गर्भ से बचने का तरीका

उपनिषद और आयुर्वेद में गर्भ से बचने का तरीका बताया गया है जो नीतीश कुमार ने विधानसभा में बताया

गर्भ से बचने का तरीका वृहदारण्यकोपनिषद में वैसा ही बताया गया है, जैसा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नवंबर 2023 में विधानसभा में भाषण के दौरान सरल शब्दों में बताने की कोशिश की थी. भारत के प्राचीन ग्रंथों में यौन क्रिया से लेकर गर्भाधान और बच्चे पैदा होने के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है. नीतीश कुमार पर सबसे ज्यादा हमलावर भारतीय जनता पार्टी के नेता हुए, जो भारतीय धर्म, दर्शन और शास्त्रों के झंडावरदार बनते हैं. यह दुर्भाग्य है कि भाजपा नेताओं ने उपनिषद और आयुर्वेद पढ़ा ही नहीं है और उसे अश्लीलता कह बैठे. विस्तार से बता रहे हैं सत्येन्द्र पीएस…

नीतीश कुमार ने प्रेग्नेंसी से बचने को लेकर विधानसभा में जो कहा, वृहदारण्यक उपनिषद के छठे अध्याय के चतुर्थ ब्राह्मण में दिए गए  10वें श्लोक से  मिलती है, जिसमें यह वर्णन किया गया है कि युवक युवती किस तरह से यौन क्रीड़ा करें, जिससे वे गर्भ की स्थिति से बच सकते हैं.

भारत में सेक्स एजुकेशन को लेकर बहुत क्रांति मचाई जाती है. इसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ, अश्लील और जाने क्या क्या बताया जाता है. वहीं भारतीय ग्रंथ सेक्स एजुकेशन से भरे पड़े हैं. शरीर के हर अंग और हर क्रियाओं के बारे में इतना खुलकर लिखा गया है कि वैसा आधुनिक लेखक लिखने का साहस भी नहीं करते.

बृहदारण्यकोपनिषद के गर्भाधान अध्याय को पाश्चात्य लेखक और अनुवादक मैक्समूलर ने अश्लील करार दिया. इतना ही नहीं, उसे अश्लील कहकर अंग्रेजी में अनुवाद नहीं किया, बल्कि लैटिन में अनुवाद किया, जिससे कम लोग इसे पढ़ सकें. विद्यामार्तण्ड डॉ सत्यव्रत सिद्धांतालंकार ने एकादशोपनिषद में सभी उपनिषदों के संकलन के साथ उसका हिंदी में भावार्थ बताया है, जिसमें उन्होंने विस्तार से उल्लेख किया है कि मैक्समूलर ने गर्भाधान के बारे में क्या कहा था. वहीं भारतीय ग्रंथों में गर्भाधान को सोलह संस्कारों में से एक मुख्य संस्कार के रूप में लिया गया है. इसे उत्तम संतान उत्पन्न करने का साधन माना जाता था. गुरुकुल विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे प्रोफेसर सत्यव्रत ने उपनिषदों के शब्दार्थ सहित मूल तथा उसकी स्वतंत्र व्याख्या की है.

गर्भाधान संस्कार में यौन क्रीड़ा से लेकर गर्भाधान, किस तरह की तरकीब से किन गुणों वाले बच्चे पैदा होते हैं, इसका वर्णन है. साथ ही यह भी दिया है कि पुरुष स्त्री यौन क्रिया के बाद भी बच्चे पैदा न हों, इससे बचे रह सकते हैं और उनका ब्रह्मचर्य पालन हो सकता है. उपनिषद के छठे अध्याय के चतुर्थ ब्राह्मण के दसवें श्लोक में कहा गया है…

अथ यामिच्छेन्न गर्भं दधीतेति तस्यामर्थं निष्ठाय मुखेन मुखः
संधायाभिप्राण्यापान्यादिन्द्रियेण ते रेतसा रेत आदद इत्यरेता एव भवति.

अथ- और. याम् इच्छेत्- जिस अपनी पत्नी को चाहे. न-नहीं. गर्भम- गर्भ को. दधीत- धारण करे. इति- ऐसे. तस्याम-उसमें. अर्थम् निष्ठाय- अपने अभिप्राय को रख कर. मुखेन मुखम संधाय- मुख से मुख को मिलाकर. अभिप्राण्य- गहरी सांस लेकर. अपान्यात- श्वास को छोड़ दे, निकाल दे. इंद्रियेण- इंद्रिय बल रूप. ते- तेरे (अंदर गए). रेतसा- वीर्य से. रेत-वीर्य को. आददे-लेता हूं, खींचता हूं. इति- ऐसा बोलकर. अरेता- वीर्य से रहित. एव- ही. भवति- हो जाती है यानी वीर्याभाव में संतान नहीं होती है.

प्रो सत्यव्रत सिद्धांतालंकार ने इस श्लोक का अर्थ बताते हुए इसकी व्याख्या में लिखा है, “अगर पति चाहे कि उसकी स्त्री संतानोत्पत्ति के कार्य में न लगकर उसके साथ ब्रह्मचर्य-पूर्वक जीवन व्यतीत करे तो पत्नी के साथ ऐसा वर्ताव करे, जिससे उसकी इच्छा पत्नी की इच्छा बन जाए, उसके मुंह से निकली बात पत्नी की बात बन जाए. फिर दोनों प्राणापान की गति को साधें अर्थात प्राणायाम करें और एक दूसरे के प्रति इस भावना को जन्म दें कि हम अपनी शक्ति को एक दूसरे की इंद्रियों की शक्ति में सम्मिलित करते हैं. इस प्रकार दोनों अरेता हो जाते हैं. प्रजनन नहीं करते और ब्रह्मचर्य का जीवन व्यतीत करते हैं.”

गीता प्रेस ने इस श्लोक का जो अर्थ बताया है उसके मुताबिक, “अपनी जिस पत्नी के विषय में ऐसी इच्छा हो कि वह गर्भधारण न करे तो उसकी योनि में अपनी जननेंद्रिय को स्थापित करके उसके मुख से अपना मुख मिलाकर अभिप्राणन कर्म करके अपानन क्रिया करे और कहे- इंद्रियस्वरूप वीर्य के द्वारा मैं तेरे रेतस् को ग्रहण करता हूं. ऐसा करने पर वह रेतोहीन ही हो जाती है- गर्भिणी नहीं होती.” गीताप्रेस के बृहदारण्यकोपनिषद् में अपानन का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पुरुष अपनी शिश्नेंद्रिय द्वारा स्त्री की योनि में जो वायु प्रविष्ट करता है, उसे अभिप्राणन कर्म कहते हैं. और वह जो अपने शिश्नेंद्रिय को बाहर निकालते हुए उस वायु को भी बाहर निकाल लेता है, उस क्रिया को अपानन कहा गया है.

प्रो सत्यव्रत सिद्धांतालंकार इस श्लोक के बारे में और स्पष्टीकरण देते हुए कहते हैं कि कई लोगों का कहना है कि यहां पर परिवार नियोजन अर्थात संतानोत्पत्ति निरोध का उपाय बताया गया है. अभिप्राण्य अपान्यात्- गहरा प्राण लेकर अपान वायु का प्रयोग करे. आयुर्वेद के अनुसा उपस्थेन्द्रिय में अपान वायु रहती है. वीर्य का सिंचन अपान वायु से होता है. अपान द्वारा वीर्य का सिंचन न होने दें. इस प्रकार स्त्री संग करने पर भी गर्भधारण नहीं होता.

सिद्धांतालंकार आगे लिखते हैं कि इस प्रक्रिया को पाश्चात्य लेखक Cunnilingus कहते हैं, जो अफ्रीका आदि देशों में गर्भ निरोध के लिए प्रचलित है. भारतीय साहित्य में भी इसी प्रकारकी बज्रौली आदि क्रियाएं हैं. मैथुन होने पर भी वीर्यपात न होना इन क्रियाओं का अभिप्राय है.

इसके आगे 11वें श्लोक में इसके विपरीत गर्भाधान कैसे हो, उसके बारे में लिखा गया है.

अथ यामिच्छेद दधीतेति तस्यामर्थं निष्ठाय मुखेन मुखः संधायापान्या-

भिप्राण्यादिनिन्द्रियेण ते रेतसा रेत आदधामीति गर्भिण्येव भवति (11)

अथ याम् इच्छेत- और जिसको चाहे कि. धधीत इति- यह (गर्भ) धारण करे. तस्याम-उसमें. अर्थम् निष्ठाय- अपने अभिप्राय को रख कर. मुखेन मुखम संधाय- मुख से मुख को मिलाकर. अपान्य- सांस निकालकर. अभिप्राण्यात्- गहरा सांस लेवे. इंद्रियेण- इंद्रिय बल रूप. ते- तेरे (अंदर गए). रेतः- वीर्य से. रेत-वीर्य को. आदधामि- आधान करता हूं. इति- ऐसे. गर्भिणी एव- गर्भिणी ही. भवति- हो जाती है.

गीता प्रेस ने इसकी व्याख्या में लिखा है, “पुरुष को अपनी जिस पत्नी के संबंध में ऐसी इच्छा हो कि यह गर्भ धारण करे, वह उसकी योनि में अपनी जननेंद्रिय स्थापित करके उसके मुख से मुख मिलाकर पहले अपानन क्रिया करके पश्चात अभिप्राणन कर्म करे और कहे- मैं इंद्रियरूप वीर्य के द्वारा तेरे रेतस् का आधान करता हूं. ऐसा करने से वह गर्भवती ही होती है.”

वहीं प्रो सत्यव्रत सिद्धांतालंकार इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं, “यदि पति चाहे कि उसकी पत्नी संतानोत्पत्ति करे, तो उसके साथ अपनी इच्छा और वाणी को एक करके गर्भाधान करे- अपान्य अभिप्राण्यात्. दोनों के रेत एक होने से स्त्री गर्भवती हो जाती है.”

इसी क्रम में बारहवें श्लोक में स्त्री के गुप्त प्रेमी होने की स्थिति का वर्णन किया गया है. अगर स्त्री के गुप्त प्रेमी से उसका पति द्वेष करता है तो ऐसी स्थिति में अग्नि, हवन और गुप्त प्रेमी को शाप देने के बारे में वर्णन है. इसमें श्रोतिय की स्त्री से संबंध बनाने को लेकर काफी डराया गया है. इसके कई अर्थ निकलते हैं. पहला तो यह कि महिलाओं के अन्य पुरुषों के साथ यौन संबंध होते थे. दूसरा यह कि पुरुष तभी स्त्री के गुप्त प्रेमी को शाप देता है और उसके खिलाफ यज्ञ करता है, जब पति उससे द्वेष करता है. तीसरा यह कि शाप और उससे मृत्यु का भय दिखाकर लोगों को इस तरह के संबंध बनाने से रोका गया है. चौथा यह कि अगर स्त्री ने अपने गुप्त प्रेमी से संबंध बना भी लिया है तो स्त्री के उत्पीड़न करने या उसे छोड़ देने का कोई प्रावधान नहीं दिया गया है. पति केवल अपनी पत्नी के गुप्त प्रेमी के अकल्याण की बात करता है.

इसके बाद के तेरहवें श्लोक में ऋतुकाल में महिला को क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए, उसके बारे में बताया गया है.

अथ यस्य जारामार्तवं विन्देत त्र्यहं कः सेन पिबेदहतवासा नैना

वृषलो न वृषल्युपहन्यात्त्रिरात्रान्त् आप्लुत्य व्रीहीनवघातयेत् (13)

अथ- और. यस्य- जिसकी. जायाम-भार्या पत्नी को. आर्तवम्- ऋतुकाल, रज स्राव, विन्देत्- प्राप्त हो, होने लगे. त्रयहम्-तीन दिन तक. कंसे- कांसे के पात्र में. न-नहीं. पिवेत- पानी पीवे. अहतवासा-वस्त्र न धोने वाली (स्नान न करे). न- नहीं. एनाम- इस (रजस्वला) को. वृषलः -धर्म लोपी नीच पुरुष. न- नहीं. वृषली- धर्मभ्रष्ट स्त्री. उपहन्यात-स्पर्श करे. त्रिरात्य अंते- तीन रात (दिन) के अंत में यानी बीत जाने पर. आप्लुत्य-स्नान कर. व्रीहीन्- धानों को. अपघातयेत्- (पति) कुटवाए.

गीता प्रेस ने इस श्लोक की व्याख्या में लिखा है, “जिसकी पत्नी ऋतुभाव (रजोधर्म) प्राप्त हो, उसकी वह पत्नी तीन दिन तक कांस के बर्तनों में न खाए. और चौथे दिन स्नान के बाद ऐसा वस्त्र पहने,  जो फटा न हो, साफ सुथरा हो,. इसे कोई शूद्रजातीय स्त्री या पुरुष न छुए. वह रजस्वला नारी जब तीन दिन बीतने पर स्नान कर ले तो उसे धान कूटने के काम में लगावे.”

वहीं प्रो सत्यव्रत सिद्धांतालंकार इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं, “जिसकी स्त्री को ऋतु धर्म प्राप्त हो, वह तीन दिन तक कासे के बर्तन में जल न पिए. और न तीन दिन तक कपड़े धोए. उसे कोई नीच, धर्महीन पुरुष या नीच एवं धर्महीन स्त्री स्पर्श न करे. तीन दिन रात बीत जाने पर वह स्त्री स्नान करे और चरु बनाने के लिए व्रीहिं अर्थात धान को कूटकर तैयार करे.”

इस श्लोक की व्याख्या करते हुए गीता प्रेस की पुस्तक में जबरदस्ती शूद्र घुसा दिया गया है. श्लोक में कहीं शूद्र शब्द आता भी नहीं है, वृषल और वृषली को शूद्र कह दिया गया, जो वर्ण व्यवस्था के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वाली व्याख्या में डाल दिया गया है.

इस तरह से बृहदारण्यकोपनिषद में गर्भाधान अध्याय में यह भी उपाय बताया गया है कि महिला और पुरुष यौन क्रिया के दौरान गर्भ ठहरने से कैसे बच सकते हैं. उपनिषद के श्लोक में सेक्स के दौरान किस तरह से गर्भ ठहरने से बचा जा सकता है, वही तरीका बताया गया है, जो बिहार के मुख्यमंत्री विधानसभा में सरल शब्दों में बताने की कोशिश कर रहे थे.

 

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