आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि के जन्मदिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। सत्येन्द्र पीएस बता रहे हैं कि हमें धनतेरस क्यों और कैसे मनाना चाहिए

 

स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन माना गया है। और धन्वन्तरि को आयुर्वेद का जनक या चिकित्सा का देवता कहा गया है। आचार्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता लिखी है, जो सर्जरी की पहली किताब मानी जाती है। उसमें धन्वन्तरि का वर्णन है कि जब चिकित्सा जगत में विशेषज्ञता की जरूरत महसूस की गई और तमाम छात्रों ने शल्य में रुचि दिखाई तो सुश्रुत उसके आचार्य बने। सभी आयुर्वेदाचार्यों ने धन्वन्तरि का उल्लेख किया है। लेकिन धन्वन्तरि इतने प्राचीन हो गए हैं कि कन्फ्यूजन हो जाता है कि वह कौन थे, किस काल में पैदा हुए!
लगता है कि इन बवाल को देखते हुए धन्वन्तरि बाबा को विष्णु भगवान का अवतार और चिकित्सा शास्त्र का देवता घोषित कर दिया गया। जन्म मरण का बवाल ही खत्म। धन्वन्तरि बाबा के बर्थडे को हर साल धन तेरस मनाया जाता है।
ज्योतिष में विभिन्न ग्रहों के असर के मुताबिक शरीर रचना बताई गई है। जिस ग्रह के प्रभावी या कमजोर होने पर व्यक्ति का जन्म होता है, उसके मुताबिक उसके गुण और लक्षण होते हैं। सूर्य को अस्थि, जैव विद्युत, श्वसन तंत्र, नेत्र को नियंत्रित करने वाला माना गया है। चंद्रमा को खून, जल, हार्मोन्स व मन को, मंगल ग्रह को यकृत, रक्त कणिकाएं, पाचनतंत्र, बुध को अंग प्रत्यंग, स्थित तंत्रिका तंत्र, त्वचा, वृहस्पति को नाड़ी तंत्र, स्मृति व बुद्धि को नियंत्रित करने वाला, शुक्र को वीर्य, रज, कफ और गुप्तांग को नियंत्रित करने वाला, शनि को केंद्रीय नाड़ी तंत्र को नियंत्रित करने वाला और राहु व केतु को शरीर के अंदर आकाश व अपान वायु को नियंत्रित करने वाला बताया गया है। ग्रहदोष के मुताबिक विभिन्न औषधियां रोग का निवारण करती हैं। औषधि मिश्रित जल से नहाने से बीमारियां दूर होती हैं। सूर्य को जल देने की परंपरा है। सूर्योदय के समय हाथ से सिर के ऊपर तक लोटा उठाया जाता है और उसकी धार सूर्य की ओर गिराई जाती है, जिसे आंखों की रोशनी के लिए लाभदायक माना जाता है।
सूर्य पित्तदोष, चंद्रमा कफ एवं वात दोष, मंगल पित्तदोष, बुद्ध त्रिदोष, बृहस्पति कफदोष और शनि वातदोष पैदा करता है।
ऐसा नहीं कि आप अगर किसी वजह से दुर्बल हैं तो वह दुर्बलता सदैव आपके साथ रहेगी। मनुष्य शरीर को बहुत बड़ा पावर सेंटर माना गया है, जिसकी हीलिंग कैपेसिटी अद्भुत है। हयन्ते दुर्बलं दैवं पौरुषेण विपश्चिता, यानी उपायों से मनुष्य अपने भावी सुख और दुख को जानकर अपने पुरुषार्थ से उसे अपने अनुकूल बना सकता है।
यह सब ज्ञान की बात है। बाउंस कर जाने वाली। कोई डॉक्टरी करे तो यह सब पढ़े भी। और अपने यहां कौन सी डॉक्टरी होती है? लड़के 12 पास किये,नीट दिए तो उनका पहला लक्ष्य होता है कि एमबीबीएस मिल जाए, जिससे गोली, चीड़फाड़ की जानकारी हो जाए, मोटा कमीशन और फीस आए। जब नीट में एमबीबीएस नहीं मिलता तो वो आयुर्वेद में तीसरी चौथी प्राथमिकता पर आते हैं। पहले से ही वह अपने को हीन माने बैठे होते हैं। ऐसे में तरीका यह होना चाहिए कि एग्जाम से पहले ही प्राथमिकता पूछ ली जाए कि आप किस चिकित्सा पद्धति में जाना चाहते हैं। फिर कम से कम फ्रस्ट्रेट होकर बच्चा नहीं पहुंचेगा कि चलो उसमें नहीं हुआ तो यही पढ़ लेते हैं, बाद में पैरासिटामोल, सूमो और इंजेक्शन वग़ैरा देकर कुछ न कुछ जीने खाने भर को कमा ही लेंगे!
बहरहाल… अगर आपके साथ कोई एक्सीडेंट न हो जाए तो ज्यादातर रोग मस्तिष्क से नियंत्रित होते हैं। अपने को स्वस्थ फील करना जरूरी है। अपना सौंदर्य महसूस करना बहुत जरूरी है। महिलाओं में खुद के सौंदर्य का बोध बेहतर होता है, हालांकि तमाम वाह्य व्यवधान उन्हें उस सौंदर्यबोध के साथ जीने नहीं देते।
और पुरुष अमूमन नीरस होते हैं। सजना सँवरना और अपने को सुंदर बनाए रखने पर बहुत कम ध्यान देते हैं। यहाँ तक कि कोई सुंदर दिखने की कोशिश करे तो वह मजाक का पात्र बन जाता है! हालांकि रवींद्रनाथ टैगोर, सुमित्रानंदन पंत वगैरा तमाम कवि हुए हैं जो अपने सजने संवरने पर ध्यान देते थे। अभी भी आप देखें तो पाएंगे कि जितने बड़े, अमीर, योग्य लोग हैं, वो वेल मेंटेन क्लीन शेव्ड, वेल ड्रेस्ड और एकदम चकाचक होते हैं। खुद का सौंदर्यबोध आपको शरीर से ही नहीं, मन मस्तिष्क से भी आपको स्वस्थ और कूल कूल बनाता है।
और पूरा का पूरा बौद्ध दर्शन ही खुद के सौंदर्य को देखने के ऊपर है। बुद्ध कहते हैं.. अपना दीपक खुद बनो। अपने पॉवर को पहचानो, अपनी आंतरिक अनुभूतियों को महसूस करो, अपनी सांस को महसूस करो, अपने शरीर की एक एक हलचलों को महसूस करो। इसी में तुम्हारे दुःखों का समाधान है। दूसरों को सुधारकर और दुरुस्त करके खुद के सुखी होने के बजाए अपना दीपक खुद बन जाओ।
मैं भी कुल मिलाकर पुरुष ही हूँ। वह भी गरीब गुरबा, लद्धड़ पुरुष। लेकिन पत्नी की कृपा से कभी कभी खुद में सौंदर्यबोध देख लेता हूँ। जब मैं कहता हूँ कि अब बूढ़ारी में क्या सौंदर्य देखना… तो उनका कहना होता है कि उसका अपना सौंदर्य होता है। बुड्ढा बुढ़िया भी स्मार्ट, सुंदर, स्वस्थ, एनर्जेटिक होते हैं।
आप खूब उत्साह से धनतेरस मनाएं। अपना धन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करें। धन्वन्तरि बाबा का बर्थडे हंसी खुशी पूरे उत्साह के साथ मनाएं। पैसे का अपव्यय, बाजारीकरण टाइप नारे लगाने वाले गरीब गुरबे खूब नारे लगाएंगे। सम्भव है कि नव बुद्ध वाले यह रोवना पिटना मचाए हों कि धन्वन्तरि बौद्ध थे, ब्राह्मणों ने उनको चुरा लिया! बाजार में तरह तरह के फ्रस्ट्रेशन हैं। आप अपने पर केंद्रित रहें और वही करें जिसमें प्रेम हो, खुशियां हों, मौज हो।
आप सभी मित्रों को धनतेरस की शुभकामनाएं, प्यार।
#भवतु_सब्ब_मंगलम

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