कर्नाटक में कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के बाद से पार्टी में चल रही उठापटक शर्मनाक है. कांग्रेस में नेतृत्वविहीनता DK Shivakumar और Siddharamiya की लड़ाई की बड़ी वजह है और इसी वजह से पिछले 10 साल से पार्टी का बेड़ा गर्क हो रहा है.
कर्नाटक विधानसभा का चुनाव प्रचार शुरू होने से लेकर प्रचार के खात्मे तक DK Shivakumar के रोड शो से लेकर जनसभाओं और नुक्कड़ सभाओं में जिस तरह की भीड़ उमड़ रही थी, जिस तरह का उत्साह दिख रहा था, चुनाव परिणाम अप्रत्याशित नहीं था. 135 सीट तो नहीं, लेकिन यह तय माना जा रहा था कि कांग्रेस सत्ता के करीब पहुंचेगी. पूर्ण बहुमत पाने के बाद कांग्रेस ने अपनी स्थिति हास्यास्पद बना दी है.
नाकारा है कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व
जब इतना तय था कि कर्नाटक में पार्टी की जीत होगी, तो यह भी तय ही था कि कांग्रेस का ही कोई नेता कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनेगा. लेकिन जीत के बाद जिस तरह से सिद्धारमैया और DK Shivakumar के खेमे में संघर्ष और खींचतान चल रही है, इसने कांग्रेस और राहुल-प्रियंका गांधी की नेतृत्वहीनता को उजागर कर दिया है. पार्टी तय ही नहीं कर पा रही है कि किसे मुख्यमंत्री बनाया जाए, जिससे राज्य में कोई विद्रोह न होने पाए और सरकार 5 साल चल सके.
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प्रचंड बहुमत ने दिया था मौका
कर्नाटक में प्रचंड बहुमत ने कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व को मौका दिया था कि वह अपने मनपसंद नेता को मुख्यमंत्री पद पर बिठा दे. अगर हल्का फुल्का बहुमत होता तो सोचना भी पड़ता कि विधायक किसके साथ हैं, विद्रोह हुआ तो क्या होगा. लेकिन अगर 136 सीटें मिल गईं, तो कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अपना मनपसंद मुख्यमंत्री बिठा सकता था. कहीं कोई पर्यवेक्षक, रिपोर्ट या खींचतान करने की जरूरत ही नहीं थी. विधायकों की एक फर्जी सी बैठक कराकर घोषणा कर देना था कि सिद्धारमैया या DK Shivakumar मुख्यमंत्री होंगे. सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाना था तो डीके को फ्री कर देना था कि अब तुम कट लो. कांग्रेस नेतृत्व ने फैसला कर लिया है, तुम भाड़ में जाओ. बहुत ताकतवर हो तो कांग्रेस को तोड़कर दिखा दो.
कांग्रेस खुद खोद रही है अपनी कब्र
लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया. अब शीर्ष नेतृत्व दोनों नेताओं में मुख्यमंत्री के पद के लिए खींचतान कराकर जनता के बीच संदेश दे रही है कि यह पार्टी और पार्टी नेता सत्ता लोलुप हैं. यह नेतृत्व करने योग्य हैं ही नहीं. सिद्धारमैया 5 साल मुख्यमंत्री रहकर चुनाव हार चुके हैं. उनकी उम्र भी 75 साल हो चुकी है. लेकिन कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व, पर्यवेक्षक उन्हें पार्टी के भीतर बवाल कराने के लिए कब्र से खोद लाया है. या कहें कि कांग्रेस ने अपनी कब्र खोद ली है कि उसे दफन हो जाना है.
DK Shivakumar के नेतृत्व में लड़ा चुनाव
कांग्रेस की दुर्गति के दिनों में शिवकुमार हर बार संकट मोचक बनकर उभरे. न सिर्फ उन्होंने कर्नाटक में पार्टी को मजबूत किया, बल्कि जब महाराष्ट्र में पार्टी संकट में आई, तब भी संकट मोचक बनकर उभरे. गुजरात में जब कांग्रेस विधायकों के अपहरण की नौबत थी, उसमें भी DK Shivakumar संकट मोचक बनकर आए. उन्होंने हर कवायद कर कांग्रेस को बचाया. मीडिया और पार्टी के समर्थकों में उन्हें कांग्रेस का एक काबिल नेता समझा जाने लगा. यहां तक कि डीके शिवकुमार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी देखा जाने लगा, जो पार्टी को नरेंद्र मोदी- अमित शाह के मजबूत नेतृत्व के सामने टिका पाते. लेकिन कांग्रेस ने उन्हें कर्नाटक तक टिका दिया.
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व्यक्तिगत नुकसान भी उठाया DK Shivakumar ने
भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद डीके शिवकुमार ने भारी तबाही झेली है. कैफे कॉपी डे के मालिक दिवंगत वीजी सिद्धार्थ के बेटे से शिवकुमार की बेटी की शादी हुई है. वीजी सिद्धार्थ के पीछे पूरी मशीनरी लगा दी गई. उन्हें इतना परेशान किया गया कि सिद्धार्थ ने जान दे दी. उनके पूरे कारोबारी साम्राज्य को ध्वस्त कर दिया गया. बीजी सिद्धार्थ के ससुर और कांग्रेस नेता एसएम कृष्णा भाजपा में शामिल हो गए. संभवतः उसके पीछे उनकी मंशा यह रही होगी कि अब शायद उनके रिश्तेदारों और परिवार की जिंदगी बच सके.
इसके अलावा DK Shivakumar पर भी धनशोधन, आय से ज्यादा संपदा के आरोप लगे. उन्हें करीब 2 महीने तक जेल में रहना पड़ा. लेकिन वह डिगे नहीं. उन्होंने बयान दिया कि भाजपा में शामिल न होने की सजा दी जा रही है, इन सब मुकदमों में कोई दम नहीं है.
नरेंद्र मोदी का DK Shivakumar पर वार
कर्नाटक में करारी शिकस्त पा चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रवीण सूद को सीबीआई का निदेशक बना दिया, जिनके ऊपर शिवकुमार लगातार आक्रामक रहे, उन्हें सजा दिलाने, जेल में डालने, पद से हटाने की बात करते रहे. उन्हें नालायक पुलिस प्रमुख कहा और भाजपा का एजेंट करार दिया. अब DK Shivakumar पर सीबीआई का भी दबाव है. वह मुख्यमंत्री रहते थोड़ा बहुत अपना बचाव भी कर सकते थे. लेकिन अगर कांग्रेस उन्हें बाहर का रास्ता दिखाती है तो वह अपनी इन कुर्बानियों के बाद शायद मूर्ख नेतृत्व वाले राजनीतिक दल में खुद को ठगा हुआ पाएंगे.
DK Shivakumar के सामने अब क्या रास्ता है
यह संभव है कि टिकट के बंटवारे में सिद्धारमैया के आदमियों को ज्यादा टिकट मिला हो और DK Shivakumar ने पार्टी हित में इसे मान लिया हो और सिद्धारमैया के पास कुछ विधायक समर्थक ज्यादा हों. लेकिन अब शिवकुमार के आंख के सामने अंधेरा है. केंद्रीय नेतृत्व जिस तरीके से उन्हें जीत के बाद दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकने की तैयारी में है और फर्जी का लोकतंत्र दिखा रहा है, उन्हें पार्टी तोड़कर भाजपा से बात करके सरकार बनाने की कवायद में जुटने की जरूरत है. कांग्रेस डिजर्व ही नहीं करती कि कोई नेता उसके लिए जान दे और उसे सत्ता में लाए. कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पंजाब, असम, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित हर एक राज्य में अपनी मौत की कहानी खुद लिखी है. कांग्रेस अब कर्नाटक में भी मरने को तैयार है.