियों में असंयत, भोजन में मात्रा न जानने वाले, आलसी और उद्योगहीन पुरुष को मार वैसे ही गिरा देता है, जैसे वायु दुर्बल वृक्ष को।

असुभानुपस्सि विहरन्तं इन्द्रियेसु सुसंवुतं ।

भोजनम्हि च मत्तञ्जु सद्धं आरद्धवीरियं।

तं वे नप्पसहति मारो वातो सेलं’व पब्बतं ।।8।।

(अशुभमनुपश्यन्तं विहरन्तं इन्द्रियेषु सुसंवृतम्।

भोजने च मात्राज्ञं श्रद्ध आरब्धवीर्यम् ।

तं वै न प्रसहते मारो वातः शेलमिव पर्वतम् ॥8॥)

अशुभ (रूप की कुरूपता) को देखते हुए विहार करने वाले, इन्द्रियों में संयत, भोजन में मात्रा जानने वाले, श्रद्धावान् और उद्योगी पुरुष को मार वैसे ही नहीं डिगा सकता, जैसे वायु शिलामय पर्वत को।

अगर आप गुड गुड देखकर उधर की ओर लपकते हैं, आलसी हैं तो आपके दिन ढलने ही हैं। बाप दादा टॉप पर रहे हैं इसका मतलब ये नहीं कि बेटा को भी टॉप पर जाना है। बेटे को अलग उद्यम करना होगा, कोशिश करनी होगी कि वह बेहतर मनुष्य बने। अगर आप भोग विलासिता में लगे हैं, दीन दुनिया का कुछ अता पता नहीं है तो भौतिक सुख सुविधाएं छिन जाने में देर नही लगती।

लेकिन अगर आप अपनी इंद्रियों को संयत रखते हैं। सब कुछ ठूंसकर अपने पेट में भर लेने की मंशा नही रखते हैं, उद्यमशील हैं, समय और जरूरत के मुताबिक बदलाव लाने के लिए विवेक का इस्तेमाल कर रहे हैं तो मौत भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

गौतम बुद्ध तो कुछ ऐसा ही बता गए हैं। और 2500 साल बाद भी यह प्रासंगिक बना हुआ है, कुछ नया कहे जाने की जरूरत नहीं है। तो पार्टी शॉर्टी करते रहिए भाई। मस्त रहिए, दूसरों को भी मस्त रहने दीजिए। आपके हांकने से दुनिया नहीं चलती है। आप भगवान विष्णु नहीं हैं कि आपके फन पर पृथ्वी टिकी है

#भवतु_सब्ब_मंगलम

 

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